उलूक टाइम्स: सपाट
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बुधवार, 30 नवंबर 2016

समीकरण

गणित
नहीं पढ़ी है
के बहाने
नही चलेंगे
समीकरण
फिर भी
पीछा नहीं
छोड़ेंगे

समीकरण
नंगे होते हैं

अजीब
बात है
समीकरण
तक तो
ठीक था
ये नंगे होना
समीकरण का
समझ में
नहीं आया

आयेगा
भी नहीं
गणित के
समीकरण में
क या अ
का मान
हल करके
आ जाता है
हल एक भी
हो सकता है
कई बार
एक से
अधिक भी
हो जाता है

आम
जिंदगी के
समीकरण
आदमी के
चाल चलन
के साथ
चलते हैं

नंगे आदमी
एक साथ
कई समीकरण
रोज सुबह
उठते समय
साबुन के साथ
अपने चेहरे
पर मलते हैं

समीकरण
को संतुष्ठ
करता आदमी
भौंक भी
सकता है
उसे कोई
कुत्ता कहने
की हिम्मत
नहीं कर
सकता है

समीकरण
से अलग
बैठा दूर
से तमाशा
देखता
क या अ
पागल बता
दिया जाता है

आदमी
क्या है
कैसा है
उसे खुद
भी समझ
में नहीं
आता है

सारे
समीकरणों
के कर्णधार
तय करते हैं
किस कुत्ते
को आदमी
बनाना है
और
कौन सा
आदमी खुद
ही कुत्ता
हो जाता है

जय हो
सच की
जो दिखाया
जाता है

‘उलूक’
तू कुछ भी
नहीं उखाड़
सकता
किसी का
कभी भी
तेरे
किसी भी
समीकरण
में नहीं होने
से ही तेरा
सपाट चेहरा
किसी के
मुँह देखने
के काम
का भी
नहीं रह
जाता है ।

चित्र साभार: Drumcondra IWB - Drumcondra Education Centre

रविवार, 8 जून 2014

ऊबड़ खाबड़ में सपाट हो जाता है सब कुछ

कई
सालों से

कोई
मिलने आता
रहे हमेशा

बिना
नागा किये
निश्चित समय पर
एक सपाट
चेहरे के साथ

दो ठहरी
हुई आँखे
जैसे खो
गई हों कहीं

मिले
बिना छुऐ हाथ
या
बिना मिले गले

बहुत कुछ
कहने के लिये
हो कहीं
छुपाया हुआ जैसे

पूछ्ने पर
मिले हमेशा

बस
एक ही जवाब

यहाँ आया था

सोचा
मिलता चलूँ

वैसे
कुछ खास
बात नहीं है

सब ठीक है

अपनी
जगह पर
जैसा था

बस
इसी जैसा था
पर उठते हैं
कई सवाल

कैसे
कई लोग
कितना कुछ

जज्ब
कर ले जाते हैं
सोख्ते में
स्याही की तरह

पता ही
नहीं चलता है

स्याही में
सोख्ता है
या सोख्ता में
स्याही थोड़ी सी

पर
काला

कुछ
नहीं होता
कुछ भी

कहीं
जरा सा भी

कितने
सपाट
हो लेते हैं
कई लोग

सब कुछ
ऊबड़ खाबड़
झेलते झेलते
सारी जिंदगी ।