उलूक टाइम्स: रेल
रेल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रेल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 2 जून 2014

एक रेल यहाँ भी रेलमपेल

लिखता
चलना
इस तरह
कि बनती
चली जाये
रेल की पटरी

और हों
पास में
ढेर सारे
शब्द

बन सकें
जिनके
इंजन डब्बे

और
बैठने के
लिये भी
हों कुछ
ऐसे शब्द
जिनको
बैठाया
जा सके
शब्दों की
ही बनी
सीटों पर

शब्दों की
ही बर्थ हो
सोने के लिये
भी हों शब्द
कुछ रात
भर के लिये

शब्दों के
सपने बनें
रेल के डब्बों
के अंदर ही
और
सुबह
हो जाये

उसके बाद
ही उठें शब्द
के ही प्रश्न
भी नींद से

कहाँ तक
पहुँचाई जा
सकती है
ऐसी रेल

जहाँ
बहुत ही
रेलमपेल हो
शब्दों के बने
डब्बों की
छत पर
शब्दों के
ऊपर चढ़े
शब्द हों

हाल हो
भारतीय रेल
का ही जैसा
सब कुछ

गंतव्य तक
पहुँचने ना
पहुँचने का
वहम ही
वहम हो

कुछ हो
या ना हो
कहीं
बस यात्रा
करते
रहने का
जुनून हो

सोचने में
क्या हर्ज है
जब शब्द ही
टी टी हों
और
शब्द ही चला
रहे रेल हों ।

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

सवाल सिस्टम और व्यवस्था का जब बेमानी हो जाता है


कैसे बनेगा कुछ नया उस से 
जिसके शब्दों की रेल में 
गिनती के होते हैं 
कुछ ही डब्बे 

और
उसी रेल को लेकर वो 
सफर करता हो हमेशा ही 
एक इंटरसिटी की यात्रा की तरह 

अपने घर से मौहल्ले बाजार होते हुऐ 
शहर की इस गली से उस गली में 
निकलते हुऐ 

वही रोज की गुड मोर्निंग वही मुस्कुराहटें 

वही पैदल चलने वालों को रौंदने की इच्छा करते हुऐ 
सड़क पर दौड़ते दो पहिये चार पहिये 

कुछ कुत्ते कुछ सांड कुछ पुलिस वाले बेचारे 
नेताओं की ओर से मुँह फेरते हुऐ 
बच्चों और लड़कियों को सीटी बजाकर 
उनके वाहनो को खदेड़ने के करते हुऐ इशारे 

मंदिरों के सामने से उनको ढकती 
खड़ी होती सड़क पर पहँच कर 
दुकाने निकालती 
चालीस फीट उँचाई के नियम को 
तोड़ती बिखेरती मीनारें 

और अंत में 
वही रोज का तालाब 
जिसके किनारे से लगा होता है एक बोर्ड 
यहाँ मछली पकड़ना सख्त मना है 

और कोई भी जहाँ मछली पकड़ता हुआ 
कहीं भी नजर नहीं आता है 

मछलियां अपने आप फंसना फंसाना सीखती है 

कोई किसी से कुछ नहीं कहता है 
या कहो कहना ही नहीं चाहता है 
या नहीं कह पाता है 

कुर्सियाँ भी तो हर जगह होती ही हैं
किनारे किनारे 
उन पर कोई भी कभी भी कहीं भी बैठ जाता है 

बस कुछ गोलियांं रखता है अपने पास 
सबको बाँटता चला जाता है 

गोली देने में कोई जात पात 
कोई ईमान धर्म भी नहीं देखा जाता है 
सब कुछ लोकतांंत्रिक तरीके से किया जाता है

अब 
‘उलूक’ का तो 
रोज का यही काम रह जाता है 
रोज शुरु करता है अपनी यात्रा 
रोज जाता है मछलियां देखता है 
और वापिस भी आ जाता है 

रेल के कुछ डब्बों को आगे पीछे करता हुआ 
दूसरे दिन के लिये एक रेल बनाता है 

ऐसे में कोई कैसे उम्मीद करता है 

कुछ नया खुद का बनाया हुआ 
रेल का एक डब्बा ही सही 
कोई क्यों नहीं किसी को दिखाता है । 

चित्र साभार:

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

भगवान ले झेल आर टी आई

ओ ऊपर वाले
तूने लोग बनाये
सब के सब
अपने ही जैसे
जैसा तू है
पर कुछ
थोड़े से लोग
लेकिन तूने
मेरे जैसे
फिर काहे
को बनाये
क्या ये है
किसी तरह
का सम्मान
अब रेल
भी तेरी
पटरी भी
तो तेरी
अगर हो
जाये कोई
दुर्घटना
उसे तू मेरी
ही समझना
भगवान तेरी
क्राईस्ट और
अल्लाह के
साथ कोई
किसी तरह
की तकरार
ना ही दिखी
कभी निकलती
हुई तुम लोगों
के बीच में
कोई तलवार
क्योंकि इस
तरह की
कोई भी
खबर कहीं
नहीं देता
दिखा कोई
भी अखबार
भगवान तेरे
यहां कौन
सा अखबार
निकलता है
और तेरे
यहाँ के अखबार
में कौन से
भगवान की
खबर रोज
के रोज
छापी जाती है
तुझे पता है
नहीं पता है
तो पता कर
कुछ छपने छपाने
की टिप्स
हम लोगों को
भी कभी कभी
दे दिया कर
भगवान लेकिन
तू किसी भी
प्रश्न का जवाब
नहीं दे पायेगा
आर टी आई का
जवाब पूछने
के लिये
तू अपने ही
आदमी के
पास जायेगा
अखबार वाला
फिर मजाक
हम जैसों की
जरूर उड़ायेगा
कल के अखबार
की मुख्य खबर
में भगवान ही
बस एक सेक्यूलर
हुआ करता है
नजर आयेगा ।