उलूक टाइम्स: सरकस
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बुधवार, 22 अप्रैल 2015

काम हो जाना ही चाहिये कैसे होता है इससे क्या होता है

क्या बुराई है
सीखने में कुछ
कलाकारी
जब रहना ही
हो रहा हो
किसी का
कलाकारों के
जमघट में
अपने ही
घर में
बनाये गये
सरकस में
जानवर और
आदमी के
बीच फर्क को
पता करने को
वैसे तो कहीं
कोई लगा
भी होता है
आदमी को
पता भी होता है
ऐसा बहुत
जगह पर
लिखा भी
होता है
जानवर को
होता है
या नहीं
किसी को
पता भी
होता है
या नहीं
पता नहीं
होता है
आदमी को
आता है
गधे को बाप
बना ले जाना
अपना काम
निकालना
ही होता है
इसके लिये
वो बना देता है
किसी शेर को
पूंछ हिलाता
हुआ एक कुत्ता
चाटता हुआ
अपने कटे हुए
नाखूँनों को
निपोरता
हुआ खींसें
घिसे हुऐ तीखे
दातों के साथ
कुतरता हुआ घास
तो भी
क्या होता है
काम को होना
ही चाहिये
काम तो
होता है
आदमी आदमी
रहता है
या फिर एक
जानवर कभी
हो लेता है
‘उलूक’ को नींद
बहुत आती है
रात भर
जागता भी है
दिन दोपहर
ऊँघते ऊँघते
जमहाईयाँ भी
लेता है ।
चित्र साभार: www.englishcentral.com

बुधवार, 11 सितंबर 2013

उसका जरूर पढ़ना पर लिखना खुद अपना

ये नया
आईडिया
तेरे दिमाग में
किसने आज
घुसा दिया

वैसे भी तू
कुछ बुरा
तो नहीं
दिखता है
कुछ अजीब
सा क्यों आज
तुझको बना दिया

किसी ने
कहा तुझसे
मोर पंख
अगर कहीं
पर एक
चिपकायेगा
तो कौऎ
से मोर तू
जरूर
हो जायेगा

कोई कुछ भी
लिख रहा हो
उससे क्या
हो जायेगा

तू बहुत अच्छी
बकबास
कर लेता है
उसकी तरह
लिखने को
अगर जायेगा

कैसे सोच
लिया तूने
कवि सम्मेलन
के निमंत्रण
पाना शुरु
हो जायेगा

बच
अगर अभी भी
बच सकता है

लिख वही
जो तू खुद
लिख सकता है

छंद अलंकार
व्याकरण को
बीच में लायेगा
जो है वो भी
नहीं रहेगा
जो बनेगा
उसको कोई
सरकस वाला
जरूर उठा
के ले जायेगा

ये लेखन
की दुनिया
बहुत बड़ी
भूलभुलईया है

इसमें ज्यादा
दिमाग अगर
लगायेगा

कहाँ घुस के
कहाँ
निकल आया
कोई पता भी
नहीं कर पायेगा

अभी जाना
जाता है
पहचाना
 जाता है
कुछ आदमी
जैसा है
आदमियों
के बीच में
ये भी
माना जाता है

जैसा है
वैसा ही रहेगा
कुछ पायेगा
नहीं भी तो भी
ज्यादा कुछ
नहीं गवांऎगा

बंदर गुलाटियाँ
मारता हुआ ही
अच्छा लगता है

खुद सोच
कैसा दिखेगा
अगर कहीं वो
दो टांगो पर
चलता हुआ
देखा जायेगा

तू क्या
समझता है
जो जैसा
लिखता है
वो वैसा ही
दिखता है
बहुत से हैं
मेरी तरह
के बेईमान
यहाँ पर
जिनका ब्लाग
ईमानदार
ब्लाग के
नाम से
चलता है

 देखा देखी
और
भीड़ तंत्र के
जादू से निकल
कोशिश कर
और
अपनी टांगों
में ही चल
ऎसा ना हो
कहीं सब कुछ
तेरे हाथ
से जाये
कहीं निकल
अपनी टाँग
भी करे
चलने से
इनकार
और
बैसाखी जाये
हाथों से
दूर फिसल

बहुत कुछ है
जो तेरे पास है
और
तेरा अपना है
सामने वाले
के पास
दिख रहा
ताजमहल
खुद उसी
के लिये
एक सपना है

अपनी सुन्दर
झोपड़ी को
सबको दिखा
खूब जम
के इतरा
सब के लिखे
को पढ़ जरूर
किसी ने
नहीं रोका है
अपनी
बक बक को
बक बक
ही रहने दे
कविता को
बस एक
पाजामा
पहनाने से
ही तो
तुझे टोका है ।

बुधवार, 1 अगस्त 2012

जोकर बचा / सरकस बच गया

जोकर ही
चले जायेंगे
तो सरकस
बंद हो जायेँगे

ये बात
किसी किसी
के समझ में
बहुत आसानी
से आ जाती है

जो जोकरों
को बर्बाद
होने से बचा
ले जाती है

सरकार भी
बहुत संजीदगी
से अपनी
जनता के बारे
में सोचती है

किसी के
लिये कुछ
करे ना करें
जोकरों के
लिये जरूर
एक कुआँ
कहीं ना कहीं
खोदती है

ये बात
सब लोग
नहीं जान
पाते हैं

कुछ लोग
जोकरों के
बीच
रहते रहते
जोकरिंग में
माहिर हो
जाते हैं

जोकरों
की खातिर
खुद भी
जोकर
हो जाते हैं

जोकरों की
समस्या लेकर
सरकार के
पास बार बार
कई बार जाते हैं

सरकार में
भी बहुत
से जोकर
होते हैं
जिनको ये
जोकर ही बस
पहचान पाते हैं

जोकरों
की खातिर
जोकर होकर
सरकार के
जोकरों से
जोकरों
के लिये
जोकरिंग
करने के
लाईसेंस का
नवीनीकरण
करा ही लाते हैं

सरकस को
बरबाद होने
से बचा
ले जाते हैं

ये बात
जोकरों
की सभा में
सभी जोकरों
को बुला
कर बताते हैं

जोकर लोग
जोर जोर
से तालियाँ
बजाते हैं
सरकार की
जयजयकार
के नारे साथ
में लगाते हैं

सरकारी
जोकर बस
दांत ही
दिखाते है ।