उलूक टाइम्स: वहम
वहम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
वहम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 13 जुलाई 2019

एक भीड़ को देखते देखते भीड़ में शामिल हो लेने का खामियाजा भुगतना ही पड़ता है मुस्कुराना ठीक है रोने ले से भी वैसे कुछ नया होना भी नहीं है


लिखना लिखाना
ठीक है

सब लिखते हैं

लिखना भी
जरूरी है

सही है

गलत
कुछ कहीं

वैसे भी

होता ही नहीं है

वहम है

है कह लेने में

कोई बेशर्मी
भी नहीं है

कुछ
लेखक होते हैं
पैदायशी होते हैं

बुरा भी नहीं है

कुछ
लेखक पैदा
नहीं होते है

माहौल
बना देता है

क्या किया
जा सकता है

कहना
नहीं चाहिये

कहना भी नहीं है

परेशानी

बकवास
करने वाले
के लिये है

बकबक
लिख लिखा कर

लेखकों की
भीड़ के बीच में

खो जाना

बहुत
बुरी बात है

समझ में
आने के दिन
आ जाने चाहिये

कई
सालों तक

इस तरह
भटकना

ठीक
भी नहीं है

गालियाँ
पड़ती हैं

अच्छा है

पड़नी भी
जरूरी हैं

किसने
कहा होता है

औकात
के बाहर
निकल कर
समझाना

बेबात में बात को

हर किसी की
समझ की

सीमा है

समझाने वाला
बेसमझ
नहीं है

किससे
पूछा जाये

समझने
समझाने की

किताबें
भी नहीं हैं

‘उलूक’

बकवास
करने में

बुराई
कुछ नहीं है

बकवास कर
लिख लिखा
देने से अच्छा

कुछ नहीं है

लिखा लिखाया
देख कर

किताब
हो जाने का
वहम हो जाये

बुरी बात है

इससे
निकल जाना

सबसे
अच्छी बात है

सालों
लग भी गये

कोई
नयी बात
भी नहीं है

देर आयद दुरुस्त आयद

सटीक मुहावरा है

वहम
टूटने
के लिये
 ही होते हैं

टूट जाये
अच्छा है

बने रहना
बस
इसी एक का

अच्छा नहीं है

और

बिल्कुल
भी नहीं है ।

चित्र साभार:
https://in.one.un.org

शनिवार, 1 अगस्त 2015

गिद्ध उड़ नहीं रहे हैं कहीं गिद्ध जमीन पर हो गये हैं कई

गिद्ध
कम हो गये हैं
दिखते ही नहीं
आजकल
आकाश में भी 
दूर उड़ते हुऐ
अपने डैने
फैलाये हुऐ

जंगल में पड़ी
जानवरों
की लाशें
सड़ रही हैं
सुना जा रहा है

गिद्धों
के बहुत
नजदीक
ही कहीं
आस पास में
होने का
अहसास
बढ़ रहा है

कुछ
नोचा जा रहा है

आभास हो रहा है

अब
किस को

क्या दिखाई दे
किस को
क्या
सुनाई दे

अपनी अपनी
आँखें

अपना अपना
देखना

अपने अपने
भय

अपना अपना
सोचना


किसी ने
कहा नहीं है

किसी ने
बताया नहीं है


कहीं हैं
और बहुत ही

पास में हैं
बहुत से गिद्ध


हाँ
थोड़ा सा साहस

किसी ने
जरूर बंधाया

और समझाया

बहुत लम्बे समय

तक नहीं रहेंगे
अगर हैं भी तो
चले जायेंगे
जब निपट
जायेंगी लाशें

इतना समझा

ही रहा था कोई
समझ में आ
भी रहा था
आशा भी कहीं
बंध रही थी

अचानक

कोई और बोला

गिद्धों
को देख कर

नये सीख रहे हैं
गिद्ध हो जाना

ये चले भी जायेंगे

कुछ दो चार सालों में
नये उग जायेंगे गिद्ध

नई लाशों को

नोचने के लिये

आकाश में कहीं

उड़ते हुऐ पक्षी
तब भी नजर
नहीं आयेंगे

लाशें तब भी
कहीं
नहीं दिखेंगी

सोच में दुर्गंध की

तस्वीरें आयेंगी
आज की तरह ही

वहम अहसास

आभास सब
वही रहेंगे

बस


गिद्ध तब भी

उड़ नहीं
रहे होंगे कहीं

किसी भी
आकाश में ।


चित्र साभार: www.pinstopin.com

शनिवार, 24 जनवरी 2015

आदमी होने से अच्छा आदमी दिखने के जमाने हो गये हैं

आदमी होने
का वहम हुऐ
एक या दो
दिन हुऐ हों
ऐसा भी नहीं है
ये बात हुऐ तो
एक दो नहीं
कई कई
जमाने
हो गये हैं
पता मुझको
ही है ऐसा
भी नहीं है
पता उसको
भी है वो बस
कहता नहीं है
आदमी होने के
अब फायदे
कुछ भी नहीं
रह गये हैं
आदमी दिखने
के बहुत ज्यादा
नंबर हो गये हैं
दिखने से आदमी
दिखने में ही
अब भलाई है
आदमी दिखने
वाले आदमी
अब ज्यादा ही
हो गये है
आम कौन है
और खास
कौन है आदमी
हर किसी के
सारे खास
आदमी आम
आदमी हो गये हैं
हर कोई आदमी
की बात करने
में डूबा हुआ है
आज बहुत
गहराई से
आदमी था
ही नहीं कहीं
बस वहम था
एक जमाने से
इस वहम को
पालते पालते
हुऐ ही कई
जमाने हो गये हैं ।

चित्र साभार: www.picthepix.com

शनिवार, 24 मई 2014

धुंध की आदत पड़ जाये तो साफ मौसम होना अच्छा नहीं होता है

कुछ होता है
घने कोहरे के
पीछे से छुपा हुआ
नजर नहीं आने
का मतलब
कुछ नहीं होना
कभी भी नहीं होता है
कोहरा हटने के
बाद की तेज धूप
खोल देती है
सारे के सारे राज
एक ही साथ
पेड़ पौँधे नदी पहाड़
सब अपनी जगह पर
उसी तरह होते हैं
जैसा कोहरा लगने से
पहले हुआ करते हैं
कोहरे के होने
या ना होने से
उस चीज का होना
या ना होना
अभिव्यक्त नहीं होता है
जो कोहरे के इस पार
या उस पार होता है
कोहरे की आदत
हो जाने वाले के लिये
तेज धूप का होना
जरूर एक भ्रम होता है
चीजों का बहुत
नजदीक से बहुत
साफ साफ दिखना
ही सबसे बड़ा
एक वहम होता है ।