उलूक टाइम्स: हलुवा
हलुवा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
हलुवा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 15 सितंबर 2014

बात एक नहीं है अलग है वो इधर से उधर जाता है और ये उधर से इधर आता है

कितना कुछ ही नहीं
बहुत कुछ बहुत अच्छा
लिखा हुआ बहुत सी
जगहों पर नजर आता है
सोच में पढ़ जाती है
खुद की सोच ही
वैसा ही सब कुछ
मुझसे भी क्यों नहीं
लिखा जाता है
लिखना शुरु करो नहीं
कि दिन भर का देखा सुना
सामने से आ जाता है
दूरदर्शन रेडियो अखबार
में भी आता है बहुत कुछ
मगर हमेशा और ही
और कुछ आता है
उन सबकी होती है
अपनी अपनी सोच पर पकड़
फिसलती हुई सोच को
पकड़ कर जकड़ना भी
जिनको अच्छी तरह आता है
कोशिश हमेशा ही होती है
चलने की सीधे सीधे ही
पता ही नहीं चलता
कौन सा मोड़ सोच में
मोच ले आता है
कहीं भी किसी भी
पन्ने में वो सब
नहीं लिखा दिखता है
जो लगभग हर चेहरे के
पारदर्शी मुखौटे के
पीछे नजर आता है
लगने लगता है
ऐसे ही समय में
जैसे बस ‘उलूक’ ही
दिवास्वपनों का
खोमचा जानबूझ
कर लगाता है
अपनी अपनी
प्रायिकता होती है
होनी भी चाहिये
कोई खाने पीने और
कोई पीने खाने को
अच्छा बताता है
किसी को आदत
हो जाती है
नशा करने की
किसी पीने की
या खाने की चीज से
किसी को लिखने
लिखाने से ही
नशा हो जाता है
नशा होना ही
इस तरह का
कलम को कहाँ से
कहाँ बहका ले जाता है
फूल की सोचता है सोच में
मगर कलम तक आते आते
गाजर का हलुआ हो जाता है
समझ में आ ही गया होगा
उससे अच्छा कुछ मुझसे
कभी क्यों नहीं लिखा जाता है ।

चित्र साभार: http://wecort.com/

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

मलुवा या हलुवा

सामरिक महत्व की
सड़क कहलाती है
सर्पीले पथों से होते
हुवे किसी तरह
तिब्बत की सीमा
को कहीं दूर से
देख पाती है
छू नहीं पाती है
एक वर्ष से ज्यादा
बीता जा रहा है
प्राकृतिक आपदा
का प्रभाव जैसा था
वैसा ही है हर
गुजरने वाला राही
ये ही अब तक
बता रहा है
पहाड़ कच्चा हो चुका है
मलुवा गिरता जा रहा है
मलुवा सुनते ही अधिकारी
मूँछ के कोने से मुस्कुराये
बिल्कुल भी नहीं झेंपे
बगल वाले के कान में
हौले से फुसफुसाये
कैसे बेवकूफ हैं
मलुवा बोले जा रहे हैं
इन्हें कहां पता कि
इन्ही मलुवों का
हम रोज एक
हलुवा बना रहे हैं
बस एक बार उपर
वाले ने गिराना चाहिये
अगली बार से हम
गिराते रहेंगे
इसी तरह ये मलुवे
हलुवे बन हम पर
पैसे बरसाते रहेंगे
चीन ने चार लेन
सड़क अपनी सीमा
तक बना भी ली
तो भी पछताते रहेंगे
हम सीमा तक जाने
वाली हर सड़क को
मलुवा बनाते रहेंगे
अपनी सड़कों से चीन
हमला करने अगर
आ भी जायेगा
तब भी सिर के बाल
नोचेगा और खिसियाऎगा
कहाँ जा पायेगा
हमारे देश के अंदर
आकर टूटी सड़कों
की श्रंखला में
फंस कर रह जायेगा
हमारी सोच और
मलुवे के हलुवे की
तकनीक से मात
खा ही जायेगा ।