उलूक टाइम्स: हिस्सा
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मंगलवार, 20 मई 2014

एक आदमी एक भीड़ नहीं होता है

बेअक्ल 
बेवकूफ
लोगों का 

अपना
रास्ता 

होता है

भीड़ 
अपने रास्ते
में होती है

भीड़ 
गलत
नहीं होती है

भीड़ 
भीड़ होती है

भीड़ 
से अलग
हो जाने वाले
के हाथ में
कुछ नहीं होता है

हर किसी 
के लिये
एक अलग 

रास्ते का 
इंतजाम होना
सँभव 

नहीं होता है

भीड़ 
बनने 
का अपना 
तरीका
होता है

इधर 
बने या
उधर बने

भीड़ 
बनाने का
न्योता होता है

भीड़ 
कुछ करे 
ना करे
भीड़ से 

कुछ नहीं
कहना होता है

भीड़ 
के पास
उसके अपने
तर्क होते हैं

कुतर्क 
करने
वाले के लिये
भीड़ में घुसने 

का कोई 
मौका ही
नहीं होता है

भीड़ 
के अपने
नियम 

कानून
होते हैं

भीड़ 
का भी
वकील होता है

भीड़ 
में किसका
कितना हिस्सा
होता है 


चेहरे में
कहीं ना कहीं
लिखा होता है

किसी 
की 
मजबूरी 
होती है
भीड़ में 

बने रहना

किसी 
को भीड़ से
लगते हुए डर से
अलग होना होता है

छोटी 
भीड़ का
बड़ा होना 


और
बड़ी 

भीड़ का
सिकुड़ जाना

इस 
भीड़ से
उस भीड़ में
खिसक जाने
से होता है

‘उलूक’ 
किसी एक
को देख कर
भीड़ की बाते
बताने वाला

सबसे बड़ा
बेवकूफ होता है

चरित्र 
एक का
अलग 


और
भीड़ 

का सबसे
अलग होता है ।

रविवार, 8 जुलाई 2012

सावन / बादल / बरसात

बादलों
में भी

हिस्सा
दिखाता है

अपना सावन
अपनी रिमझिम
अपनी बरसात

अपनी
तरह से
चाहता है

खाली पेट
हो तो

दिलाता है
सूखे खेत
की याद

रोटी
पेट में
जाते ही
जरूर
आती है याद

फिर से बरसात

कोई बस
देखना भर
चाहता है
कुछ बूँदे

छाता खोल
ले जाता है

किसी को
भीगना होता है

खुले
आसमान
के नीचे
चला आता है

वो
उसकी
बारिश में

अपनी
बारिश
कहाँ
मिलाता है

सब को
अपनी अपनी
बारिश करना
आता है

कोई
अपने चेहरे
में ही बारिश
दिखाता है

किसी
का बादल

उसके
नयनों में ही
छा जाता है

किसी को
आ जाता है

कलम से
बरसात को
लिख ले जाना

कोई
अपने अंदर
ही बरसात
कर ले जाता है

पानी
कहीं पर
भी नजर
नहीं आता है

और
किसी का पेट

इतना
भर जाता है

कितना
खा गया
पता ही नहीं
चल पाता है

बादल
ऎसे में
गोल घूमना
शुरु हो जाता है

बारिश
का नाम भी
तब अच्छा
नहीं लगता

लेकिन
रोकते रोकते
भी बादल
फट जाता है

पानी
ही पानी
चारों तरफ
हो जाता है

कितने मन
और
कितने सावन

किसके
हिस्से में
कितने बादल

तब
जाके थोड़ा
समझ में
आता है ।

चित्र साभार: 
https://www.gettyimages.in

बुधवार, 18 जनवरी 2012

आशा है

समय के साथ
कितने माहिर
हो जाते हैं हम
चोरी घर में
यूँ ही
रोज का रोज
करते चले
जाते हैं हम
दिल्ली में चोर
बहुत हो गये हैं
जागते रहो
की आवाज भी
बड़ी होशियारी से
लगाते हैं हम
बहुत सारे चोर
मिलकर बगल
के घर में लगा
डालते हैं सेंघ
पर कभी कभी
पड़ोस में ही
होकर हाथ मलते
रह जाते हैं हम
चलो चोरी में
ना मिले हिस्सा
कोई बात नहीं
बंट जायेगा चोरी
का सामान कल
कुछ लोगों में जो
हमारे सांथ नहीं
फिर भी आशा
रखूंगा नहीं
घबराउंगा
बड़े चोर पर ही
अपना दांव
लगाउंगा
आज कुछ भी
हाथ नहीं
आया तो भी
बिल्कुल नहीं
पछताउंगा
कभी तो बिल्ली
के भाग से
छींका जरुर
टूटेगा और
मैं भी अपनी
औकात से
ज्यादा लपक के
ले ही आउंगा।