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बुधवार, 3 जनवरी 2024

रोज पढ़े फिर याद करे ‘उलूक’ उल्लू का अखबार


उल्लू के अखबार में छपे सफ़ेद ही समाचार
काले पढ़ नहीं पाते कुछ गोरे डालें बस अचार

काला काला देखता सफ़ेद देखता एक के चार
इन्द्रधनुष छुट्टी ले बैठा बंद कर पानी की बौछार

मतलब लिखता बेमतलब का रोज बजाता पौने चार
किसने पढ़ना किसने गुनना पत्ते खेल रहे सरकार

जोकर के हाथों में सब कुछ इक्के गुलाम बादशाह बेकार
याद करें कुछ बाराहखडी कुछ करें दिन फिरने का इंतज़ार

फिर से फिर फिर आयेंगे अच्छे दिन बारम्बार हर बार
खींच तान कर नींद निकालो चिन्ता चिता मान कर यार

लिख कर मिटा मिटा कर लिख रेत रेत सपने हजार
रोज पढ़े फिर याद करे ‘उलूक’ उल्लू का अखबार

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

बुधवार, 28 जुलाई 2021

बेशरम ‘उलूक’ है शरम किसी की तीमारदार है खरीददार रखियेगा


बेशरम
कुछ दिन शाँति रही
फिर आ गया लिखने
शरम
कह दे मुआफ करियेगा

समझ में
आ गया तो ठीक
नहीं भी आया तो भी ठीक
कह ले
दिल साफ रखियेगा

बताना
जरूरी है
काम दिये गये और किये गये कुछ
जरूर कुछ हिसाब रखियेगा

बात
समझानी है
कुत्ता घुमाने के काम की
हजूर
कान खोल कर जरा साफ रखियेगा

बहुत
बड़ी है मगर है
तमन्ना है
कुछ कर दिखाने की
सब की होती है याद रखियेगा

हाथ में
दी जाती है
बस पूँछ कुत्ते की
सम्भाल कर
रखने के लिये
उसके बालों के लिये
खिजाब रखियेगा

किसी के
हाथ में सिर दिया जाता है
किसी को पट्टा
किसी को दी जाती है चेन
होशो हवाश रखियेगा

कुत्ता
घुमाने का काम
कभी हो तो कैसे हो
मिलते नहीं
सभी एक साथ
डर है
आदेश है एक सरकार है
जी ओ की किताब रखियेगा

लिखना लिखाना
लिख दिया गया है
किसी का किसी को बताना
गजब है
बहूत ही असरदार है
कुछ ख्वाब रखियेगा

किसी के लिखे का
किसी का
कभी भी ना देख पाना

‘उलूक’ अंधा है
या
किसी की आँख बीमार है
याद रखियेगा ।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बड़े काम की खबर ले कर आया है पैंसठ से ऊपर के बुड्ढे मास्टरों के लिये आज अखबार

 

गजब की खबर है बुड्ढे के लिये 
तेल पिला लाठी को
दौड़ लगाने को हो जा फिर से तैयार

सत्तर पर ही सही 
सूट भी नयी सिला कर रख ले
दो चार एक इस बार 

कोई बात नहीं
इसमें तेरे लिये
अगर एक जवान को
चालीस तक मिलती है 
या नहीं मिलती है नौकरी
आज के जमाने में
कुछ हजूर हजूर करके
कुछ खजूर पेश करके सरकार 

क्या होता है याद रखना पड़ेगा 
कि पचास पर कर दिया जायेगा
कार्यमुक्त देकर अवकाश
लगेगा अगर अपने आदमी की तरह
पेश नहीं आ पा रहा है कोई 
मान लिया जायेगा हो चुका है बेकार 

चिन्ता की बात केवल आम के लिये है
इसलिये खास होने के लिये 
बनाना शुरु किया जा सकता है
बेशर्मी की मिट्टी मिले 
मक्खन लगे सीमेंट के साथ
हवा में ही हवा हवा टाईप का कोई एक आधार 

कच्ची जमीन ढूँढ कर कहीं भी 
सस्ते दाम वाली दिखने में कामवाली 
ढक ढका कर हरी पीली चमकीली सोच से ऐसी 
जो धोखा दे सकें समय पर उड़ा कर हवा में 
चोरी किये कहीं से दो चार 
चलते फिरते जमाने के दौड़ लगाते सुविचार 

जिन्दगी भर पढ़ाई लिखाई को छोड़ 
बाकी कुछ भी कर लेने वाले मास्टरों का
होने वाला है सत्कार 

करेगी इसी उम्र को पार कर बन चुकी 
जवान पीढ़ी के द्वारा छाँट कर खुद के लिये 
बूढ़ी हो चुकी कोई एक सरकार 

‘उलूक’ 
इन्तजार कर आँखों के कुछ और 
कमजोर हो लेने का साल पाँच एक तक और 
तब तक डाल अच्छी बची खुची सोच का
तेल डाल कर अचार 

फिर देखना
लाठी लेकर आते हुऐ जवान कुलपति
सत्तर साल के 
लगाते नये जमाने की
 उच्च शिक्षा का बेड़ा पार । 

चित्र साभार: https://www.thegazelle.org/

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

झटके का नहीं आता है खेल उसे हलाल सब को सिखाने की जिसने मन में ठानी है

सीधे सीधे
लिख देने में 

क्या परेशानी है 

किसलिये 
टेढ़ा कर के ही 

बेचने की 
ठानी है 

सब की 
समझ में 
सब बात 
आती नहीं है 

हमने मानी है 

खिचड़ी 
बना कर उसकी

रोज परोस देना 
मनमानी है 

बड़ा देश 
अनगिनत लोग

समस्याएं
आनी जानी हैं 

आदत 
लक्ष्मी की 
ना टिकने की 

पुरानी है 

सरकार 
बदल देने से 

थोड़े
बदल जानी हैं 

नाली 
छोटी 
पैसों की 

अल्पमत 
गरीब ने
बनानी हैं 

किसे पता है 
किस 
अमीर के 
सागर में

जा समानी हैं 

गालियाँ 

बेचारी 
बहुमत की 
सरकार को
खानी हैं 

बस कुछ 
शुरु ही हुयी है 

छोटी सी
कहानी है 

मेरे घर की 
नहीं राख 

कहीं दूर के 
जले घर की 
पुरानी है 

ट्रेलर के 
मजे लीजिये 
मौज से 

हीरो 
मान लो
हो चुका 
अब

खानदानी है 

खुद 
सोच लेना 
पूरी कहानी 
हड़बड़ी में 

नादानी है 

जरा रुक के 

पूरी 
फिल्म 
अभी तो 
सामने से

आनी है 

झटके का 
नहीं आता है
खेल उसे 

बेवकूफ ‘उलूक’ 

हलाल 
सब को 
सिखाने की 

जिसने
मन में ठानी है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

लम्बी खींचने वालों की छोड़ ‘उलूक’ तुझे अपने कुर्ते को खुद ही खींच कर खुद का खुद ही ढकना है

फिर से
आ गया लिखने
एक और बकवास

चल बोल
अब क्या रह गया है

जिसे कहना है

फरवरी
का महीना है
वेतन नहीं
निकाल पायेगा
मार्च के महीने में

लग जा
भिड़ाने में
हिसाब किताब
आयकर का

बाकी
होनी को तो
अपनी जगह
उसी तरह
से होना है

जैसा
ऊपर वाले
ने करना है

प्रश्नों
को डाल दे
कबर में किसी

फिर
कभी खोद लेना
कौन सा किसी को
जवाब देने के लिये
कहीं से उतरना है

प्रश्न
दग रहे हैं
मिसाईल
की तरफ
प्रश्न करते ही
पूछने वाले पर
हवा में ही

जमीन
में वैसे भी
कौन सा
किसी को
मारना मरना है

चुन
ली गयी है
सरकारों
की सरकार

हजूर
इस प्रकार
और उस प्रकार

फर्क
कौन सा
जमीर बेचने
वाले के लेन देन
नफा नुकसान पर

जरा सा भी
कहीं पड़ना है

दो हजार
उन्नीस पर
नजर गड़ाये
हुऐ हैं सारे तीरंदाज

बिना
धनुष तीर के
अर्जुन ने लगाना
निशान आँख पर

मछली
की छोड़
ऊँट को करवट
बदलते देखना

उसी
तरफ लोटने
के लिये कहीं
नंगे किसी के
पाँवों पर
लुढ़कना है

‘उलूक’
कुछ नहीं
होना है तेरी
आदत को अब
इस ठिकाने
पर आकर

कौन सा
तूने भी
बकबास
करना छोड़ कर

तागा
लपेटने वाले
पतंग उड़ाते

देश के
पतंगबाजों से
पेच लड़ाने के लिये

अपनी
कटी पतंग
हाथ में लेकर
हवा में उड़ना है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

बोलते ही उठ खड़े होते हैं मिलाने आवाज से आवाज गजब हैं बेतार के तार याद आते हैं बहुत ही सियार

बड़े दिनों के
बाद आज
अचानक फिर
याद आ पड़े
सियार

कि बहुत
अच्छे
उदाहरण
के रूप में
प्रयोग किये
जा सकते हैं
समझाने
के लिये
बेतार के तार

रात के
किसी भी प्रहर
शहर के शहर
हर जगह मिलते
हैं मिलाते हुऐ
सुर में सुर
एक दूसरे के
जैसे हों बहुत
हिले मिले हुऐ
एक दूसरे में
यारों के हो यार

और
आदमी इस
सब की रख
रहा है खबर

हो रहा है
याँत्रिक
यंत्रों के जखीरे
से दबा हुआ
ढूँढता
फिर रहा है
बिना बताये
सब कुछ छुपाये

तारों में
बिजली के
संकेतों में
दौड़ता हुआ
अपने खुद के
लिये प्रेम प्यार
और मनुहार

सियार दिख
नहीं रहे हैं
कई दिन
हो गये हैं
सुनाई नहीं
दे रही हैं आवाजें

नजर नहीं
आ रहे हैं
कहीं भी
सुर में सुर
मिलाते हुऐ

सियारों के सियार
सारे लंगोटिया यार

जरूरत
नहीं है
जरा सा भी
मायूस होने
की सरकार

बन्द कर
रहे हैं लोग
दिमाग
अपने अपने
दिख रहा है
भेजते हुऐ संदेश
बैठा कोई
बहुत दूर
कहीं उस पार

खड़ी हो रही
हैं गर्दने
पंक्तिबद्ध
होकर
उठाये मुँह
आकाश की ओर
मिलाते हुऐ
आवाज से आवाज

याद आ रहा
है एक शहर
भरे हुऐ हर तरफ
सियार ही सियार
जुड़े हुऐ सियार से

और
बेतार का एक तार
बहुत लम्बा मजबूत
जैसे गा रहे हों
हर तरफ
हूँकते हुऐ सियारों
के साथ
मिल कर सियार।

चित्र साभार: http://www.poptechjam.com

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

ताजी खबर है देश के एन जी ओ ऑडिट नहीं करवाते हैं

चोर सिपाही
खेल
खेलते खेलते
समझ में
आना शुरु
हो जाते हैं

चोर भी
सिपाही भी
थाना और
कोतवाल भी

समझ में
आ जाना
और
समझ में
आ जाने
का भ्रम
हो जाना
ये अलग
अलग
पहलू हैं

इस पर
अभी चलो
नहीं जाते हैं

मान लेते हैं
सरल बातें
सरल
होती हैं

सब ही
सारी बातें
खास कर
खेल
की बातें
खेलते
खेलते ही
बहुत अच्छी
तरह से
सीख ले
जाते हैं

खेलते
खेलते
सब ही
बड़े होते हैं
होते चले
जाते हैं

चोर
चोर ही
हो पाते हैं
सिपाही
थाने में ही
पाये जाते हैं

कोतवाल
कोतवाल
ही होता है

सैंया भये
कोतवाल
जैसे मुहावरे
भी चलते हैं
चलने भी
चाहिये

कोतवाल
लोगों के भी
घर होते हैं
बीबियाँ
होती हैं
जोरू का
गुलाम भी
बहुत से लोग
खुशी खुशी
होना चाहते हैं

पता नहीं
कहाँ से
कहाँ पहुँच
जाता है
‘उलूक’ भी
लिखते लिखते

सुनकर
एक
छोटी सी
सरकारी
खबर
कि
देश के
लाखों
एन जी ओ
सरकार का
पैसा लेकर
रफू चक्कर
हो जाते हैं

पता नहीं
लोग
परिपक्व
क्यों
नहीं हो
पाते हैं

समझ में
आना
चाहिये

बड़े
होते होते
खेल खेल में
चोर भी चोर
पकड़ना
सीख जाते हैं

ना थाने
जाते हैं
ना कोतवाल
को बुलाते हैं
सरकार से
शुरु होकर
सरकार के
हाथों
से लेकर
सरकार के
काम
करते करते
सरकारी
हो जाते हैं ।

चित्र साभार: Emaze

शनिवार, 16 मई 2015

बात होती है तभी बात पर बात की जाती है

धन्यवाद आभार
एक नहीं
कई कई बार
बात करने से
ही कुछ आप के
बात बन पाती
है सरकार
अटल सत्य है
बात होने पर
ही तो कोई बात
बना पाता है
बिना बात के
बात हो जाना
कहीं भी देखने
में नहीं आता है
बातें बनाने में
माहिर ही बातों से
आगे निकल पाता है
बात नहीं करने
वाले को इसीलिये
हाथ जोड़ कर जाने
के लिये कहा जाता है
बात निकलती है
तभी दूर तलक
भी जा पाती है
बातों पर लिखी
जाती हैं गजलें
बातें ही गीत
और कविताऐं
हो जाती हैं
बातें ही सुर में
ताल में बाँध कर
संगीत के साथ
सुनाई जाती हैं
आइये सीखते हैं
बातें बनाना
बातें फैलाना
बातें उठाना
और बातों
ही बातों में
बातों के ऊपर
से छा जाना
कल्पना कीजिये
सपनों में देख
कर तो देखिये
बातें करते हुऐ
करोड़ों जबानें
किस तरह
बातों ही बातों में
बातों के कल
कारखानों में
बदल जाती हैं
बातें अच्छे समय
के आने की
बातें सपनों में भी
सपने दिखाने की
बातों ही बातों में
बातों से भूख और
प्यास मिटाने की
बातें बिना कुछ
किये कराये यूँ ही
कहीं भी कभी भी
कुछ भी बातों बातों
में ही हो जाने की
बात होती है तभी
बात पर बात
भी की जाती है
बिना बात किये
बात पर बात
करने की बात
‘उलूक’ तक के
समझ से बाहर
की बात हो जाती है ।

चित्र साभार: www.clipartoday.com

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

मजबूत बंधन के लिये गठबंधन की दरकार होती है


कठिन नहीं बहुत आसान होता है
बंधन बहुत छोटा 
और गठबंधन आसमान होता है 

गठबंधन नहीं होता है जहाँ 
अंदर अंदर ही घमासान होता है

बंधन होने से कहीं भी 
बंधने वाला बहुत परेशान होता है 
मोटी रस्सी में बंधी छटपटाती 
एक छोटी सी जान होता है

गठबंधन होने से 
सभी का जीना आसान होता है
कई जिस्म होते हैं कई जाने होती हैं 
पता कहाँ चलता है कहाँ दीन कहाँ ईमान होता है 

भूल जाता है हमेशा 
घर में भी तो होता है और यही होता है 
आज से नहीं कई जन्मों से होता है

माँ का बाप से बच्चों का माँ बाप से 
पति का पत्नी से होता है 

बंधन से शुरु होता है 
चलता है बहुत धीमे धीमे 
गठबंधन होते ही वही सब कुछ 
दौड़ने के लिये तैयार होता है 

क्या होता है अगर धर्म का धर्म से नहीं होता है 
दिखाये भी कोई दिखावे के लिये 
तब भी बहुत कमजोर होता है 

क्या होता है अगर अधर्म का अधर्म से होता है 
और बहुत मजबूत होता है 

कैसा होगा 
पहले से कहाँ महसूस होता है 

शादी होने के बाद देखा जाये अगर 
ज्यादातर शुरु होता है 

बंधन होने से ही कुछ नहीं होता है 
जब तक गठबंधन नहीं होता है 

फिर गठबंधन से एक सरकार बनती 
देख कर ‘उलूक’ क्यों तुझे कंफ्यूजन होता है 

गठबंधन के लिये दिया गया जनादेश 
नीचे से नहीं कहीं उपर से 
दिये आदेश का प्रकार होता है 

ईश्वर और अल्लाह की 
एक नहीं कई बैठकों के बाद निकला 
सरकार बनाने का आदेश 
सबसे जानदार होता है

ऊपर की बड़ी बातों को 
छोटी नजर से देखने वाले का 
मुहँ काला और नजरिया बेकार होता है 

बंधन हमेशा कमजोर और गठबंधन
हमेशा 
जोरदार होता है ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

रविवार, 2 नवंबर 2014

रात में अपना अखबार छाप सुबह उठ और खुद ही ले बाँच

बहुत अच्छा है
तुझे भी पता है
तू कितना सच्चा है
अपने घर पर कर
जो कुछ भी
करना चाहता है
कर सकता है
अखबार छाप
रात को निकाल
सुबह सवेरे पढ़ डाल
रेडियो स्टेशन बना
खबर नौ बजे सुबह
और नौ बजे
रात को भी सुना
टी वी भी दिखा
सकता है
अपनी खबर को
अपने हिसाब से
काली सफेद या
ईस्टमैन कलर
में दिखा सकता है
बाहर तो सब
सरकार का है
उसके काम हैं
बाकी बचा
सब कुछ
उसके रेडियो
उसके टी वी
उसके और उसी का
अखबार उसी के
हिसाब से ही
बता सकता है
सरकार के आदमी
जगह जगह पर
लगे हुऐ हैं
सब के पास
छोटे बड़े कई तरह
के बिल्ले इफरात
में पड़े हुऐ हैं
किसी की पैंट
किसी की कमीज
पर सिले हुऐं है
थोड़े बहुत
बहुत ज्यादा बड़े
की कैटेगरी में आते हैं
उनके माथे पर
लिखा होता है
उनकी ही तरह के
बाकी लोग बहुत
दूर से भी बिना
दूरबीन के भी
पढ़ ले जाते हैं
ताली बजाने वालों
को ताली बजानी
आती है
ऊपर की मंजिल
खाली होने के
बावजूद छोटी सी
बात कहीं से भी
अंदर नहीं घुस पाती है
ताली बजाने से
काम निकल जाता है
सुबह की खबर में
क्या आता है और
क्या बताया जाता है
ताली बजाने के बाद
की बातों से किसी
को भी इस सब से
मतलब नहीं रह जाता है
‘उलूक’ अभी भी
सीख ले अपनी खबर
अपना अखबार
अपना समाचार
ही अपना हो पाता है
बाकी सब माया मोह है
फालतू में क्यों
हर खबर में तू
अपनी टाँग अढ़ाता है ।

चित्र साभार: clipartcana.com

सोमवार, 26 मई 2014

कोई ना कोई पाल बिल सबसे पहले लाया जायेगा

बहुत ही 
बेवकूफ थी 
पिछली सरकार 

कोशिश में
लगी 
हुई थी
बनाने में 
कागज के टुकड़े से 
आदमी का आधार 

इतना भी
नहीं 
समझी
देश प्रेम
को 
कैसे कागज
में 
उतारा जायेगा 

सारे कागज
ही 
एक जैसे हों जहाँ 

कौन
कितना प्रेमी है 
ऐसे में
कैसे 
हिसाब
लगाया जायेगा 

अब
लग रहा है
लेकिन 
इसका भी समाधान 
आसानी से
ही 
निकल आयेगा 

दिखने शुरु
हो जायेंगे

जैसे ही
पूत के पाँव 
पालने से बाहर 

उसी को
देख कर 
देश प्रेम निर्धारित 
कर
लिया जायेगा 

स्केल मिलेगा 
नापने का
कुछ 
पुराने प्रेमियों को 

उनसे
नापने के लिये 
इशारा दिया जायेगा 

उन में से ही
होगा 
बताने वाला भी 

कितने
अंकों के साथ 
देश प्रेमी होने के लिये 
कोई
योग्यता हासिल 
कर ले जायेगा 

देश प्रेम को
अंदर 
छुपाने वाले को 
नोटिस
दे दिया जायेगा 

लोकपाल
शोकपाल 
आये या ना आ पाये 

अपने पाल
अपने सँभाल 
बिल
सबसे पहले 
बहुमत से
पास हो कर 
सामने से आ जायेगा 

अभिमन्यु

कब से 
सीख रहे थे
पेट के अंदर 

बाहर
आने के बाद 
उनका कमाल 

‘उलूक’
देख लेना 
तू भी

बहुत जल्दी 
अपने
सामने सामने 
ही
देख पायेगा ।

रविवार, 18 मई 2014

लिख लिया कर लिखने के दिन जब आने जा रहे होते हैं

घर पर गिरने
गिरने को हो
रहे सूखे पेड़ों
को कटवा लेने
की अनुमति
लेने की अर्जी
पिछले दो साल से
सरकार के पास
जब कहीं सो
रही होती है
पता चलता है
सरकार उलझी होती है
कहीं जिंदा पेड़ों के
धंधेबाजों के साथ
इसी लिये मरे हुऐ
पेड़ों के लिये
बात करने में
देरी हो रही होती है
देवदार के जवान पेड़
खुले आम पर्दा
महीन कपड़े
का लगाकर
शहीद किये
जा रहे होते हैं
जरूरत ही नहीं
पड़ती है धूल की
आँखों में झोंकने
की किसी के
कटते पेड़ों के
बगल से
गुजरते गुजरते
आँखें जब कहीं
ऊपर आसमान
की ओर हो
रही होती हैं
बहुत लम्बे समय
से चल रहा होता
है कारोबार
पेड़ों की जगह
उगाये जा रहे होते हैं
कंक्रीट के खम्बे
एक की जगह चार चार
शहर के लोग ‘महान’ में
कट रहे जंगलों की
चिंता में डूबते
जा रहे होते हैं
अपने घर में हो रहे
नुकसान की बात कर
अपनी छोटी सोच का
परिचय शायद नहीं
देना चाह रहे होते हैं
उसी के किसी आदमी
के आदमी के आदमी
ही होते हैं जिसके लिये
लोग आँख बंद कर
ताली बजा रहे होते हैं
ऐसे ही समय में
‘उलूक’ कुछ
तेरे भी जैसे होते हैं
जो कहीं दूर किसी
दीवार पर कबूतर
बना रहे होते हैं ।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

उसका आदमी कहता है तुझे कोई तो क्यों शरमाता है यार

एक पत्नी होना 
और उसका ही बस आदमी होना 
एक बहुत बड़ी बात है सरकार 

उसके बाद भी किसी और का आदमी होना ही होता है 
नहीं हो पाया है अगर कोई तो उसका जीना ही होता है बेकार 

अपने नाम से अपने काम से अगर जाना जा रहा है कोई 
समझ लेना अच्छी तरह किसी काम में कहीं नहीं लगाया जा रहा है
भटक रहा है जैसे होता है एक बेरोजगार 

कुछ भी नहीं हाथ में आयेगा इस जीवन में 
व्यर्थ में चला जायेगा इस पार से कभी किसी दिन उस पार 

एक आदमी कहीं ना कहीं होता ही है किसी ना किसी का आदमी 
ऊपर से नीचे तक अगर देखता चला जायेगा 
नीचे वाला किसका है साफ पता चल जायेगा 
सबसे ऊपर वाला किसका है आदमी 
बस यही बात बताने के लिये 
कोई भी नहीं मिल पायेगा 
समय रहते पानी का देखता हुआ बहाव 
तैरना सीख ही लेता है आज का एक समझदार 

निभाता क्यों नहीं ‘उलूक’ तू भी किसी 
एक इसी तरह के एक आदमी का किरदार 
कल जब उसकी आ जायेगी सरकार 
तुझे क्या लेना और देना वो वहाँ क्या करता है 
तुझे मालूम है तेरा यहाँ रहेगा अपना ही कारोबार 

खाली आदमी होने में 
और किसी आदमी के आदमी होने में 
अंतर है बहुत बड़ा समझाया जा चुका है एक नहीं कई कई बार 

बाकी रही तेरी और 
तेरे देश की किस्मत 
किसका आदमी कहाँ जा कर करता है  अपना वार इस बार ।

चित्र साभार: 
https://friendlystock.com/

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

सरकार की नहीं सोच पा रहा हूँ सरकार

तेरी वोट से ही
बनने जा रही है
इस बार की सरकार
सुन नहीं रहा है
अब की बार बस
उसकी सरकार
सुन तो रहा हूँ पर
गणित में कमजोर हूँ
समझ नहीं पा रहा हूँ
फिर भी जितना है
बचा खुचा दिमाग
गुणा भाग करके
लगा रहा हूँ
उसकी तो ऐसे
कह रहा है जैसे
तेरे को बता
कर गया हो वो
सरकार बस मैं
ही बना रहा हूँ
किसी जमाने में
इसकी बनती थी
या उसकी बनती थी
जमाने ने तक कर
दिया अब पलटवार
देख क्यों नहीं लेता
आज का ही अखबार
तीन चार चुनाव
लड़ लड़ा कर
एक दूसरे को
जिता हरा कर
अब दोनों एक ही
मंच में साथ साथ
गले में बाहें डाल
कर हैं एक दूसरे
को बहुत प्यार
एक बार ये
ले गया था वोट
उसकी बन गई
थी सरकार
दूसरी बार वो
ले गया था वोट
इसकी बन गई
थी सरकार
वोटर
उलूक
फाड़ कर रख ले
अपनी वोट को
आधी इसके लिये
और आधी उसके
लिये इस बार
कोई भी बनेगी
कहीं एक सरकार
तेरी की जायेगी
जै जै कार
बुद्धिजीवियों के बस में
है नहीँ करना कुछ
परजीवियों का फल रहा
हो जहाँ सारा कारोबार
अब की बार इसकी भी
और उसकी भी सरकार
बहस करना है बेकार ।

रविवार, 13 अप्रैल 2014

रस्में कोई जानता है किसी को समझाई जा रही होती हैं

चुनाव क्यों
करवा रहे हैं
पता नहीं
वोट क्यों
डलवा रहे हैं
पता नहीं
तो पता क्या है
अरे सब पता है
कौन हार रहा है
कौन जीत रहा है
कैसे हार रहा है
कैसे जीत रहा है
कैसे पता है
किसने बताया
फिर वही बात
जो बात
पता होती है
वो किसी से
पूछी नहीं जाती है
अपने आप
गुणा भाग करके
दिमाग में
बैठ जाती है
गिन लो
उठे हुऐ हाथ
यहाँ कमप्यूटर के
खुले हुऐ सारे
पन्नों में
सब के चेहरों
के ऊपर
उनकी वोट
लिखी हुई
नजर आती है
जिनकी नहीं
लिखी होती है
उनकी कोई बिल्ली
चुगली कर जाती है
कमप्यूटर एक
खुली किताब है
हर पन्ने से
कोई ना कोई
झाँक रहा है
अपनी छोड़ कर
हर तीसरे की
वोट को
आँक रहा है
उसे भी पता है
इस देश में अब
चुनाव दो के
बीच में
ही होता है
बाकी फालतू है
बेकार का है
खाली में
कुछ ना कुछ
यूँ ही
हाँक रहा है
तुझे इतना भी
मालूम नहीं है
तभी तो तेरी
बातों को कोई
तूल नहीं देता है
वो हारने वाला
होता है
जो यहाँ पर गाली
खा रहा होता है
कोई ना कोई
अपने कमप्यूटर
पर जिसका 
एक कार्टून
बना रहा होता है
जीतता वो है
जिसे माला पहनाई
जा रही होती है
कमप्यूटर से
कमप्यूटर तक
जिसकी बिना धागे
की पतंग उड़ाई
जा रही होती है
बाकी बेवकूफ
गरीबों की दुनिया है
किसी पोलिंग बूथ
पर एक लम्बी लाईन
लगा रही होती है
उनकी वोट वोट
नहीं होती है
कमप्यूटर पर अगर
कहीं भी कभी भी
दिखाई नहीं
जा रही होती है 

उलूक पता है 
तू कितना
बेवकूफ है
कितनी बात
किस समय तेरी
समझ में आ
रही होती है
कितनी तेरे 
सिर के ऊपर 
से चली जा
रही होती है
परेशान होने की
जरूरत नहीं होती है
जब सरकार
रिश्तेदारों की ही
आ रही होती है
वोट डालना डलवाना 
एक रस्म है
किसी तरह 
से निभाई जा
रही होती है । 

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

तुम भी सरकार के चुनाव भी सरकार का हमें मत समझाइये

लोक सभा निर्वाचन
के सफल संचालन
हेतु जिला निर्वाचन
अधिकारी ने आदेश
निकाल कर एक
स्वायत्तशाशी संस्था
के कुछ चुने हुऐ
लोगों की चुनाव में
पहली बार ड्यूटी
जो क्या लगाई
ड्यूटी कटवाने के
जुगाड़ लगाने की
होड़ सी लोगों के
बीच तुरंत मच आई
एक दौड़ा बताने
वो एक बड़े दल का
फलाँ फलाँ पदाधिकारी है
संस्था में ही उसे
काम में लगाने की
इधर भी और उधर
भी मारा मारी है
अब यहाँ चुनाव में भी
आप की क्यों गई
मति मारी है
चुनाव करवायेंगे
या प्रचार हमसे
इतनी सी बात
आपके समझ में
पता नहीं क्यों
नहीं आ रही है
हमें चुनाव में
लगा कर क्यों
परेशानी मोल
लेना चाह रहे हैं
जो काम करते हैं
और संस्था के
चुनावों से भी
दूर रहा करते हैं
ऐसे निर्दलीय
लोगों पर आपकी
नजर क्यों नहीं
जा रही है
वैसे भी चुनावों में
सरकारी लोगों की
ड्यूटी ही आज तक
लगाई जाती है
देश का चुनाव भी है
तो हमारी कोई
जिम्मेदारी थोड़ी
हो जाती है
जो लोग चुनाव
लड़ने की कोचिंग
चलाया करते हैं
जवानों को चुनाव में
भाग लेने देने का
पाठ साल भर
पढ़ाया करते हैं
पुलिस की लोकल
इंटेलिजेंस यूनिट
वाले ऐसा हो ही
नहीं सकता कि
ये सारी बातें
आप तक नहीं
पहुँचाया करते हैं
ऐसे लोगों से
चुनाव में भाग लेने
वालों के साथ ही
ड्यूटी निभाने की
जिम्मेदारी छीन
कर ना रुलाइये
लाल पीली नीली
बत्तियों के भविष्य
को किसी के इस
तरह दाँव पर
ना लगाइये 

उलूक तैयार है 
करने को ड्यूटी
उस पर और उसके
जैसे और कई लोगों
पर दाँव लगाइये
ऊपर कहीं से आपको
मजबूर करवाने
के लिये हमे
मजबूर मत करवाइये
चुनाव और देश भक्ति
पर कहीं भाषण
करवाना हो तो
जरूर एक मौका
हमें दिलवाइये।

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

चल देखते हैं किसकी सीटी कौन अब कितना बजा ले जायेगा



व्हिसल ब्लोअर
विधेयक भी 
हो गया है
राज्यसभा में
आज पास 

सीटी बजाने
की
इच्छा रखने वालों की 
चलो
पूरी हुई एक आस 
बहुत लम्बे समय से
गले में
अटकी हुई थी 
उनकी भी सुना है साँस 

अब हर
विभाग में
किसी खास को
सीटी बजाने का काम देना 
बहुत आसान हो जायेगा 

पढ़ा लिखा कर उससे
किसी के खिलाफ सीटी
बजवाने का 
आनंद भी चौगुना हो पायेगा 

सीटियाँ बजेंगी
चारों तरफ से बहुत जोर शोर से 
एक आम आदमी का ध्यान ही इन 
आवाजों से बस उलझ जायेगा 

काम होते रहेंगे
उसी तरह से
मिलबाँट कर भाईचारे के साथ 
आजाद भारत में शुरु किये धँधों का
बाजार और भी चमकदार हो जायेगा 

पहचान
गुप्त रखी जायेगी
सीटीबजाने वाले की
पास हुऐ बिल में बताया भी जा रहा है 
सीटी बजाने वाला
बहुत सारे कमीशन
पाने का हकदार भी हो पायेगा 

सीटी बजाने वाले
मरा करते थे बहुत पहले से सुना है 
अबकी बार सीटियाँ सुनने वाला ही
मार दिया जायेगा 

सीटियाँ
बहुत आसानी से
मिलने लगेंगी बाजार में 
किसी मल्टीनेशनल के साथ
सीटियाँ बनाने का कारोबार 
जल्दी सरकार द्वारा साझे में
शुरु भी करवा दिया जायेगा 

सीटी बजाने वाले
ही मिलेंगे
ज्यादातर लोग आज के बाद 

सीटी
नहीं रखने वाले को
अंदर करवा दिया जायेगा ।

चित्र साभार: 
https://www.gettyimages.in/

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

बाअदब बामुलाहिजा होशियार सब्र कर जल्दी ही आ रहे हैं ठेकेदार


सरकार के 
एक खेत में उगी हुई 
सरकारी फसल 
उसको खुले आम चरते हुऐ 
सरकार के ही पाले पोसे 
गाय बैल घोड़े भेड़ बकरियां 

सरकार से 
पेट पालने के लिये मिली 
घास को नहीं खा रहे हैं 

अपने अपने 
खेतों में 
जा कर रख आ रहे हैं 
क्या करेंगे उसका 
किसी को कुछ भी नहीं बता रहे हैं 

बैल बैलों के साथ 
घोड़े घोड़ों के साथ नजर आ रहे हैं 

बकरियां और भेड़ें 
मेंमनो को झुनझुने थमा कर 
बहला रहे हैं 

खेत के मालिक लोग 
सरकार के पास पहुंच कर 
बड़ी पूजा करवाने का कुछ जुगाड़ लगा रहे हैं 

सरकार के
दूसरे 
खेत के किसान लोग
जो 
अपने खेतों में नहीं जा रहे हैं 
सरकार को काले चश्मे पहुंचाने का जुगाड़ लगा रहे हैं 

उजड़ते हुऐ 
खेत के किसानों को
मेडल 
दिलवाने के लिये
विपक्ष के लोगों को भी बहकाने में 
सफल होते नजर आ रहे हैं 

मजबूर सरकार क्या करेगी 
जिसको खुद डी कम्पनी के लोग चला रहे हैं 

खेत दर खेत में 
चल पड़ी है इसीलिये हवा एक जैसी 
हर जगह खेत वाले अपनी अपनी लहलहाती 
फसलों को खोदते जा रहे हैं 

कोई किसी से नहीं डर रहा है 
किसी को ऐ कम्पनी का भरोसा है
कोई डी कम्पनी तक 
सीधे अपनी भी पहुंच बता रहे हैं

‘उलूक’ 
और उसके ही जैसे कुछ
और 
बेवकूफ
डाल कर कान में अंगुली
आसमान को
ताकते 
नजर आ रहे हैं ।

चित्र सभार: https://simpsons.fandom.com/

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

राम का भरोसा रख बहुत कुछ होने वाला है

सुनाई
दे रहा है
बहुत बड़ा
परिवर्तन
जल्दी ही
होने वाला है

चुनाव
की जगह
सरकार के
नुमाइंदो
और
अध्यक्षों के
पदों के लिये
समाचार पत्रों
में विज्ञापन
आने वाला है

ना भी
हो रहा हो
ऐसा मान लिया
सोचने में
ऐसी बात को
किसी का क्या
जाने वाला है

इस सब
के लिये
सबसे पहले
कुछ बीच के
लोगों का
चुनाव किया
जाने वाला है

उसके लिये
सबसे पहले
देख लिया
जाने वाला है
कि कौन है
ऐसा जो
इधर भी
और
उधर भी
आने जाने
वाला है

पूजा पाठ
मंदिर
आने जाने से
कुछ नहीं
कहीं होने
वाला है

अगर डंडे
पर लगे हुऐ
झंडे को
अपने घर
और
अपने सर
पर नहीं
लगाने वाला है

मंदिर की
घंटियों को
बेचने वाले को
पुजारी
छांटने के लिये
बुलाया
जाने वाला है

जमाना
बदल रहा है
बहुत तेजी से
देखता रह

कपड़े पहने
हुऐ दिखेगा
जो भी शहर
की गलियों में
अंदर कर दिया
जाने वाला है

समय की
बलिहारी है
छुप छुपा
के हो रहा है
जो भी जहां भी
खुले आम होते हुऐ
जल्दी ही दिखाई
देने वाला है ।

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

लो मित्र तुम्हारे प्रश्न का उत्तर हम यूं लेकर आते हैं


सुनो मित्र 
तुम्हारे सुबह किये गये
प्रश्न का
उत्तर देने जा रहा हूँ

पूछ रहे थे तुम
कौन सी कहानी ले कर
आज शाम को आ रहा हूँ

कहानी और कविता 
लेखक और कवि लिखा करते हैं जनाब

मैं तो
बस रोज की तरह
वही कुछ बताने जा रहा हूँ
जो देख सुन कर आ रहा हूँ

कहानियाँ बनाने वाले
कहानियाँ रोज ही बनाते हैं
उनका काम ही होता है
कहानियां बनाना
वो कहानियां बना कर
इधर उधर फैलाते हैं

कुछ फालतू लोग
जो उन कहानियों को समझ नहीं पाते हैं
उठा के यहां ले आते हैं

कहानियाँ
बनाने वाले को चलानी होती है
कोई ना कोई कार या सरकार
कहीं ना कहीं

उनके पास होते हैं
अपने काम को छोड़ कर
काम कई
वो काम करते हैं
बकवास करने से हमेशा कतराते हैं

सारे के सारे कर्मयोगी
इसीलिये
हमेशा एक साथ
एक जगह पर नजर आते हैं

कहानियाँ बनाने वाले
जन्म देते हैं
एक ही नहीं कई कहानियों को

त्याग देखिये उनका
कभी किसी कहानी को
खुद पढ़ने के लिये कहीं नहीं जाते हैं

काम के ना काज के दुश्मन अनाज के
कुछ लोग कहानियाँ 
बताने वाले बन जाते हैं

पूरा देश ही चल रहा है
कहानी बनाने वालों से

आप और हम तो बस
एक कहानी को पीटने के लिये
रोज यहां चले आते हैं । 

चित्र सभार: https://www.dreamstime.com/