उलूक टाइम्स: शमशान
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सोमवार, 2 दिसंबर 2019

यूँ ही अचानक/ कैसे हुआ इतना बड़ा कुछ/ तब तक समझ में नहीं आयेगा/ उसके धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा होने के निशान रोज के /अपने आसपास अगर देख नहीं पायेगा



इतने दिन भी
नहीं हुऐ हैं

कि
याद ना आयें
खरोंचें
लगी हुई
सोच पर

और
भूला जाये
रिसता हुआ
कुछ

जो
ना लाल था
ना ही
उसे
रक्त कहना
सही होगा

अपने
आस पास
के

नंगे नाँचों
के
बगल से

आँख
नीची कर
के
निकल जाने को

वैसे
याद
नहीं आना चाहिये

भूल जाना
सीखा जाता है

यद्यपि
वो ना तो
बुढ़ापे की
निशानी होता है

ना ही
उसे
डीमेंशिया कहना
ठीक होगा

ऐसे सारे
महत्वाकाँक्षाओं
के बबूल
बोने के लिये

सौंधी मिट्टी
को
रेत में
बदलते समय

ना तो
शर्म आती है

ना ही
अंधेरा
किया जाता है

छोटे छोटे
चुभते हुवे
काँटो को

निकाल फेंकने
के
लिये भी
समय
कहाँ होता है

बूँद दर बूँद
जमा होते
चले जाते हैं

सोच की
नर्म खाल
को
ढकते हुऐ से

मोमबत्तियाँ
तो
सम्भाल कर
ही
रखी जाती हैं

जरा सा में
टूट जाती हैं

मोम
बिना जलाये भी
बरबाद हो जाता है
समय के साथ

और
हर बार
एक
दुर्घटना
फिर
झिंझोड़ जाती है

पूछते हुऐ

कितनी बार
और

किस किस

छोटी
घटना से

बचते हुऐ
अपने
आसपास की
आँखे फेरेगा ‘उलूक’

जो
दिखाई
और
सुनाई दे रहा है

वो
अचानक
नहीं हुआ है

महत्वाकाँक्षाओं
के
मुर्दों के
कफनों
के

जुड़ते चले
जाने से
बना

विशाल
एक
झंडा हो गया है

जो
लहरायेगा
बिना
हवा के

ढक लेगा
सोच
को

कहीं
कुछ भी

नजर
आने लायक
नहीं
रह जायेगा

सौंधी
मिट्टियों
से
बनी रेत
की
आँधियों में
सब उड़ जायेगा

कुछ
नहीं बचेगा

महत्वाकाँक्षाओं 
के
भूतों से
लबालब

एक
शमशान
हो जायेगा।
चित्र साभार: https://www.123rf.com/

गुरुवार, 16 मार्च 2017

रखा तो है शमशान भी है कब्रगाह भी है और बहुत है दो गज जमीन है सुकून से जाने के लिये

अब
छोड़ भी
दे नापना
इधर
और उधर
अपने
खुद के
पैमाने से
 
कभी पूछ
भी लिया कर
अभी भी
सौ का
ही सैकड़ा है
क्या जमाने से

लगता नहीं है
कल ही तो
कहा था
किसी ने
शराब लाने
के लिये
घर के
अन्दर से

लड़खड़ाता
हुआ कुछ
ही देर पहले
ही शायद
निकल के
आया था वो
मयखाने से

ना पीना
बुरा है
ना पिलाने
में ही कोई
गलत बात है

साकी खुद ही
ढूँढने में लगी
दिख रही है
इस गली और
उस गली में
फिरती हुई

उसे भी
मालूम हो
चुका है
फायदा है
तो बस
बेशर्मी में

नुकसान ही
नुकसान है
हर तरफ
हर जगह
हर बात पर
बस शरमाने से

निकल चल
मोहल्ले से
शहर की ओर
शहर से
जिले की ओर
जिले से छोटी
राजधानी की ओर

 छोटी में होना
और भी बुरा है
निकल ले
देश की
राजधानी
की ओर

किसी
को नहीं
पता है
किसी को
नहीं मालूम है
किसी को
नहीं खबर है

किस की
निविदा
पर लग रही
मुहर है

बात ठेके की है
ठेकेदार बहुत हैं
किस ने कहा है
टिका रह
मतदाता के
आसपास ही

कुछ नहीं
होना है अब
किसी का
दरवाजा बेकार
में खटखटाने से

कोशिश जरुरी हैं
तोड़ने की किसी
भी सीमा को

बत्तियाँ जरूरी हैं
लाल हों
हरी हों नीली हों

देश भक्ति का
प्रमाण बहुत
जरूरी है
झंडे लगाने
का ईनाम
ईनाम नहीं
होता है
खाली बातों
बातों में ही
बताने से

चयन
हो रहा है
दिख रहा है
जातियों से
उसूलों के
दिखावों वालों
के बीच भी

आदमी के
लिये है रखा है
उसने शमशान
और कब्रगाह
बहुत है
दो गज जमीन
सुकून से
जाने के लिये
आभार आदमी
का आदमी को
आदमी के लिये
रहने दे
किस लिये
उलझता है
किसी फसाने से

बहक रहा हो
जमाना जहाँ
किस लिये डरना
बहकने से
कलम के लिखने से
खुद की अच्छा है
‘उलूक’
कहे तो सही
कोई
तुझसे कुछ
यही होता है
छुपाने से
कुछ भी
किसी भी
बनते हुऐ
किसी
अफसाने से ।

चित्र साभार: news.myestatepoint.com

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शव का इंतजार नहीं शमशान का खुला रहना जरूरी होता है

हाँ भाई हाँ
होने होने की
बात होती है
कभी पहले सुबह
और उसके बाद
रात होती है
कभी रात पहले
और सुबह उसके
बाद होती है
फर्क किसी को
नहीं पड़ता है
होने को जमीन से
आसमान की ओर
भी अगर कभी
बरसात होती है
होता है और कई
बार होता है
दुकान का शटर
ऊपर उठा होता है
दुकानदार अपने
पूरे जत्थे के साथ
छुट्टी पर गया होता है
छुट्टी लेना सभी का
अपना अपना
अधिकार होता है
खाली पड़ी दुकानों
से भी बाजार होता है
ग्राहक का भी अपना
एक प्रकार होता है
एक खाली बाजार
देखने के लिये
आता जाता है
एक बस खाली
खरीददार होता है
होना ना होना
होता है नहीं
भी होता है
खाली दुकान को
खोलना ज्यादा
जरूरी होता है
कभी दुकान
खुली होती है और
बेचने के लिये कुछ
भी नहीं होता है
दुकानदार कहीं
दूसरी ओर कुछ
अपने लिये कुछ
और खरीदने
गया होता है
बहुत कुछ होता है
यहाँ होता है या
वहाँ होता है
गन्दी आदत है
बेशरम ‘उलूक’ की
नहीं दिखता है
दिन में उसे
फिर भी देखा और
सुना कह रहा होता है ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शुक्रवार, 27 जून 2014

बेकार की नौटंकी छोड़ अब कभी प्यार की बात भी कर


बात करना 
इतना भी जरूरी नहीं 
कभी काम की बात भी कर 

बहुत कर चुका है 
बेकार की बातें 
कभी सरकार की बात भी कर 
 
जीना मरना 
सोना उठना खाना पीना 
सबको पता है 
इसकी उसकी छोड़ कर कभी 
अपनी और अपने
घरबार 
की बात भी कर 

कान पक गये 
बक बक सुनते सुनते तेरी
किसी एक दिन 
चुप चाप रहने रहाने की बात भी कर 

सब जगह होता है 
सब करते हैं 
पुराने तरीकों को छोड़ 
कुछ नये तरीके से 
करने कराने वालों की बात भी कर 

खाली बैठे 
बात ही बात में 
कितने दिन और निकालेगा 
कुछ अच्छी बात करने की सोच 
कुछ नई बातें करने की बात
ईजाद भी कर 

तंग आ चुका है 
श्मशान का अघोरी तक
लाशों की बात छोड़ 
कभी मुर्दों के जिंदा हो जाने की बात भी कर

‘उलूक’  बेकार की नौटंकी छोड़ अब
कभी प्यार की बात भी कर ।

चित्र साभार: 
https://www.disneyclips.com/

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

गजब की बात है वहाँ पर तक हो रही होती है

आशा और
निराशा की
नहीं हो
रही होती है

शमशान घाट
में जब
दुनियादारी
की बात
हो रही होती है

मोह माया
त्याग करने
की भावना की
जरूरत ही
शायद नहीं
हो रही होती है

बदल गया
है नजरिया
देखिये इस
तरह कुछ

वहाँ पर अब
जीने और
मरने की
कोई नहीं

राहुल रावत
और मोदी
की बात
हो रही होती है

राम के
सत्य नाम
से उलझ
रही होती है

जब तक
चार कंधों में
झूलते चल
रही होती है

चिता में
रखने तक की
सुनसानी हो
रही होती है 

आग लगते
ही बहुत
फुर्सत में
हो रही होती है

कुछ कहने
सुनने की
नहीं बच
रही होती है

ये बात भी बस
एक बात ही है

आज के
अखबार के
किसी पन्ने
में ही कहीं पर
छप रही होती है

मरने वाले
की बात
कहीं पर
भी नहीं
हो रही होती है

इस बार
उसकी वोट
नहीं पड़
रही होती है

जनाजों में
भीड़ भी
बहुत बढ़
रही होती है

किसी के
मरने की खबर
होती है कहीं
पर जरूर

चुनाव पर
बहस पढ़ने पर
कहीं बीच
में खबर के
कहीं पर घुसी
ढूंढने से
मिल रही होती है । 

बुधवार, 23 सितंबर 2009

करवट

अचानक
उन टूटी खिड़कियों का
उतरा रंग 
चमकने लगा 

शायद
जिंदगी ने अंगड़ाई ली

शमशान
की खामोशी नहीं
शहनाईयां बज रही हैं आज

फिर से
आबाद होने को है 
उसका घरौंदा

कल तक 
रोटी कपडे़ के लिये 
मोहताज हाथों में 

दिखने लगी हैं
चमकती चूड़ियां 
जुल्फें संवरी हुवी हैं
होंठो पे लाली भी है

लेकिन
कहीं ना कहीं 
कुछ छूटा हुवा सा लगता है

चेहरे पे
जो नूर था
रंगत थी आंखों में 
आज वो उतरा हुवा सा
ना जाने क्यों लगता है

बच्चों के
चीखने की आवाज
अब नहीं आती है

बूड़े माँ बाप
के चेहरों पे
खामोशी सी छाई है 

शायद
किसी आधीं ने 
उड़ा दिया सब कुछ

अपनी जगह
पर ही है हर एक चीज
हमेशा की तरह 

पर कुछ तो हुआ है
ना जाने 

जो
महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं है।