उलूक टाइम्स

रविवार, 27 सितंबर 2009

आशिक

वो अब हर बात में पैमाना ढूंढते हैं
मंदिर भी जाते हैं तो मयखाना ढूंढते हैं ।

मुहल्ले के लोगों को अब नहीं होती हैरानी
जब शाम होते ही सड़क पर आशियाना ढूंढते हैं ।

पहले तो उनकी हर बात पे दाद देते थे वो
अब बात बात में नुक्ताचीनी का बहाना ढूंढते हैं ।

जब से खबर हुवी है उनकी बेवफाई की
पोस्टमैन को चाय पिलाने का बहाना ढूंढते हैं ।

तारे तक तोड़ के लाने की दीवानगी थी जिनमें
बदनामी के लिये अब उनकी एक कारनामा ढूंढते हैं ।

उनकी शराफत के चरचे आम थे हर एक गली में
अब गली गली मुंह छुपाने का ठिकाना ढूंढते हैं ।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

साये का डर


गुपचुप गुपचुप गुमसुम गुमसुम
अंधेरे में खड़ी हुई तुम

अलसाई सी घबराई सी
थोड़ा थोड़ा मुरझाई सी

बोझिल आँखे पीला चेहरा
लगा हुवा हो जैसे पहरा

सूरज निकला प्रातः हुवी जब
आँखों आँखों बात हुवी तब

तब तुम निकली ली अंगड़ाई
आँखो में फिर लाली छाई

चेहरा बदला मोहरा बदला 

घबराहट का नाम नहीं था
चोली दामन साँथ नहीं था

हँस कर पूछा क्या आओगे
दिन मेरे साथ बिताओगे

अब साया मेरी मजबूरी थी
ड्यूटी बारह घंटे की पूरी थी

पूरे दिन अपने से भागा
साया देख देख कर जागा

सूरज डूबा सांझ हुवी जब
कानो कानो बात हुवी तब

तुम से पूछा क्या आओगे
संग मेरे रात बिताओगे

सूरज देखो डूब गया है
साया मेरा छूट गया है

बारह घंटे बचे हुए हैं
आयेगा फिर से वो सूरज

साया मेरा जी जायेगा
तुम जाओगे सब जायेगा

अब यूँ ही मैं घबरा जाउंगा

गुपचुप गुपचुप गुमसुम गुमसुम
अपने में ही उलझ पडूंगा ।

बुधवार, 23 सितंबर 2009

करवट

अचानक
उन टूटी खिड़कियों का
उतरा रंग 
चमकने लगा 

शायद
जिंदगी ने अंगड़ाई ली

शमशान
की खामोशी नहीं
शहनाईयां बज रही हैं आज

फिर से
आबाद होने को है 
उसका घरौंदा

कल तक 
रोटी कपडे़ के लिये 
मोहताज हाथों में 

दिखने लगी हैं
चमकती चूड़ियां 
जुल्फें संवरी हुवी हैं
होंठो पे लाली भी है

लेकिन
कहीं ना कहीं 
कुछ छूटा हुवा सा लगता है

चेहरे पे
जो नूर था
रंगत थी आंखों में 
आज वो उतरा हुवा सा
ना जाने क्यों लगता है

बच्चों के
चीखने की आवाज
अब नहीं आती है

बूड़े माँ बाप
के चेहरों पे
खामोशी सी छाई है 

शायद
किसी आधीं ने 
उड़ा दिया सब कुछ

अपनी जगह
पर ही है हर एक चीज
हमेशा की तरह 

पर कुछ तो हुआ है
ना जाने 

जो
महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं है।

सोमवार, 21 सितंबर 2009

कर्ण

ज़िंदगी
में
कितनी बार
मरे
कोई

बार बार
मर के
जिंदा
रहे
कोई

मरने के बाद
ज़न्नत की 
बात करे
कोई

ज़न्नत
और 
दोज़ख

ज़िंदा 
रह कर
भोगे
कोई

मांगने
को 
हिकारत से 
देखे
कोई

फिर भी 
ताज़िंदगी
मंगता रहे
कोई

एक
भिखारी
को कौड़ी
दे कर
कोई

कर्ण बनने 
का दम
भरता
कोई

पैदा होते
दे दे
कहता
कोई

माँ बाप
बहन भाई
से
लेता
कोई

औरत बच्चे
झूठे सच्चे
से
मांगे
कोई

मंदिर मस्जिद
चर्च गुरुद्वारा
झांके
कोई

बुड़ापे में जवानी
जवानी में रवानी
मांगे
कोई

मांगे मांगे
भिखारी
बन गया
कोई

फिर भी
भिखारी
को कौड़ी
दे कर
कोई

आता जाता
पीता खाता

खुशफहम
रहता कोई।

जलन

चारों तरफ बज रही शहनाई है
मेरे घरोंदे में चाँदनी उतर आई है ।

पड़ोसी के चेहरे पे उदासी छाई है
लगता है 
उनको चाँद ने घूस खाई है ।

मेरे कुत्ते की जब से बड़ रही लम्बाई है
पड़ोसन बिल्ली के लिये टोनिक लाई है ।

कितनी मुश्किल से बात छिपाई है
लेकिन वो तो पूरी सी बी आई है ।

पंडित जी की बढ़ गयी कमाई है
बीबी ने दरवाजे पे मिर्ची लटकाई है ।