उलूक टाइम्स: हजार
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बुधवार, 3 जनवरी 2024

रोज पढ़े फिर याद करे ‘उलूक’ उल्लू का अखबार


उल्लू के अखबार में छपे सफ़ेद ही समाचार
काले पढ़ नहीं पाते कुछ गोरे डालें बस अचार

काला काला देखता सफ़ेद देखता एक के चार
इन्द्रधनुष छुट्टी ले बैठा बंद कर पानी की बौछार

मतलब लिखता बेमतलब का रोज बजाता पौने चार
किसने पढ़ना किसने गुनना पत्ते खेल रहे सरकार

जोकर के हाथों में सब कुछ इक्के गुलाम बादशाह बेकार
याद करें कुछ बाराहखडी कुछ करें दिन फिरने का इंतज़ार

फिर से फिर फिर आयेंगे अच्छे दिन बारम्बार हर बार
खींच तान कर नींद निकालो चिन्ता चिता मान कर यार

लिख कर मिटा मिटा कर लिख रेत रेत सपने हजार
रोज पढ़े फिर याद करे ‘उलूक’ उल्लू का अखबार

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

सौ पाँचसौ हजार के चक्कर में कौन नहीं आता है

जिन्दगी
शुरु होती है
और
गिनतियाँ
शुरु हो जाती है

शून्य कहीं भी
किसी को नहीं
सिखाया जाता है

एक से शुरु
की जाती हैं
गिनतियाँ

सारा सब कुछ
पैदा होते ही
एक
हिसाब किताब
हो जाता है

बताया ही
नहीं जाता है
समझाया भी
नहीं जाता है

फिर भी
गिनतियाँ
खुद उसी तरफ
उसी रास्ते पर
अँगुली पकड़ कर
खींच ले जाती हैं

जिस तरह
हिसाब किताब
चलता चला जाता है

हर किसी को
आता है गिनना
मौका मिलते ही
गिनना शुरु
हो जाता है

सामने वाले के
हिसाब किताब को
अँगुलियों में
कर ले जाता है

कोई पूछ बैठे 
उससे उसके
हिसाब किताब
के बारे में

गिनतियाँ करना
भूल बैठा है
किसी जमाने से
बताने में
जरा सा भी
नहीं शर्माता है

बहुत
आसान होता है
गिनना अपने
सामने वाले
की उम्र को
उसके
चेहरे पर

हर चेहरा
कुछ नहीं
कहने के
बावजूद
बहुत कुछ
बताता है

आसान होता है
गिनना सामने
खड़े पेड़ 

की उम्र भी

अलग बात है
यहाँ गोल गहरी
पड़ी रेखाओं से
समय का हिसाब
लगाया जाता है

लाखों गिनता है
करोड़ों गिनता है
अरब खरब तक
पहुँचने का
जुगाड़ लगाता है

सौ तक पहुँचने वाले
एक दो होते हैं
सोच में आने से
पहले ही गजल
गुनगुनाना चाहता है

आदत से मजबूर
लेकिन पाँच सौ
हजार दो हजार
दिखते ही
बत्तीस दाँत
एक साथ दिखाता है

‘उलूक’
उल्टी गिनतियाँ
चलती रहती
हैं साथ साथ
पता
कहाँ चलता है
राकेट
कब कहाँ
और क्यों
छूट जाता है ।

चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com