उलूक टाइम्स: सकारात्मक
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शनिवार, 29 मई 2021

किसने कहा है बकवास पढ़ना जरूरी है ‘उलूक’ की ना लिखा कर कहकर मत उकसाओ


उड़ रहे हैं काले कौऐ आकाश दर आकाश
कबूतर कबूतर चिल्लाओ
कौन बोल रहा है सच
रोको उसे ढूँढ कर एक गाँधी कहीं जा कर के कूट आओ

इस से पूछो उस से पूछो
कहीं से भी पूछ कर कुछ उसके बारे में पता लगाओ
कैसे आगे हो सकता है कोई उसका अपना उससे
कहीं तो जा कर के कुछ आग लगाओ 

कुछ मर गये कुछ आगे मरेंगे
अपने ही लोग हैं सबकी फोटो सब जगह जा लगाओ
कुछ रो लो कुछ धो लो कुछ पैट्रोल ले लो हाथ में और जोर से आग आग गाओ 

उल्लू लिख रहा है एक अखबार हद है
कुछ तो शरम करो और कुछ तो शरमाओ
रोको उसे कुछ ना कुछ करके
इस से पहले सब लिख ले बेशरम कुछ कपड़े दिखाओ 

उसका लिखा है किसने समझना है तुम भी जानते हो
बेकार का दिमाग मत लगाओ
पढ़ने कोई नहीं आता है
बस देखने आता है कौन कौन पढ़ गया आके
समझ जाओ

सकारात्मक होना बहुत अच्छी बात है कौन रोकता है
तुम अपनी कुछ सुनाओ
बहुत ही नकारात्मक है वही लिख फिर रहा है रोक लो
कह दो इतनी भीड़ ना बनाओ

कुत्ता सोच लो दिमाग में कौन रोकता है
पट्टा और जँजीर की सोच भी जरूरी है
भागने ना दो किसी की सोच को लगाम कुछ अपनी लगाओ

अपनी अपनी सोचना बहुत ही जरूरी है
इस से पहले मौत आगोश में ले जाये कोरोना के बहाने
कुछ नोच लो कुछ खसोट लो यूँ ही कहीं से कुछ भी

रो लेना गिरीसलीन लगा के आँखों के नीचे जार जार
अखबार हैं ना
कहना नहीं पड़ेगा किसी से भी फोटो खींच कर के ले जाओ

‘उलूक’ सब परेशान हैं
तेरी इस बकवास करने की आदत से
कहते भी हैं हमेशा तुझसे कहीं और जा कर के दिमाग को लगाओ

तुझे भी पता है औकात अपनी
कितनी है गहरी नदी तेरी सोच की
मरना नहीं होता है जिसमें शब्द को
तैरना नहीं भी आये
गोता लगाने के पहले चिल्लाता है
आओ डूब जाओ।

चित्र साभार: https://pngio.com/images/png-b2702327.html

बुधवार, 11 मार्च 2020

लिखा सबका नहीं फैलता है कागज पर कुछ का बहता चला जाता है सलीके से: यूँ ही एक खोज



खुलता रोज है
एक पन्ना
हमेशा

खुलता है
उसी तरह

जैसे
खोला जाता है
सुबह

किसी
दुकान का शटर

और
बन्द
कर दिया जाता है
शाम को
आदतन

पिछले
कई दिनों से

तारीख
बदल रही है
रोज की रोज

मगर
कलम है
लेट जाती है
थकी हुयी सी
बगल में ही
सफेद पन्ने के

सो जाती है
आँखे
खुली रख कर

देखने के लिये
कुछ
रंगीन सपने
गलतफहमी के

लिख सके
कुछ
सकारात्मक सा

फजूल
बक बक करते करते
सालों हो गये हों जब

लिख दिये होंगे
अब तक तो
सारी अंधेरी रात के
सारे कालेपन

सोच कर
कुछ नयापन
कुछ पुराना
बदलना चाह कर

अपनी
जीभ का स्वाद
ढूँढने
निकल पड़ती है
नींद में

कुछ नया
खुली आँखों से
देखते देखते
ओढ़े हुऐ
सकारात्मकता

फैली हुयी
भीड़ के
चेहरे दर चेहरे

भीड़ दर भीड़
पढ़ाती
एक भीड़
अकेले

अकेले को
अलग

अलग
बनाने के लिये
एक भीड़

भीड़
जो
बहुत जरूरी
हो गयी है आज

सारे चेहरे
लहाराते हुऐ
ओढ़ी
सकारात्मकता

जो ढक लेती है
पूरी भीड़ को
बदल जाती है
सारी परिभाषाऐं
बहती हुई
भीड़ के अंदर अंदर

दूर
किसी
ठूँठ पर बैठे
अन्धेरे में

आँखे
चौंधियाता
उलूक
प्रकाशमान
होता हुआ

कलम की
नोक से
कुरेदते हुऐ
अपने दाँतो के बीच
ताजी नोची लाश के
चिथड़े को

खुश
हो कर
काम आ गयी
कलम की नोक पर

अपनी
पीठ ठोक कर
अपने को खुद
दाद देता

नकारात्मकता
को
लीप देने के लिये

समय के गोबर
और
मिट्टी के साथ
अपने
चारों तरफ

और
मदहोश होता
खुश्बू से
फैलती हुई

मानकर
कुछ भी लिखा
इसी तरह
फैलता
चला  जाता है

बहता
नहीं है
निर्धारित
रास्ते पर ।

चित्र साभार:
 https://www.graphicsfactory.com/

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

नकारात्मकता फैला कर सकारात्मकता बेचने वालों के लिये सजदे में सर झुका जा रहा था

बिल्लियों के
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया

सुबह का
अखबार
रोज की तरह

आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया

खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी

चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी

मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है

खबर में
समझाया गया था

बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था

सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था

खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी

पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था

बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं

बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था

चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे

दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे

बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था

ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’

बे‌ईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ

रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर

हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

सकारात्मक और नकारात्मक हवा को देखने के नजरिये से पता चल जाता है


कभी लगता है आता है 
कभी लगता है नहीं आता है 

जब बहुत ज्यादा भ्रम होना शुरु हो जाता है 
सोचा ही जाता है 
पूछ ही लेना चाहिये पूछने में किसी का क्या जाता है 

ऐसा सोच कर
जब जमूरा उस्ताद के धौरे पहुँच जाता है 
तो उस्ताद भी मुस्कुराते हुऐ बताता है 

बहुत आसान सा प्रश्न है जमूरे 

देख अपने ही सामने से
एक खाली जगह को देखते देखते 

सारी जिंदगी एक आदमी
सोच सोच कर 
कुछ बन रहा है कुछ बन रहा है 
देखते सोचते
गुजर भी जाता है 

उसके मरने के बाद
उसका जैसा ही दूसरा
इसी बनने की बात को
आगे बढ़ाता है 

बन रहा है की जगह
पक्का बन रहा है
फैलाना शुरु हो जाता है 

सकारात्मक कहा जाता है 

ऐसे ही
सकारात्मक लोगों में से ही 
सबसे सकारात्मक को 
बन रहा है कहने को
आगे बढ़ाने का
ठेका भी दिया जाता है 

नकारात्मक
खाली खाली 
रोज खाली जगह को देखने
खाली चला आता है 

देखता है सोचता है 
खाली है खाली है कहते कहते
खाली बेकार में आता है
और
खाली चला जाता है 

ऐसे खाली लोगों को 
खाली ही रहने दिया जाता है 

‘उलूक’ 
उसी खाली जमीन को देखते देखते ऊँघता हुआ
पेड़ की किसी डाल पर 
पंजे से अपने कान खुजलाता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com