उलूक टाइम्स

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

समझ

मेरा अमरूद उनको
केला नजर आता है
मैं चेहरा दिखाता हूँ
वो बंदर चिल्लाता है
मैं प्यार दिखाता हूँ
वो दांत दिखाता है
मेरी सोच में लोच है
उसके दिमाग में मोच है
धीरे धीरे सीख लूंगा
उसको डंडा दिखाउंगा
प्यार से गले लगाउंगा
जब बुलाना होगा
तो जा जा चिल्लाउंगा
डाक्टर की जरूरत पड़ी
तो एक मास्टर ले आऊंगा
तब मेरा अमरूद उसको
अमरूद नजर आयेगा
मेरी उल्टी बातों को
वो सीधा समझ जायेगा ।

सोमवार, 18 जनवरी 2010

मन प्रदूषण

मेरे मन
के
ग्लेशियर
से

निकलने
वाली गंगा

तेरे प्रदूषण
को
घटते बढ़ते

हर पल
हर क्षण
महसूस किया
है मैंने

भोगा है
तेरे गंगाजल
के
काले भूरे
होते हुवे 
रंग को

विकराल 
होते हुवे 

तेरी शांत 
लहरों को

बदलते हुवे
सड़ांध में

तेरी
भीनी भीनी
खुश्बू को

और ऎसे
में अब

मेरी 
सांस्कृ्तिक
धरोहर

मैं खुद
ही चाहूंगा

ये
ग्लेशियर
खुद बा खुद
सूख जाये

ताकि मेरे
मन से 
बहने वाली
पवित्र गंगे

तू मैली
ना कहलाये ।

रविवार, 17 जनवरी 2010

भ्रम

आदमी 

क्यों चाहता है

अपनी ही शर्तों पर
जीना

सिर्फ
अमन चैन
सुख की 
हरियाली
में सोना

ढूंढता है

कड़वे स्वाद
में मिठास

और
दुर्गंध में 
सुगंध

हाँ

ये आदमी
की ही 
तो है
चाहत

उसे भूलने
से मिलती
है राहत

फिर भी

पीढ़ा दुख
का अहसास

एक स्वप्न
नहीं

सुख की
ही है
छाया

और
छाया कभी
पीछा नहीं
छोड़ती

सिर्फ अँधेरे
से है
मुंह मोड़ती

आदमी
अंधेरा भी 
नहीं चाहता

करता है
सुबह का
इंतजार

अंधेरा 
मिटाने को

रात का
इंतजार

छाया 
भगाने को

और
ऎसे ही
निकलते
हैं दिन बरस

फिर भी
न जाने 
आदमी

क्यों
चाहता है
अपनी ही 
शर्तों पर
जीना ।

शनिवार, 16 जनवरी 2010

आदमी और सौर मण्डल

आदमी
घूमता है
तारा बन

अपने ही
बनाये
सौर मण्डल
में

घूमते घूमते
भूल
जाता है

कि
घूमना
है उसे

अपने ही
सूरज के
चारों ओर

जिंदगी के
हर हिस्से
के सूरज

नज़र आते
हैंं उसे

अलग अलग

घूमते घूमते
भूल
जाता है

चक्कर 
लगाना

और
लगने लगता
है उसे

वो नहीं
खुद सूरज
घूम
रहा है

उसके
ही
चारों
ओर ।

सोमवार, 2 नवंबर 2009

भारत की पचासवीं वर्षगांठ

प्रतीक्षा में हूँ
उन सर्द
हवाओं की
जो मेरी
अन्तरज्वाला
को शांत करें ।

प्रतीक्षा में हूँ
उन गरम
फिजाओं की
जो मेरे
ठंडेपन को
कुछ गरम करें ।

सदियों से
मेरी गर्मी
मेरी सर्दी
से राजनीति
कर रही है ।

सर्द हवाऎं
मेरी सर्दी
को अपना
लेती हैं ।

गरम फिजाऎं
मेरी ज्वाला
को उतप्त
बना देती हैं

आज भी मैं
वहीं हूँ
जहाँ मैं
जल रहा था ।

आज भी मैं
वहीं हूँ
जहाँ मैं

जम रहा था ।


अब
पचास वर्षों
के बाद

मुझे इंतजार है
न सर्द
हवाओं का ।

न इंतजार है
गरम
फिजाओं का ।

शायद यही
रास्ता है

कभी

मेरी गर्मी
मेरी सर्दी
से मिले
और
यूं ही
भटकते हुवे
मुझे स्थिरता
मिले ।