उलूक टाइम्स: होशियारी
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गुरुवार, 17 मई 2018

आसार नजर आ रहे हैं बेवकूफ होशियारों में शामिल हो कर जल्दी ही उजड़ने जा रहे हैं

सारे
होशियार
होशियारों
में शामिल
होते जा रहे हैं

सारे
होशियार
होशियारों
के लिये
होशियारी
के साथ
होशियारी
के गीत
गा रहे हैं

बचे हुओं
को महसूस
करा रहे हैं

उनका हो
खो जाना

और सियार
हो जाना

सियार सारे
मिलकर भी
मातम नहीं
मना पा रहे हैं

बहुत
नाइन्साफी है
सोचना
ठीक नहीं है

इन्साफ
करने वाले
लगे हुऐ तो हैं

अपने तराजू के
पलड़े धुलवा कर
जमी हुयी धूल
मिट्टी उड़ा रहे हैं

बेवकूफों को
साफ समझ
में आने लगा है
अपना मन भर
बेवकूफ हो जाना

पता नहीं
फिर भी क्यों

चारों तरफ से
हो रहे होशियारों
के हल्ले गुल्ले में से
होशियारी निकाल
कर होशियार
हो लेने के
मंसूबे बना रहे हैं

होशियारों को भी
समझ में आ रही है
अपनी होशियारी

होशियारी
के महलों में
पहुँच लेने के
होशियार पुल
बना रहे हैं

घर की कहानी
घर में समझ
रहे हैं अपने अपने

सारे
बेवकूफ
दूरदर्शन में
चल रही

होशियारी की
बहसों को
सुन सुन कर
होशियारी
पका पका
कर खा रहे हैं

होशियारी
गली मुहल्ले
गाँव शहर में
फैलती जा रही है

बेवकूफों के
जीने मरने के
लाले पड़ने के
दिन आ रहे हैं

‘उलूक’ बैचेन है
गणित देख कर
होशियार की
होशियारी का

उसे
बेवकूफों के
होशियारों में
शामिल होकर
उजड़ने के दिन
बहुत नजदीक
नजर आ रहे हैं ।

चित्र साभार:
zenzmurfy.deviantart.com

सोमवार, 30 सितंबर 2013

चारे ने पहुंचा दिया एक बेचारे को जेल समझ में नहीं आता है !

सच में कभी कभी
अपनी होशियारी
का हमको भी पता
नहीं हो पाता है
एक बड़ी लूट को
जब अदालत में
मान लिया जाता है
तब छोटी छोटी
पाकेट मारी का
धंधा ही सबसे अच्छा
धंधा सिद्ध हो जाता है
ना सी बी आई को
पता चल पाता है
ना ही कोई अदालत
में ले जाकर सजा
का फैसला सुनाता है
छोटी छोटी बचत से
भी एक बड़ा घड़ा
भरा जाता है
फिर एक ही बार में
कोई एक बड़ा हाथ
मारने की गलती
क्यों कर जाता है
तभी तो कहा जाता है
क्यों बिना पढ़े लिखे
कोई नेतागिरी करने
चले जाता है
अपने को तो संभाल
नहीं पाता है
इतने बड़े देश को
चलाने के ख्वाब फिर
क्यों पालना चाहता है
बहुत कुछ है खाने के लिये
पर क्या किया जाये
अगर कोई घास खा कर
जेल जाना चाहता है
एक बेचारा चारे का
मारा हो जाता है
मुख्यमंत्री हो जाने से भी
कुछ नहीं हो पाता है
अपने साथ चार दर्जन
और लोगों का बंटाधार
भी करवाता है !
जो नहीं जा पाया है
किसी भी कारण से
जेल अभी भी
भविष्य के लिये ऐसी
घटनाओं को नजीर
क्यों नहीं बनाता है
अधिक से अधिक
पढ़ा लिखा होकर
छोटा मोटा रोज का
रोज खाने की आदत
क्यों नहीं बनाता है
तीस चालीस साल
की नौकरी में वो भी
जुड़ जुड़ा कर एक
करोड़ तो हो
ही जाता है
पर ऐसा दिमाग
लगाना भी सबको
कहां आ पाता है
इसीलिये कितना बड़ा
भी हो जाये नेता
कभी एक बुद्धिजीवी
नहीं कहलाता है ।