उलूक टाइम्स

बुधवार, 30 नवंबर 2011

याद आया किसी को पहाड़

चढ़ने के लिये
जरूरी हैं
देश विदेश के
पर्वतारोहियों
के लिये एक
मजबूरी
कभी नहीं
हुवे पहाड़ ।

उतरना कभी
जरूरी नहीं
हुवा करता
पर अब मजबूरी
बन गया उतरना
वो ही पहाड़ ।

जरूरी है अब
खाली हो जाना
तमाशा खत्म
हो गया हो जब
बनते ही नया
पहाड़ी राज्य
अब तेरा
क्या काम
रे पहाड़ ।

गड़े झंडे
आ जाते नजर
बहुत दूर से
आंदोलनरत था
जब पहाड़ी
और पहाड़ ।

पुराने दिन
किसे हैं
याद जब
कहलाता था
पूरा राज्य दुर्गम
तब भी कहां कोई
आना जाना
चाहता था पहाड़।

चिंता में है
सुना केंद्र
पलायन से
बेरोजगार के
अचंभा हो रहा है
क्यों किसी को
याद अचानक
आ गया
फिर से पहाड़।

मुद्दा आया
हाथ में एक
गरम हमारी
सरकार के
चुनाव पर
एक बार फिर
छला जाने
वाला है पहाड़।

खाली क्यों
हो रहे हैं
देश में पहाड़
हर प्रकार के
दिल्ली देहरादून
में बैठौं को
सपने में
दिखे हैं
कल पहाड़।

सर्वेक्षण में
जुटेंगे कुछ
खिलाड़ी भीषण
सूबेदार के
चढ़ने वाले
नहीं हैं फिर भी
वो भूल कर
हल्द्वानी
से पहाड़।

आंकड़े खोजेंगे
अधिकारी
पहली बार
इस प्रकार के
अमरउजाला में
एक बार फिर
छपता दिख गया
पहाड़ो में पहाड़।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

ब्लाग का भिखारी

किस्म किस्म
के पकवान
लेकर रोज
पहुंचे
पहलवान

सुबह के
नाश्ते से
लेकर
शाम का
भोजन
तैयार है

किसी में
नमक
ज्यादा
तो कोई
पकने से
ही कर
चुका
इन्कार है

फिर भी
हर कोई
खिलाना
चाहता है
ना खाओ
तो भी
चिपकाना
चाहता है

कोई
पेट खराब
के बहाने
से खुद
को बचा 

ही ले
जाता है

किसी को
व्रत त्योहार
का बहाना
बनाना
बहुत अच्छी
तरह से
आता है

कुछ
मजबूरी
में
पसंद पे
चटका
लगा कर
हाथ
झाड़ लिया
करते हैं

बहुत से
कुछ नहीं
पकाते हैं

इधर
का खाना
उधर से
उधार लिया
करते हैं

बाजार में
हलचल है
लोग तेजी
से इधर
उधर जा
रहे हैं

पूछने पर
पता चला
वो भी
शाम को
अब यहीं
कहीं आ
जा रहे हैं

लोग मेरे
शहर के
बहुत खुश हैं

वो अब
चाटने के                
लिये नहीं
आता है
सन्नाटा
हो गया
हो कहीं पर
धमाका
रोज यहां
वो कर
जाता है

किसी को
कैसे चले
पता अब वो
यहां का चटोरा
बन गया है

लोग भी
कैसे मुंह
बचायें अपना
भिखारी
का एक
कटोरा
बन गया है

दे दे
अल्ला के
नाम पर
एक पसंद
का चटका
दे भी दे
तेरा क्या
जायेगा

जो दे
उसका भी
भला होगा
जो ना दे
वो भी
कभी अपने
लिये कुछ
मांंगने
के लिये
आयेगा ।

रविवार, 27 नवंबर 2011

सब की पसंद

मछलियों को
बहलाता फुसलाता
और बुलाता है
वो अपने आप
को एक बड़ा
समुंदर बताता है
पानी की एक बूंद
भी नहीं दिखती
कहीं आसपास
फिर भी ना जाने
क्यों हर कोई उसके
पास जाता है
मर चुकी
उसकी आत्मा
कभी सुना
था बुजुर्गों से
कत्ल करता है
कलाकारी से
और जीना
सिखाता है
अधर्मी हिंसंक
झूठा है वो
पंडालों में
पूजा जाता है
जमाना आज का
सोच कर
उसको ही तो
गांधी बताता है
देख कर उसे
ना जाने मुझे
भी क्या
हो जाता है
कल ही कह रहा
था कोई यूं ही
कि अन्ना तो
वो ही बनाता है ।

शनिवार, 26 नवंबर 2011

थप्पड़

थप्पड़ घूंसे
और लात
बहुत पुरानी
तो नहीं
कुछ समय
पहले पैदा
हुवी संस्कृति
पूर्ण रूपेण
भारतीय
दूसरी तरफ
अन्ना
सफेद टोपी
और
उनकी आरती
वो भी पूर्ण
भारतीय
दोनों में
पब्लिक का
जबर्दस्त
देख लो ना
योगदान
ओ कदरदान
भाषण वक्तव्य
समाचार
और टी वी
के प्रोग्राम
टी आर पी
बढ़ाने के
नित नवीन
प्रयोग
इसे क्या
नहीं कहेंगे
केवल एक
संयोग
कि नहीं
समझ पाया
आज तक
कोई
भारत का
भीड़ योग
अन्ना आता है
भीड़ लाता है
सब शान्ति से
निपट जाता है
अन्ना जाता है
भीड़ ले जाता है
और परदा
गिरते ही
बेचारा
एक नेता
मुफ्त में
थप्पड़ खा
जाता है ।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

अभिनेता आज के समाज में

अंदर की
कालिख को
सफाई से
छिपाता हूँ

चेहरा
मैं हमेशा 
अपना
चमकाता हूँ

शातिर
हूँ मैं
कोई नहीं
जानता 
है

हर कोई मुझे
देवता जैसे
के नाम से
पहचानता 
है

मेरा
आज तक
किसी से कोई
रगड़ा
नहीं हुवा 
है

और तो और
बीबी से भी
कभी झगड़ा
नहीं हुवा 
है

धीरे धीरे
मैने अपनी
पैठ बनाई 
है

बड़ी मेहनत से
दुकानदारी 
चमकाई 
है

कितनो को
इस चक्कर में
मैने लुटवा दिया 
है

वो आज भी
करते हैं प्रणाम
सिर तक
अपने पांव में
झुकवा दिया 
है

पर अंदाज
किसी को 
कभी नहीं
आता  है

खेल खेल
में ही ये सब
बड़े आराम
से किया
जाता है

और  मैं
बडे़ आराम से हूँ
चैन की बंसी
बजाता हूं

जो भी
साहब
आता है
पहले उसको
फंसाता हूँ

सिस्टम को
खोखला
करने में
हो गई है
मुझे महारत

तैयारी में हूँ
अब करवा
सकता हूँ
कभी भी
महाभारत

तुम से ही
ये सारे
काम करवाउंगा

अखबार में
लेकिन फोटो
अपनी ही
छपवाउंगा

इस पहेली को
अब आपको ही
सुलझाना है

आसपास आज
आप के
कितने मैं
आबाद हो गये हैं
पता लगाना है

ज्यादा कुछ
नहीं करना है
उसके बाद
हल्का सा
मुस्कुराना है ।