उलूक टाइम्स: हत्या
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शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

‘रोहित’

सारे के सारे
सब कुछ
कह चुके
गणित
लगा कर
जोड़ घटाना
गुणा भाग कर

अपने अपने
लिये
अपने अपने
हिसाब से
बना चुके
खाते खतौनी
तेरी मौत के

पर
दुख: है
गिनीज बुक
रिकॉर्डस
में नहीं
आ पायेगी
‘रोहित’

वो जो हुआ
तेरे साथ
कोई नई
चीज नहीं है

हर
विश्वविद्यालय
में हुई है
होनी होती है
सबसे
जरूरी होती है
यू जी सी को
भी पता होती है

कि
उपर चढ़ने
के लिये
जरूरी
हमेशा
जिंदा शरीर
से अच्छी एक
लाश ही होती है

हत्या
और आत्महत्या
तो बस एक
बात होती है

बाकी वो
राजनीति
क्या होती है
बस एक
बच्चा होती है
जो और
जगह होती है

खिचड़ी
पक रही
होती है
चावल
किसी का
दाल किसी
की होती है

सब को
पता होती है
कुत्तों के
नोचने के लिये
माँस चिपकी ह्ड्डी
ज्यादा अच्छी
चीज होती है

विश्वविद्यालय
बड़ी
क्या कहना
चाहिये
नहीं कही
जा रही है

जो देखकर
अपने घर
के पालतू
की शक्ल
जैसी ही एक
चीज की
मेल की
फीमेल
होती है

भड़वों
के लिये
वक्तव्य
देने सहेजने
की काँटेदार
झाड़ियों की
बीज होती है

जिस
गृह के
गृहपति
की बहुत बड़ी
कीमत होती है

उस घर
में हर एक
चीज बिकने
और
खरीदने की
चीज होती है

किसी
के हिस्से
में कटी टाँग
किसी
के हिस्से
में कटा हाथ
किसी
के हिस्से में
मौत की खबर
किसी
आत्माहीन
के हाथ में
मरे हुऐ की
आत्मा होती है

शोक सभा
होती है
जरूर होती है

शोक
संदेश भी
होता है
पढ़े लिखों
की भाषा
होती है

पर कहीं
नहीं होता है
आत्मा
को नोचने
वालों का
हिसाब किताब

उनके
हिसाब किताब
की किताब
उन लोगों
के खाते
देखने वालों
के पास होती है


विश्वविद्यालयों
जैसे 
एक
बड़े चीरफाड़ घर 

में लाशों के  
पहरेदारों की 
कमी नहीं होती है 

तेरी
मौत से
‘रोहित’
विश्वविद्यालयों
के अंदर
के पढ़े लिखे
कफन खोरों
कफन
बेचने वालों
और उनके
तीमारदारों
की आमदनी
में बढॉतरी
तेरे जैसे के
मरने के
बाद जरूर
होती है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

बुधवार, 21 अगस्त 2013

हत्या हुई है एक चिन्तक की चिन्ता किसे है


चिन्तक 
डा. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या पर आना शुरु हो गये हैं वक्तव्य 

नृशंश हुई है हत्या अब कह रहे हैं लोग
समाज की भलाई की सोच लेकर चल रहे होते हैं लोग
ऎसे लोगों की ही हत्या सरेआम कर रहे होते हैं लोग

कोशिश रोज ही की जाती है हत्याऎं होती रहें 
ऎसे लोगों के विचारों की विचार ज्यादा शक्तिशाली हो जाते हैं 
काबू में आने से इन्कार कर जाते हैं ऎसे में बौखला जाते हैं लोग 

पहले बहुत कम होता था संचार माध्यम ऎसा नहीं था 
पता भी कहाँ चलता था 
अब तुरंत बात फैला देते हैं लोग 

अब तो रोज ही बेखौफ हत्या करने लगे हैं लोग 
बने हुऎ हैं इसपर भी मूकदर्शक लोग 
बस वक्तव्य देने में नहीं कतराते हैं लोग 

विचार जब तक जिंदा रहते हैं 
विचार को अनदेखा कर जाते हैं लोग 
निर्विकार भाव दिखा कर विचार से कतराते हैं लोग 

इसी श्रृंखला में आज
एक सामाजिक विचारक का मुंह बंद करा गये हैं लोग 
पता चलते ही श्रद्धांजलि देना शुरु कर
इतिश्री करने की तरफ जाने लगे हैं लोग

शर्म आ रही हो उन्हे बहुत ही जैसे शरमाने लगे हैं लोग
कहीं दूसरी ओर विचारों को कत्ल करने की
नई योजना बनाने शुरु हो गयें है लोग । 

चित्र साभार: : https://economictimes.indiatimes.com/