उलूक टाइम्स: शहीद
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रविवार, 28 अक्तूबर 2018

बकना जरूरी है ‘उलूक’ के लिये पढ़ ना पढ़ बस क्या लिखा है ये मत पूछ

शहीद राजेंद्र सिंह बुंगला


जय हिन्द 
भारत माता 
की
जय 
वन्दे मातरम 

हवाई यात्रा 
करते हुऐ 
एक 
कॉफिन बॉक्स 

एक
पत्थर से 
कूटी गयी
 लाश 

यात्रा
से
थकी हुयी 
जैट लैग
से 

कुछ
बंदूकें 
सलामी 

मंत्री 
मुख्य मंत्री 
प्रधान मंत्री 
संत्री
के
चित्रो से 
भरे

अखबार 
के
समाचार 

गर्व
करने 
साझा करने 
के
आदेश 

पालन
ना 
करने पर 
कुछ
महत्वपूर्ण 

जैसे
धरम 
छीन लेने 
की 
गीदड़ भभकी 
के
बीच 

बहुत 
दूर कहीं 

पहाड़ी 
गरीब
माँ बाप 

याद
करते हुऐ 
अपने
खून को 
उसके
जुनून को 

उसी
बच्चे की 
जिद पर 
बेच दिये गये 

रोजी रोटी
दिलाने 
वाले
घोड़े
सुकून को 

दो तीन
दिन 
की
कहानी 

जैसे
एक चिट्ठे 
पर
छपी

एक 
पोस्ट की
जवानी 

एक
वक्तव्य 
सेनाध्यक्ष
का 

देख लेने
की 
धमकी का 

पत्थर
मार कर 
कत्ल
कर दिये गये 

सपने
पर
सियासत 

कुछ
मालायें 
कुछ
मूर्तियाँ 
कुछ
जयजयकार 

एक
खींच कर 

लम्बा
कर दिये गये 
स्प्रिंग
का दोलन 

एक
आन्दोलन 

पत्थर से मर रहे जवान 

वन्दे मातरम 
बुलवा तो रहा है
कोई 

देख रहा है
उसे 
आज
पूरा हिंदुस्तान 

‘उलूक’
बेवकूफ 
हमेशा की तरह 
अंगूठा चूस 

सोचते हुऐ 
उसे
लेमनचूस 

नतमस्तक
चरणों में 

लिखा
उसका 
नहीं
समझ पाने वाले 

पाठकों
के लिये 
बनाता 

हमेशा
की तरह 
बकवासों
को 
मिला मिला
कर 
कोई जूस 

सोचता हुआ 

बकवास 
करने वालों
की 
कोई नहीं 
होती है
पूछ 

जय हिन्द 
भारत माता
की जय 
वन्दे मातरम
की 
जरूरी है
बहुत 
कब्रगाहों
में
भी गूँज। 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

खुजली ‘उलूक’ की

युद्ध
हो रहा है

बिगुल
बज रहा है

सारे सिपाही
हो रहे हैं

अपने अपने
हथियारों
के साथ

सीमा पर
जा रहे हैं

देश के
अन्दर
की बात
हो रही है

कुछ ही
देश प्रेमी हैं
बता रहे हैं

बाकी सब
देश द्रोही हैं
देश द्रोहियों
से आह्वान
कर रहे है

देश प्रेमियों
को चुनने
को क्यों
नहीं आगे
आ रहे हैं

देश को
किसलिये
थोड़ा सा
भी नहीं
बचा रहे हैं

देश
द्रोहियों से
कह रहे है
थोड़ा सा
कुछ तो
शरमायें

कुछ
देश भक्त
गिड़गिड़ा
रहे हैं

फालतू में
कुछ
देश द्रोहियों
के चरण
पकड़े थे
पिछली बार

आज खुल
कर बता
रहे हैं

प्रायश्चित
कर रहे हैं

इस बार
वो भी
देशभक्तों
के साथ
आ रहे हैं
समझा रहे हैं

समझिये
देश भक्त
देशभक्ति
चुनाव और
लोगों की
सक्रियता

सभी कर
रहे हैं
कुछ
ना कुछ

देश के
लिये
शहीद
होने
जा रहे हैं

‘उलूक’
तेरे दिमाग
में भरे
हुऐ गोबर
के कीड़े

बहुत
ज्यादा
कुलबुला
रहे हैं


मत खोला
कर अपना
मुँह इस
तरह से

तेरे बारे में
बहुत से
लोग लगे हैं
समझाने में
बहुत से
लोगों को
बहुत कुछ

पता नहीं
इतना एक
उल्लू से
किसलिये
लोग
घबरा रहे हैं

कल किसे
पता है
कौन रहेगा
देश भक्तों
के साथ

किसे
मालूम है
कौन रहेगा
देश द्रोहियों
के साथ

कौन से
देश भक्त
अभी जा
रहे हैं
या
कुछ देर
के बाद
आ रहे हैं

जो अभी हैं
वो रहेंगे
जो नहीं हैं
वो क्या करेंगे

किसे पता है
किसे पड़ी है
अपनी अपनी
खुजली लोग
अपने आप
खुजला रहे हैं ?

चित्र साभार: ClipartFest

मंगलवार, 9 जून 2015

हाय मैगी किसने किया ये हाल तेरा हिसाब नहीं लगा पा रहे हैं

हाय मैगी
तू शहीद होने
जा रही है और
हम कुछ नहीं
कर पा रहे हैं
बहुत शर्म
आ रही है
कैसे हुआ
किसने किया
पता ही नहीं
कर पा रहे हैं  

फिर कैसे कहा
जा रहा है

समझ में नहीं
आ रहा है कि
अच्छे दिन
आ रहे हैं
बगुले खुश हैं
मेरे आसपास के
भजन गा रहे हैं
मछलियाँ 
अब
दिख रही हैं 
सतह पर
घड़ियाल तक
आँसू नहीं
बहा रहे हैं
अमन है चैन है
बिक रहा है
बहुत सस्ते में
सब ही खरीद
कर अपने अपने
घर परिवार
के लिये लिये
जा रहे हैं
‘उलूक’ ही बस
एक है इन
सब के बीच में
जिसके गले में
ही कहीं शब्द
अटक जा रहे हैं
गीत गाना चाहता है
मैगी तेरे वियोग का
मगर सुर ही
बिगड़ जा रहे हैं
कब लौटेगी
कैसे लौटेगी
चिंता हो रही है
लोग समझ
नहीं पा रहे हैं
थोड़ी सी ही सही
सांत्वना मिली है
जब से सुना है
बाबा रामदेव
देश के लिये
देश की मिट्टी
से बनी देश
वासियों के लिये
जल्दी ही खुद
बनाने जा रहे हैं।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

रविवार, 20 अप्रैल 2014

वोट देना है जरूरी बहुत महंगा वोट हो रहा है

बहुत ज्यादा नहीं
बस थोड़ा बहुत
ही तो हो रहा है
कहीं कुछ हो रहा है
तभी तो थोड़ा सा
खर्चा भी हो रहा है
आय व्यय
लेखा जोखा
कोई कहीं भी
बो रहा है
तुझे किस बात
की परेशानी है
तू किस के टके
पैसे के लिये
रो धो रहा है
देश का सवाल है
देश के लिये
ही हो रहा है
कुछ किताबों में
लिखा जा रहा है
कुछ बाहर बाहर
से ही इधर उधर
भी हो रहा है
मेहनत का नतीजा है
खून और पसीना
एक हो रहा है
पाँच साल में
पाँच सौ गुना
बताना जरा सोच कर
और किधर हो रहा है
शेयर बाजार में
उतार और चढ़ाव
इस से ही हो रहा है
तेरे देश के ही
नव निर्माण के लिये
नया बाजार नई दुकानों
और नये दुकानदारों
के साथ तैयार अब
फिर से हो रहा है
वोटरों की संख्या से
कुल खर्चे को भाग
क्यों नहीं दे रहा है
पता चलेगा तुझे
वोट का भाव
इस बार कितना
ज्यादा हो रहा है
पाँच साल में
हजार का करोड़
कहाँ हो रहा है
देश वाले ही हैं
जिनकी तरक्की में
तेरा योगदान भी
तो हो रहा है
उठ ‘उलूक’
दिन में बैठा
चैन से कैसे
तू सो रहा है
देने क्यों नहीं
जा रहा है वोट
वोट देने से
कौन सा कोई
शहीद हो रहा है ।

शनिवार, 22 जून 2013

कुछ नहीं कुछ बहुत कुछ


कुछ लोग 
बहुत थोडे़ शब्दों में 
बहुत कुछ 
कह ले जाते हैं 

उनके शब्द 
उनकी तरह सुन्दर होते हैं 

उनके बारे में 
कुछ
कहाँ 
बता जाते हैं ?

शब्द
मेरे 
पास भी नहीं होते हैं 
ना ही
मेरी 
सोच में ही आ पाते हैं 

किसे बताउँ 
क्या बताउँ 
कैसे कैसे लोग 
क्या क्या कर ले जाते हैं 

कुछ लोग
बस 
खाली बैठे बैठे 
शर्माते हैं 

सीख क्यों नहीं 
लेते
कुछ शब्द 
ऎसे
जो सब 
लोग कह ले जाते हैं 
सब लोग समझ जाते हैं 

सबके आस पास 
सब कुछ हो रहा होता है 
हर कोई किसीचीज पर
कुछ 
ना कुछ कह रहा होता है 

कुछ लोग
वो 
सब कुछ
क्यों 
नहीं देख ले जाते हैं 

जिस पर 
लिखने से 
लोग शोहरत पा ले जाते हैं 

समान समान में 
विलय हो जाता है 
सिद्धान्त पढ़ते पढ़ाते भी कुछ लोग
नहीं 
समझ पाते हैं 

कुछ लोग ही तो 
होते हैं
जो कुछ 
लोगों का कहे को ही
कहा है 
कहे जाते हैं 

लोग लोग होते हैं 
इधर होते हैं या उधर हो जाते है 
कुछ लोग ही जानते हैं
जाने वाले 
किधर किधर जाते हैं 

बहुत से शब्द 
बहुत से लोगों के पास हो जाने से 
कुछ भी नहीं कहीं होता है 

कुछ लोगों के 
कुछ शब्द ही 
कुछ कहा गया है की श्रेणी में आ पाते हैं 

मेरे तेरे और 
उसके जैसे लोग तो
आते हैं और 
चले जाते हैं 

कुछ लोगों के 
लिये ही होती हैं 
वही कुछ चीजें 
उन का लुफ्त कुछ लोग ही उठा पाते हैं 

कहीं से शुरु कर 
कहीं पर खतम कर के देख ले 

आज कल हो 
या परसों 
कुछ लोग ही दुनियाँ को चलाते हैं 

बहुत से लोग 
मर भी जायें 
कुछ लोगों के लिये
से
कुछ 
नहीं होता है 

शहीद
कुछ 
लोगों में से ही गिने जाते हैं 

कुछ बातें 
कुछ लोगों की 
कुछ लोग ही समझ पाते हैं । 

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

शुक्रवार, 21 जून 2013

मदद कर मदद के लिये मत चिल्ला



अरे !
तू तो
मत चिल्ला
हमेशा ही तो
है यहाँ रहता
तू थोडे़ ना
है कहीं फंसा
अपनी गिनती
आपदाग्रस्तों में
मत करवा
मान भी जा
सड़कें बह गयी
सब पानी में
तो क्या हुआ
कहीं को मत जा
सैलानियों की
मदद कर
आधे बड़ आ
राष्टृ की धारा में
हमेशा ही है
जब तू बहा
छोटी बात
इस समय
तो मत उठा
पहाडी़ पहाडो़
का दर्द समझ
बस पहाडी़
राज्य एक बना
देश के नाम
पर करता रहा है
हमेशा जब तू
जान कुर्बान
आज भी मौका
जब मिला है
शहीद हो जा
वैसे भी करना है
एक दिन यहाँ
से पलायन तुझे
घर बह गया तेरा
अच्छा हुआ
खंडहर की
फोटो बनने
से तो रह गया
कल वो सड़क
फिर बनायेगा
कुछ अपना लेगा
कुछ ऊपर
दे आयेगा
तू फिर से
मंदिर को सजा
धार्मिक पर्यटन की
सोच को बढा़
हिमालय के रंग
अभी भी बदलेंगे
सूरज के साथ
हमेशा की तरह
कुछ नये पोस्टर
और छपवा
देश पर आयी
है आफत जब
कभी पहले भी
तूने कभी
कदम पीछे
कहाँ है खीँचा
एक बार फिर
कदमताल करने
का मन बना
वक्तव्य छप
रहे हैं चुनिंदा
यहाँ छपे
हैं जो आज
कल के
अखबार में
तू भी
कोशिश कर
एक दो
कमेंट दे जा
फेसबुकिया
ट्विटिया
कुछ भी कर ले
बस हल्ला
मत मचा ।

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

दंगे

नटखट
चूहे की
खटखट से
चौंक कर

लटपट
करते उठी

तुरंत फेंक
रजाई

चटपट गिरा
जमीन पर
दौड़ पड़ी
रसोई
की ओर

हुवी भी
नहीं थी भोर

अल्साये
अंधेरे में
मलते
हुवे आंख

भूल गयी
समय
की ओर
देखना भी

रोज
की तरह
चूल्हे पर
चाय की
केतली चढ़ा

जोर से
बड़बड़ाई

माचिस
की डिब्बी
को ढूंढते
खिड़की के
दरवाजे से
टकराई

हमेशा
की तरह
बाहर आयी

फिर
अचानक
बैठ गयी
दरवाजे पर

याद
आ गया
उसे फिर

कि

बेटा तो
दंगे की भेंट
चढ़ गया

किसी
और के
बेटे को
बचाते बचाते

और
सुबह की
चाय का पानी

खौलता रहा
केतली में ।