उलूक टाइम्स: सूर
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गुरुवार, 28 जून 2018

कबीर दौड़ रहा है सूर को सावधान रहने के लिये कहने के लिये ढूँढ रहा है तुलसी अदालत में फंसा हुआ है





आज
अचानक
गली के
मोड़ पर
तेजी से
भागता हुआ
कबीर मिला था

एक नयी
बहुत मंहगी
चमकीली
साफ सुथरी
चादर से
ढका हुआ
उड़ता हुआ
जैसे एक
बुलबुला
बन रहा था

पूछ बैठा
था कोई
भाई तू
लगभग
पाँच सौ
साल से
यूँ ही
पड़ा रहा था

अब
किस लिये
मजार
छोड़ कर
भाग आया

एक नयी
चादर में
उलझा हुआ
अपना
एक पाँव

बाहर
निकाल
कर उसने
चादर को
किनारे लगाया

जोर से
चिल्लाया
समझा करो
कबीर था

तब तक
जब तक
किसी को
मेरे जुलाहे
होने का
पता नहीं था

पाँच सौ
साल में
बदल जाती
है कायनात तक

मैं तो
उस जमाने
के सीधे साधे
आदमियों के
बीच का था
बस एक
फकीर था

हिंन्दू रहा था
ना मुसलमान रहा था

जुलाहे होने का
थोड़ा सा बस
अभिमान रहा था

दोहे
कह बैठा था
उस समय
के हिसाब से

पर आज
उन सब में जैसे
सारी जिन्दगी का
फलसफाऐ शैतान था

किसे पता था
पाँच सौ साल बाद
रजिया गुँडों के
बीच फंस जायेगी

कबीर के दोहे
किताबों से
दब जायेंगे
ईवीएम
की मशीन
कबीर के
भजन गायेगी
संगीत सुनायेगी

‘उलूक’
कब सुधरेगा
पता नहीं
उसकी बकवास
करने की आदत
भी नहीं जायेगी

कबीर ने
कुछ कहा था
समझना जरूरी
भी नहीं था

कल शायद
सूर की भी बारी
कहीं ना कहीं
आ जायेगी

तुलसी
फंसा हुआ है
मन्दिर की
सोच रहा है

पता नहीं
कौन सी कब्र
किस समय
और किसलिये
खोली जायेगी

बकवास है
शहर की
नहीं है
विनती है आपसे

मत कह देना
कबीर की आत्मा
मेरे घर में रुकी थी
कल चली जायेगी।

चित्र साभार: http://www.pngnames.com

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

छोटी करना बात को नहीं सिखायेगा तो लम्बी को ही झेलने के लिये आयेगा

कबीर सूर तुलसी
या
उनके जैसे कई और ने
पता नहीं कितना कुछ लिखा
लिखते लिखते इतना कुछ लिख दिया
संभाले नहीं संभला

कुछ बचा खुचा जो सामने था
उसपर भी ना जाने
कितनो ने कितना कुछ लिख दिया

शोध हो रहे हैंं
कार्यशालाऎं हो रही हैं
योजनाऎं चल रही हैं
परियोजनाऎं चल रही हैं

एक विद्वान
जैसे ही बताता है 
इसका मतलब ये समझ में आता है
दूसरा
दूसरा मतलब निकालने में
तुरंत ही जुट जाता है

स्कूल जब जाता था 
बाकी बहुत कुछ 
समझ में आ ही जाता था

बस इनके लिखे हुऎ को
समझने की कोशिश में ही
चक्कर थोड़ा सा आ जाता था
कभी किसी को ये बात नहीं बता पाता था
अंकपत्र में भाषा में पाये गये अंको से
सारा भेद पर खुल ही जाता था

कोई भी इतना सब कुछ
अपने एक छोटे से जीवन में
कैसे लिख ले जाता होगा
ये कभी भी समझ में नहीं आ पाता था

ये बात अलग है
उनके लिखे हुऎ का भावार्थ निकालने में
अभी भी वही हालत होती है
तब भी पसीना छूट जाता था

मौका मिलता तो 
एक बार इन लोगों के
दर्शन करने जरूर जाता
कुछ अपनी तरफ से
राय भी जरूर दे के आता

एक आईडिया
कल ही तैरता हुआ दिख गया था यहीं
उसी को लेकर कोई कहानी बना सुना आता

क्यों इतनी लम्बी लम्बी 
धाराप्रवाह भाषा में लिखते चले जा रहे हो

घर में बच्चे नहीं हैं क्या
जो सारी दुनियाँ के बच्चों का दिमाग खा रहे हो

सीधे सीधे भी तो बताया जा सकता था

एक राम था
रावण को मार के अपनी सीता को
वापस लेकर घर तक आया था

फिर सीता को जंगल में छोड़ कर आया था

किस को पता चल रहा था
कि बीच में 
क्या क्या हो गया था

कोई बात नहीं जो हो गया था सो हो गया था
अब उसमें कुछ नहीं रह गया था

इतना कुछ लिख गये
पर अपने बारे में
कहीं भी कुछ आप नहीं कह गये
सारा का सारा प्रकाश बाहर फैला कर गये

पता भी नहीं चला
कैसे सारे अंदर के अंधकारों पर
इतनी 
सरलता से विजय पा कर गये
सब कुछ खुद ही पचा कर गये
लेकिन एक बात 
तो पक्की सभी को समझा कर गये

लिखिये तो इतना लिखिये
कि
पढ़ने वाला 
उसमें खो जाये

समझ में आ ही जाये कुछ 
तो अच्छा है
नहीं आये तो पूरा ही पागल हो कर जाये

कह नहीं पाये
इतना लम्बा क्यों लिखते हो भाई
कि
पढ़ते पढ़ते कोई सो ही जाये।


चित्र साभार: https://webstockreview.net/explore/sleeping-clipart-yawning/