उलूक टाइम्स

बुधवार, 23 नवंबर 2011

आदमी / बंदर

डारविन को
कोट कर
सुना है बंदर
को आदमी
बना दिया गया
उन किताबों मे
लिखा गया है
जिनका
आई एस बी एन
नम्बर भी हुवा
करता है
यानि
जो आदमी
को कभी
कुछ अंक भी
दिया करता है
बंदर से
एक पक्का
आदमी
बनाने में
जब से
अंको की
गिनती होना
शुरू हुवी है
बंदर भी सुना
अंको के
जुगाड़ में हैं
बंदर अब खेत
नहीं उजाड़ते
किताबे छापना
शुरू कर
दिये हैं
और तब से
किसी भी
बंदर को डारविन
का डर नहीं
सताता
अब बंदर
आदमी को देख
कर भागना
बंद करने
वाले हैं
अंक पूरे कर
आदमी ही
हो जाने
वाले हैं ।

रिटायरमेंट

साठ से
हो गयी
पैंसठ
की हवा
फिर से
अचानक
क्या उड़ी
सुनते ही
शर्मा जी
की लाठी
पीछे गली
में जा पड़ी
नाई की
दुकान में
हो गया
बबाल
मेंहदी के
दाम में
देखा गया
अचानक
उछाल
पचास से
जो लोग
छुट्टियों में
थे जाने लगे
आज मेडिकल
सी एल पी एल
सभी को वापिस
मंगवाने लगे
और तो और
कई उम्रदराज
दस से चार
दिखाई दिये
साढ़े चार पर
चपरासी की
विदाई किये
उपर वाले
देख ले
साठ के उपर
पांच पर
जब आ रहा है
इतना ज्वार
पैंसठ छोड़ ना
पूरे सौ बना
फिर देखना
बूढ़े बूढ़े तेरे
से कितना
करने
लगते हैं
प्यार।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

राजा लोग

कुछ साल
पहले ही
की बात है

हर शाखा
का
होता था
एक राजा

प्रजा भी
होती थी
चैन से
सोती थी

खुशहाली
ना सही
बिकवाली
तो नहीं
होती थी

राजा
आज भी
हुवा करता है

पर प्रजा
अब
पता नही
कहाँ है

अब तो
हर शख्स
राजा बना
बैठा है

कोई
राजा भी
कभी
राजा की
सुनता है

इसलिये
हर एक
अपना
किला
बुनता है

हर तरफ
किलों कि
भरमार है

लेकिन
सिपाही
फिर भी
ना
जाने क्यों
रहे हार हैं ?

सब ठीक है

सब कुछ
आराम से
चलता रहे
इस देश में
अगर
कुछ लोग
फालतू में
अन्ना ना
बनकर
दूसरौं के
गन्नो को
लहलहाने दें
सब कुछ
ठीक चलता
रहता है
सिर्फ
थोड़ी देर
असमंजस
होती है उसे
जिसे
फटे में टांग
अड़ाने की
आदत है
सब कुछ
होता है
सब स्वीकार
करते हैं
बस कुछ
बिल्लियां
खिसियाती हैं
और पंजो
के निशान
आप देख
सकते हैं
ब्लाग के
पन्नो पर ।

टी ऎ डी ऎ

एक पैन
एक कागज
ही तो
चाहिये होता
है बस

बनाने
के लिये
चार लोग
एक कार
को

रेल
हवाई जहाज
या बैलगाड़ी
के चार लोग

बाजीगरी
खूँन में
नहीं आती
किसी के

हुनर सिखाने
में माहिर
हो गये हैं
मेरे मोहल्ले
के लोग ।

ईमानदार

आज
अचानक मैं
कहीं
गलती से
पहुंच बैठा
तभी कोई
सामने आया
और बोला
गुरू जी
भ्रष्टाचार
के विरुद्ध
चल रही है
अंदर
हाल में
लड़ाई
आप भी
शामिल हो के
जरा ले लो
ना अंगड़ाई
मैं झेंपा
थोड़ा शर्माया
फिर थोड़ा
हिम्मत कर
बड़बड़ाया
भाई क्यों
मुझ भ्रष्ट को
ताव दिला
रहे हो
बहुत कुछ
हो रहा है
शहर में
वहां
क्यों नहीं
बुला रहे हो?
कुछ उधर
मेरा जुगाड़
लगाओ तो
बात बने
कुछ नोट
हाथ लगें
तो तन्ख्वाह
के सांथ
दाल में तड़का
तो लगे।

रविवार, 20 नवंबर 2011

रंग

आदमी भी
तो बदलता
है कई रंग
पर नहीं सुना
कभी उसे
किसी के द्वारा
बुलाते हुवे
'ऎ इन्द्र धनुष'
आज जब
वो पारंगत
हो चुका है
कई रंग
बदलने में
फिर भी
कहलाया जा
रहा है
केवल एक
'गिरगिट'।

बुधवार, 9 नवंबर 2011

दौरा

एक गड्ढा
जो बहुत
दिनो से
बहुत
लोगो को
गिरा रहा था

आज शाम
पी डबल्यू डी
की फौज द्वारा
भरा जा रहा था

सारे अफसरों के
हाथ में झाडू़
तक दिखाई
दे रहे थे

होट मिक्स
हो रहे थे
रोलर तक
चलाये दे
रहे थे

पब्लिक की
समझ में
कुछ नहीं
आ रहा था

जिसको देखो
वो कुछ ना कुछ
अंदाज लगा
रहा था

अरे कल
उत्तराखंड
का बर्थडे है
एक बता
रहा था

डी ऎम की
कार तक
बेटाईम
खड़ी थी
माल रोड पर

किसी से पूछा
तो पता चला
वो भी शहर में
चक्कर लगा
रहा था

इतने में
"मोतिया"
हंसता
हुवा आ
रहा था

बड़े जोर
जोर से
ठहाके लगा
रहा था

पूछा तो
बोलता जा
रहा था

पागल मत
हो जाओ
गड्ढा ही तो
भरा जा
रहा है

सालों को
पता भी नहीं
कल मुख्यमंत्री
बाय रोड
आ रहा है ।

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

दंगे

नटखट
चूहे की
खटखट से
चौंक कर

लटपट
करते उठी

तुरंत फेंक
रजाई

चटपट गिरा
जमीन पर
दौड़ पड़ी
रसोई
की ओर

हुवी भी
नहीं थी भोर

अल्साये
अंधेरे में
मलते
हुवे आंख

भूल गयी
समय
की ओर
देखना भी

रोज
की तरह
चूल्हे पर
चाय की
केतली चढ़ा

जोर से
बड़बड़ाई

माचिस
की डिब्बी
को ढूंढते
खिड़की के
दरवाजे से
टकराई

हमेशा
की तरह
बाहर आयी

फिर
अचानक
बैठ गयी
दरवाजे पर

याद
आ गया
उसे फिर

कि

बेटा तो
दंगे की भेंट
चढ़ गया

किसी
और के
बेटे को
बचाते बचाते

और
सुबह की
चाय का पानी

खौलता रहा
केतली में ।

गांधी

गांंधी तेरी याद
हो गयी फिर
एक साल पुरानी
पिछले साल
थी आयी
फिर आ गयी
इस साल
कुछ फोटो
पोस्टर बिके
मूर्तियां धुली
धुली सी
मुस्कुरा रहा था
आज
फूल बेचने
वाला भी
दो अक्टूबर
बर्बाद हो गया
बच्चे कह रहे थे
मायूसी से
आज तो
रविवार हो गया
सुबह सुबह
उठकर
जाना पड़ा
झंडा धूल झाड़
फहराना पडा़
तब किये
सत्य पर प्रयोग
अब कोई
कैसे करे उपयोग
सत्य जैसे अब
खादी हो गया
आदमी जीन्स का
आदी हो गया
गांधी चले जाओ
अब शाम हो गयी
लाठी चश्मा घड़ी
तो नीलाम हो गयी
आ जाना
अगले साल
फिर से एक बार
नमस्कार जी
नमस्कार जी
नमस्कार ।

"Its fashion to walk in hills and not to ride a car"

दो वर्ग
किलोमीटर के
मेरे शहर की
कैन्टोंन्मेंट
की दीवार
उस पर लिखी
ये इबारत

अब मुंह चिढ़ाती है

शहर के लोग
अब
सब्जी खरीदने
कार में
आने लगे हैं

वो
उनके बच्चे
दोपहियों
पर भी
ऎसे उड़ते हैं
जैसे
शहर पर
आने वाली है
कोई आफत

वो नहीं पहुंचे
अन्ना हजारे
और जलूस
दूर निकल जायेंगे
बाबा रामदेव
भाषण खत्म
कर उड़ जायेंगे

जिस दिन
बढ़ जाते हैं
पैट्रोल के दाम
और दौड़ने
लगती हैं
चमकती दमकती
कुछ और
मोटरसाईकिलें
मालरोड पर

थरथराने
लगते हैं
बच्चे बूढ़े
सूखे पत्तों
की तरह

पट्टी बंधवाते
दिखते हैं
कुछ लोग
हस्पताल में

चेहरे पर रौनक
दिखाई देती है
पुलिस वालो के

महसूस होती है
जरूरत
एक सीटर
हैलीकोप्टर की
मेरे शहर के
जांबाज बच्चो,
बच्चियों, मांओं
पिताओं के
हवा में
उड़ने के लिये

गर्व से कहें वो

हम पायलट है
जमीन पर नहीं
रखते कदम

और

जमीन पर
चलने वाले
बच्चे बूढ़े
कर सकें
कुछ देर
मुस्कुराते हुवे
सड़कों पर
कदमताल ।

रविवार, 30 अक्तूबर 2011

नासमझ

कहाँ पता
चल पाता है
आदमी को

कि वो
एक माला
पहने हुवे
फोटो हो
जाता है

अगरबत्ती
की खुश्बू
भी कहां आ
पाती है उसे

तीन पीढ़ियों
के चित्र
दिखाई देते हैं
सामने
कानस में
धूल झाड़ने
के लिये
दीपावली से
एक दिन पहले

चौथी पीढ़ी
का चित्र
वहां नहीं
दिखता
शायद मिटा
चुका होगा
सिल्वर फिश
की भूख

गद्दाफी को
क्रूरता से
नंगा कर
नाले में
दी गयी मौत
कोल्ड स्टोरेज
में रखा
उसका शव
भी नहीं देख
पाया होगा
वो अकूत
संपत्ति जो
अगली
सात पीढ़ियों
के लिये भी
कम होती

पर बगल में
पड़ा
उसके बेटे
का शव भी
खिलखिला
के हँसता
रहा होगा
शायद

कौन
बेवकूफ
समझना
चाहता है
ये सब
कहानियां

रोज
शामिल
होता है
एक शव
यात्रा में
लौटते
लौटते
उसे याद
आने
लगती है
जीवन बीमा
की किस्त ।

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

समझ

मेरा अमरूद उनको
केला नजर आता है
मैं चेहरा दिखाता हूँ
वो बंदर चिल्लाता है
मैं प्यार दिखाता हूँ
वो दांत दिखाता है
मेरी सोच में लोच है
उसके दिमाग में मोच है
धीरे धीरे सीख लूंगा
उसको डंडा दिखाउंगा
प्यार से गले लगाउंगा
जब बुलाना होगा
तो जा जा चिल्लाउंगा
डाक्टर की जरूरत पड़ी
तो एक मास्टर ले आऊंगा
तब मेरा अमरूद उसको
अमरूद नजर आयेगा
मेरी उल्टी बातों को
वो सीधा समझ जायेगा ।

सोमवार, 18 जनवरी 2010

मन प्रदूषण

मेरे मन
के
ग्लेशियर
से

निकलने
वाली गंगा

तेरे प्रदूषण
को
घटते बढ़ते

हर पल
हर क्षण
महसूस किया
है मैंने

भोगा है
तेरे गंगाजल
के
काले भूरे
होते हुवे 
रंग को

विकराल 
होते हुवे 

तेरी शांत 
लहरों को

बदलते हुवे
सड़ांध में

तेरी
भीनी भीनी
खुश्बू को

और ऎसे
में अब

मेरी 
सांस्कृ्तिक
धरोहर

मैं खुद
ही चाहूंगा

ये
ग्लेशियर
खुद बा खुद
सूख जाये

ताकि मेरे
मन से 
बहने वाली
पवित्र गंगे

तू मैली
ना कहलाये ।

रविवार, 17 जनवरी 2010

भ्रम

आदमी 

क्यों चाहता है

अपनी ही शर्तों पर
जीना

सिर्फ
अमन चैन
सुख की 
हरियाली
में सोना

ढूंढता है

कड़वे स्वाद
में मिठास

और
दुर्गंध में 
सुगंध

हाँ

ये आदमी
की ही 
तो है
चाहत

उसे भूलने
से मिलती
है राहत

फिर भी

पीढ़ा दुख
का अहसास

एक स्वप्न
नहीं

सुख की
ही है
छाया

और
छाया कभी
पीछा नहीं
छोड़ती

सिर्फ अँधेरे
से है
मुंह मोड़ती

आदमी
अंधेरा भी 
नहीं चाहता

करता है
सुबह का
इंतजार

अंधेरा 
मिटाने को

रात का
इंतजार

छाया 
भगाने को

और
ऎसे ही
निकलते
हैं दिन बरस

फिर भी
न जाने 
आदमी

क्यों
चाहता है
अपनी ही 
शर्तों पर
जीना ।

शनिवार, 16 जनवरी 2010

आदमी और सौर मण्डल

आदमी
घूमता है
तारा बन

अपने ही
बनाये
सौर मण्डल
में

घूमते घूमते
भूल
जाता है

कि
घूमना
है उसे

अपने ही
सूरज के
चारों ओर

जिंदगी के
हर हिस्से
के सूरज

नज़र आते
हैंं उसे

अलग अलग

घूमते घूमते
भूल
जाता है

चक्कर 
लगाना

और
लगने लगता
है उसे

वो नहीं
खुद सूरज
घूम
रहा है

उसके
ही
चारों
ओर ।