उलूक टाइम्स: लंगड़ी
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शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

लंगड़ी लगती है तभी तो सीखी भी जाती है

जुम्मा जुम्मा 
आ कर अभी तो पाँव कुछ जमाई हैंं
कुछ बातें समझनी बहुत जरूरी होती हैं 
पता नहीं क्यों नहीं समझ पाई हैंं

पढ़ी लिखी हैंं और समझदार हैंं
दिखती मजबूत सी हैंं बाहर से काम करने में भी काफी होशियार हैंं

पर हर जगह के
अपने अपने कुछ उसूल होते हैं 
बहुत से लोग होते हैं जो बहुत पुराने हो चुके होते हैं 
उन लोगों के भी अपने अपने दुख : होते हैं 
जो उनसे भी पुराने लोग उनको जाते जाते दे गये होते हैं 

इसी चीज को ही तो अनुभव कहते हैं 

जल्दी बाजी नहीं करेगी
तो समय आने पर सब कुछ तू भी समझ जायेगी
देख लेना आने वाले समय में तू भी उनकी जैसी जरूर हो पायेगी 
उनका तो कुछ वैसे भी तू कुछ बिगाड़ नहीं पायेगी 
हाँ आने वाली नयी खेप से
अपनी खुंदकें निकालने में पुरानी खेप तेरा कुछ भी नहीं कर पायेगी 

कुछ समय लगा काम करना सीख जा 

समीकरण बनाना अगर सीख जायेगी 
तो थोड़ा गणित लगाने में महारथ भी तेरी हो जायेगी 

अच्छे काम तो किसी भी तरह हो जायेंगे 
पर किसी की वाट लगाने में यही सब अनुभव तेरे काम आयेंगे 

किसी को मारना हो
तो सामने से कभी नहीं मारा जाता है
हिसाब किताब 
धर्म का जाति का गांव का वर्ग का उम्र का लिंग का अंदर की आग का अपने विभाग का 
या 
फिर काम के कमीशन के हिसाब का
सबसे पहले लगाया जाता है 

जिस से निशाना साफ नजर आता है 
उसे छाँट कर मिलबाँट कर ठिकाने लगा लिया जाता है

 हर बार एक ही तिकड़म से काम नहीं किया जाता है 
अगली बार किसी और तरीके से उल्लू सीधा कर लिया जाता है 
 तुझे लगता है लगना भी चहिये कि तुझको बहुत कुछ आता है 

अब क्या करेगी 
अगर सब मिलकर कह देंगे सब से कह देंगे तेरा बताया हुआ किसी के समझ में नहीं आता है 

हर एक की चाह होती है बहुत ऊपर तक उठता चले जाने की

सीढ़ी नहीं होती है 
इसीलिये
अपने आसपास के मजबूत कंधों की सीढ़ी बनाने की जरूरत होती है

सीढ़ी 
बन गया कोई किसी की ये भी तभी पता चल पाता है 
जब चढ़ा हुआ बंदर पेड़ की चोटी पर दूर नजर आता है 

मुझ से भी हमेशा इस तरह कहाँ कहा जाता है 
आँखों में तैरता बाहर को निकलता हुआ सा पानी कहीं दिख जाता है

किया जब कुछ नहीं जाता है 
बस आक्रोश ऎसे ही समय में शब्दों के रूप में बाहर निकल जाता है 

उपर वाला भी तो उम्र के साथ अक्ल की जुगलबंदी हमेशा कहाँ कराता है ।

शनिवार, 30 मार्च 2013

लंगड़ा दौड़ता है दो टाँग वाला कमेंट्री करता है !

मैं दो टांग वाला
हर बार भूल
ही जाता हूँ
कि सिस्टम तो
लंगड़ों ने ही
चलाना है

मुझे याद ही
नहीं रहता
कि सारे
दो टांग वाले
दो टांग वालो
के कहने में
नहीं आते हैं
वो तो
लंगड़ों के घर
रोज ही
आते जाते हैं

 ज्यादातर
दो टांग वाले
बस वेतन ले कर
खुश हो जाते हैं
दौड़ की सोच भी
कहाँ पाते हैं

बहुत सारी दौडे़
होनी हो कहीं
अगर एक साथ
तो लंगडे़ बहुत
ही व्यस्त
हो जाते हैं

वो दौड़ में कहीं
भाग नहीं लगाते हैं
लंगड़ी कहाँ किस को
कैसे लगेगी उसका
हिसाब लगाने में
ही व्यस्त हो जाते हैं

अपने को सबसे
चालाक समझने वाला
लंगड़ा कहीं दिखाई
ही नहीं देता है
पर अपनी हरकतों से
अपने को हर जगह
एक्स्पोज कर जाता है
मजबूरी है उसकी
हर जगह हीरा हूँ
प्रमाणपत्र लेने के
लिये आ जाता है
लेकिन कोयला भी
उसको कहीं भी
मुहँ नहीं लगाता है
ऎसे लोगों से
ही भारत का लेकिन
अंदर की बात है
का नाता है
वो घर से लेकर
दिल्ली तक
नजर आता है
काम करने वाला
मेहनत करता है
लेकिन हर जगह
एक लंगड़ा
दो टाँगो वालो को
जरूर नचाता है ।

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

अब के तो छा जाना गलती मत दोहराना मलहम आने वाला है



अपने
आस पास 
गन्ने के खेत जैसे उगे हुऎ 

पता नहीं कितने 
पर देखे जरूर थे पिछली बार 
बहुत सारे अन्ना 

नतमस्तक 
हो गया था 
साथ में
कुछ दुखी भी 
हो गया था 
कहीं भी
किसी भी 
खेत में
नहीं 
उग पाया था 
बहुत झल्लाया था 

इस बार 
चांस हाथ से नहीं जाने दूंगा 
चाहे धरती पलट जाये 
मौका भुना ही लूंगा

फिर से
क्योंकी 
लग रहा है कुछ होने वाला है 
सुगबुगाहट सी दिख रही है साफ 
पिछली बार के कलाकारों में

सुना है
जल्दी ही 
इस बार वो
रामदेव 
हो जाने वाला है 

अन्ना हो गये रामदेव 
का समाचार भी 

इन
रामदेवों के 
अपने अखबार का संवाददाता

इस बार भी 
इनकी रोज आने वाली 
खबर की
जगह पर 
ही देने वाला है

सोच कर दीजियेगा 
अपनी खबर इन दिनो आप भी जरा 

आपकी खबर भी 
इनकी खबर में 
रोज की तरह मिलाकर 
वो आप से मजे भी लेने वाला है 

बस एक सबक 
सिखा गया अन्ना इन अन्नाओं को 

काम
अपने रोज के 
छोड़ के
कोई भी 
अन्ना यहां का 
नहीं इस बार मैदान में आने वाला है 

पीछे से
लंगड़ी 
देने वाला है 
गिराने वाला है 

सामने से
आकर 
उठाने वाला है 
रामदेव का मलहम 
मुफ्त में दे के जाने वाला है।

चित्र साभार: 
http://www.theunrealtimes.com/