उलूक टाइम्स: सम्मानित
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रविवार, 31 दिसंबर 2023

‘उलूक’ बदतमीज है गांधी गांधी करता है मौक़ा लगे उसे एक लात कभी मार कर आयें



घास ना भी खाएं कोई ऐसी बात नहीं है
बस जुगाली जरूर करते चले जाएं
दांत खट्टे कर भी दिए हों किसी ने
जरा सा भी ना घबराएं थोड़ी हवा चबाएं

दीमकों ने खोखली कर भी दी हो
चारों तरफ की सारी कुर्सियां
बस मुस्कुराएँ
पालथी मार कर बैठने की जमीन पर करें कोशिश
बस एक दरी घर से ले आयें

हो रहा है हो रहा है बहुत कुछ हो रहा है ही बस कहें
देखें सुने और केवल यही फैलाएं
बातें बनाना सीखने सिखाने के स्कूल कालेज खोलें
खुद भी इनाम लें मशहूर हो जाएँ

करें कुछ भी घर में अपने गली में बस शेर हो जाएँ
शेर के ऊपर भौंके उसे कुत्ता बनाएं
सर्वश्रेष्ठ होने का ढिंढोरा खुद भी पीटे
जेबें भर कर पिटे पिटवाये भी इस काम में लगाएं

ज़माना कम से कम कपड़ों का है रुमाल पहनें
पर घर घर एक हम्माम जरूर बनवाएं
शेर और शायरी करते रहें मुहावरे याद करें
और लोगों को बुला कर कहीं मंच से सुनाएँ

दूध से धुले लोग हैं सम्मानित हैं
इज्जत उतारें उतारने दें
परेशान ना होवें खिलखिलाएं
‘उलूक’ बदतमीज है
गांधी गांधी करता है
मौक़ा लगे उसे एक लात
कभी मार कर आयें |

चित्र साभार https://www.dreamstime.com/

रविवार, 30 अगस्त 2015

कुछ समझ आता है ? : रवीश कुमार सही में दलाल है - रवीश कुमार खुद ही बताने आता है

अक्ल
ठिकाने
लग जाती है

जब
कभी बात
ऐसी ही कुछ
अजीब सी

सामने से
आ जाती है

अच्छा खासा
तमीजदार
ईमानदार
इज्जतदार

नजर
आने वाले
एक आदमी की
जबान कहने
लग जाती है

खुद
उसी के लिये
कि वो एक दलाल है

ना उसके पास
माल नजर आता है

ना ही किसी
बड़ी किताब में
उसे कहीं मालामाल
कहा जाता है

अब
कैसे बताये
कौन समझाये

बिना
दलाली
की डिग्री
पास किये

कोई कैसे
ऐसे वैसे

दलाल भी
हो जाता है

कहने से
क्या होता है
सबूत नहींं
हो भी अगर

फर्जी एक
कहीं से

जुगाड़ कर के

लाना भी
बहुत जरूरी
हो जाता है

दलालों की
जमात को
दलाल कह देने से
यही सब हो जाता है

इसीलिये
इस जमाने में

शब्दकोश को
खाली खोल के
शब्दों को नहीं
चुना जाता है

बाहर
निकाल कर
शब्द

अल्पसंख्यक है
या
बहुसंख्यक है
देखने के लिये
तोला भी जाता है

ज्यादा
चोरों के बीच
जैसे अब एक
ईमानदार होने
का मतलब ही
चोर हो जाता है

नहीं भी
होता है तो
किसी तरह घेर कर
बना दिया जाता है

सोचता
क्यों नहीं
कहने से पहले

दलाल होना
बिना दलाली किये
और
कह देना
दलाल खुद को ही

बहुत बड़ा
एक जुर्म
माना जाता है

बिना माल के
मालामाल हुऐ बिना
मान लेने वाले को

आज दलाल कतई
नहीं माना जाता है

बहुत अच्छा
करता है
‘उलूक’

दलाली
किये बिना
दलाल होने की
सोचता ही नहीं है

होने होने
होते होते
से पहले ही
शरमा जाता है ।

चित्र साभार:
http://www.shabdankan.com/2015/08/ravish-kumar-sahi-me-dalal-hai.html