उलूक टाइम्स

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

"Its fashion to walk in hills and not to ride a car"

दो वर्ग
किलोमीटर के
मेरे शहर की
कैन्टोंन्मेंट
की दीवार
उस पर लिखी
ये इबारत

अब मुंह चिढ़ाती है

शहर के लोग
अब
सब्जी खरीदने
कार में
आने लगे हैं

वो
उनके बच्चे
दोपहियों
पर भी
ऎसे उड़ते हैं
जैसे
शहर पर
आने वाली है
कोई आफत

वो नहीं पहुंचे
अन्ना हजारे
और जलूस
दूर निकल जायेंगे
बाबा रामदेव
भाषण खत्म
कर उड़ जायेंगे

जिस दिन
बढ़ जाते हैं
पैट्रोल के दाम
और दौड़ने
लगती हैं
चमकती दमकती
कुछ और
मोटरसाईकिलें
मालरोड पर

थरथराने
लगते हैं
बच्चे बूढ़े
सूखे पत्तों
की तरह

पट्टी बंधवाते
दिखते हैं
कुछ लोग
हस्पताल में

चेहरे पर रौनक
दिखाई देती है
पुलिस वालो के

महसूस होती है
जरूरत
एक सीटर
हैलीकोप्टर की
मेरे शहर के
जांबाज बच्चो,
बच्चियों, मांओं
पिताओं के
हवा में
उड़ने के लिये

गर्व से कहें वो

हम पायलट है
जमीन पर नहीं
रखते कदम

और

जमीन पर
चलने वाले
बच्चे बूढ़े
कर सकें
कुछ देर
मुस्कुराते हुवे
सड़कों पर
कदमताल ।

रविवार, 30 अक्तूबर 2011

नासमझ

कहाँ पता
चल पाता है
आदमी को

कि वो
एक माला
पहने हुवे
फोटो हो
जाता है

अगरबत्ती
की खुश्बू
भी कहां आ
पाती है उसे

तीन पीढ़ियों
के चित्र
दिखाई देते हैं
सामने
कानस में
धूल झाड़ने
के लिये
दीपावली से
एक दिन पहले

चौथी पीढ़ी
का चित्र
वहां नहीं
दिखता
शायद मिटा
चुका होगा
सिल्वर फिश
की भूख

गद्दाफी को
क्रूरता से
नंगा कर
नाले में
दी गयी मौत
कोल्ड स्टोरेज
में रखा
उसका शव
भी नहीं देख
पाया होगा
वो अकूत
संपत्ति जो
अगली
सात पीढ़ियों
के लिये भी
कम होती

पर बगल में
पड़ा
उसके बेटे
का शव भी
खिलखिला
के हँसता
रहा होगा
शायद

कौन
बेवकूफ
समझना
चाहता है
ये सब
कहानियां

रोज
शामिल
होता है
एक शव
यात्रा में
लौटते
लौटते
उसे याद
आने
लगती है
जीवन बीमा
की किस्त ।

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

समझ

मेरा अमरूद उनको
केला नजर आता है
मैं चेहरा दिखाता हूँ
वो बंदर चिल्लाता है
मैं प्यार दिखाता हूँ
वो दांत दिखाता है
मेरी सोच में लोच है
उसके दिमाग में मोच है
धीरे धीरे सीख लूंगा
उसको डंडा दिखाउंगा
प्यार से गले लगाउंगा
जब बुलाना होगा
तो जा जा चिल्लाउंगा
डाक्टर की जरूरत पड़ी
तो एक मास्टर ले आऊंगा
तब मेरा अमरूद उसको
अमरूद नजर आयेगा
मेरी उल्टी बातों को
वो सीधा समझ जायेगा ।