उलूक टाइम्स: हीरो
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सोमवार, 17 अगस्त 2015

चलचित्र है चल रहा है मान ले अभी भी सुखी हो जायेगा

जो परेशान है
वो उसकी
खुद की खुद के
लिये बोये गये
बीज से उसी
के खुद के खेत
में उगा पेड़ है
इसमें कोई कैसे
मदद करे जब
कोई भी सामने
वाला दिखता
एक है भी तब भी
एक नहीं है डेढ़ है
घर से शुरु करें
आस पास देखें
या शहर जिले
राज्य और देश
कहीं छोटी कहीं
थोड़ी बड़ी और
कहीं बहुत ही
विकराल समझ की
घुसेड़म घुसेड़ है
बहुत आसान है
समस्याओं के
समाधान किसी
और के नहीं
सब कुछ तेरे
और केवल तेरे
ही खुद के ही हाथ
से तेरे खेत की ही
बनी एक मेढ़ है
मान क्यों नहीं लेता है
चल रही है पर्दे पर
एक फिल्म बहुत बड़े
बजट की है और बस
हीरो ही हीरो है बाकी
उसके अलावा सब कुछ
यहाँ तक तू भी एक
बहुत ही बड़ा जीरो है
सारी समस्यायें चुटकी
में हल हो जायेंगी
दिखाये देखे सपने की
दुनियाँ फिल्म देखने
के दरम्यान के तीन
घंटे की बस एक
फिल्म हो जायेगी
हर सीन वाह वाह
और जय जय का
होता चला जायेगा
कैसे नहीं दिखेगा
आयेगा नहीं भी
तब भी फिल्म का
अंत सकारात्मक
कर ही दिया जायेगा
बिना टिकट खरीदे
फिल्म देखने का
आदी हो जायेगा
अच्छे दिन से
शुरु होगा दिन हमेशा
बिना बीच में रात
के आये ही अच्छे
किसी दिन पर जाकर
पूरा भी हो जायेगा
‘उलूक’ ने देखनी
शुरु कर दी है फिल्म
पूरी होनी ही है
पूरी हो भी  जायेगी
बिना देखे देखने की
आदत हो गई हो जिसे
कुछ देख के दिख जायेगा
तो बताने के लिये
वापिस भी जरूर आयेगा ।

चित्र साभार: www.hyperlino.com

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

सपने में ताबूत सिलने वाला सामने वाले की लम्बाई नापने के लिये ही साथ में आता है

शरीर और शक्ल में
हो ही रहा होता है
हमेशा ही अंतर

कभी किसी हीरो
की तरह दिखाई दे
कभी दिखने लगे
अगर एक बंदर

अलग अलग
परिस्थितियों में
अलग अलग सा
अपने को कोई
पाता भी है तो
समझ में आता है

समय के साथ
मगर नजरिया
बदल जाता है

शक्ल और शरीर
की तरह नहीं
अपनी तरह का
कुछ अलग सा
हो जाता है

ऐसा ही कुछ
बहुत बार
कहा जाता है

अपने बारे में सोचो
इस बात को लेकर
तो कुछ भी समझ
में नहीं आता है

माना कि
हर किसी की
आदतों के बारे में
सब कुछ नहीं
कहा जाता है

साथ में ना भी
रहा हो कोई
एक दो बार ही
बस मिला जुला हो
लौट कर कभी
फिर दिख जाता है

बहुत अच्छा लगता है
लगता है बहुत
समझ में आता है
हर कोई इसी का जैसा
क्यों नहीं हो जाता है

और एक रहता है
बरसों साथ में
शक्ल और शरीर को
अपनी बदलते हुऐ भी

लगता है सब कुछ
पता चल जाता है
ज्यादा ध्यान से
नहीं देखा जाता है

अपना होता है
अपने जैसा ही
समझ में आता है

और एक दिन
अचानक चिकनाई से
फिसलता हुआ कोई
इसी तरह के एक
घड़े से टकराते हुऐ
जब अपने को बचाता है

तो समझ में आता है
अरे जिसे कई बरसों से
समझा हुआ ही
समझा जाता है

वही क्यों कई बार
किसी खड़ी फसल
या खंबे के पास से
गुजरता हुआ अपनी
एक टाँग उठाता है

‘उलूक’ तेरा कुछ भी
नहीं हो सकता है
अब भी मान जा

बदलता है या नहीं
ये तो पता नहीं
पर जो होता है
कभी ना कभी

सच्चाई को
छुपाते छुपाते भी
अपने नहीं
किसी और के
आईने में छोड़ कर
चला आता है ।