उलूक टाइम्स

शनिवार, 30 जून 2012

मूल्याँकन


हेलो हेलो हेलो

बोलो जी बोलो

परीक्षा मूल्याँकन
का काम
ऊपर
से
विशेष आपके
लिये ही
आया है

तीन तीन सौ
कापियों के पूरे
बीस
बंडलों का लौट
हमने अभी
ट्रक से
उतरवाया है

तुरंत उठवा के 
यहां से ले जाइये
सात दिन के अंदर
जांच के हमको
वापस भिजवाइये

किस
प्रश्नपत्र की हैं
कोई अंदाज हो 
तो हमें जरा बताइये

सूरदास तुलसीदास
टाईप की लगती हैं 
हिन्दी की हैं
यही 
मान ले जाइये

जनाब
हिन्दी की
कैसे जाँच पाऊंगा
गैर कानूनी काम है
कहीं
फंस फंसा तो
नहीं मैं जाउंगा
फिर
किसको अपना
मुँह दिखा पाउंगा

डरने
की जरूरत
बिलकुल नहीं है जनाब
सब लोग हम है
मजबूती से एक
दूसरे के पक्का साथ

जल्दी
परीक्षाफल
अगर निकाल ले जायेंगे

अपने लिये ना सही
अपने साहब के लिये
कोई
तमगा कहीं से
तो
एक बटोर लायेंगे

इसलिये
दिमाग हमने
बहुत लगाया है

जिसका
विषय जो है
उसकी कापियों
को
किसी और को जाँचने
के लिये
भिजवाया है

किसने
क्या लिखा है
अगर समझ में 
ही
नहीं आयेगा

परीक्षक
झक मारकर
कापी अंदर से देखने
का काम
नहीं बढ़ायेगा

बाहर से ही
अंक
कुछ तो
टिका ले ही जायेगा 

हमारा
काम भी 
फटाफट हो जायेगा

कौन
पूछ रहा है फिर
पेमेंट
भी आपका
हाथों हाथ जब 
हो ही
जायेगा।

शुक्रवार, 29 जून 2012

सरकारी राय

शहर का
एक इलाका
सड़क में पड़ी
पचास मीटर
लम्बी दरार
लपेट में आये
कुछ लोगों
के घर चार

जिलाधिकारी आया
साथ में
सत्ता पक्ष के
विधायक को लाया

मौका मुआयना हुआ
नीचे खुदा हुआ बहुत
बड़ा एक पहाड़
सबको सामने दिखा

कुछ दिन पहले सुना
बड़ी बड़ी मशीने
रात को आई
रात भर आवाजेंं कर
सुबह को पता नहीं
किसने कहाँ पहुँचाई

किसने खोदा
सबके मुँह
तक नाम
आ रहा था
गले तक आकर
पीछे को
चला जा रहा था

इसी लिये कोई
कुछ भी बताने
में इच्छुक नजर
बिल्कुल भी
नहीं आ रहा था

जिलाधिकारी
अपने
मातहतों के उपर
गुस्सा बरसा रहा था

अखबार में
अखबार वाला भी
खबर छपवा रहा था

नाम
पर किसी का
नहीं कहीं भी कोई
आ रहा था

हर कोई
कोई है
करके सबको
बता रहा था

सरकारी अमला
घरवालों के घरों
को तुरंत खाली
करवा रहा था

साथ में मुफ्त में
समझाये भी
जा रहा था

जब देख रहे थे
पहाड़ नीचे को
जा रहा था

तो किस बेवकूफ
के कहने पर तू यहाँ
घर बना रहा था

खोदने वाले को
कुछ नहीं
कोई कर पायेगा

भलाई तेरी
इसी में
दिख रही है
अगर
तू बिना
कुछ कहे
कहीं को
भाग जायेगा

इसके बाद
भूल कर भी
जिंदगी में
कहींं पर
घर बनाने
की गलती
दुबारा नहीं
दोहरायेगा।

गुरुवार, 28 जून 2012

दीवाने/बेगाने

चाँद
सोचना

चाँदनी
खोदना

तारों की
सवारी

फूलों पर
लोटना


तितलियों
को देख

खुश
हो जाना

मोरनियाँ
पास आयें

मोर
हो जाना

पंख फैलाना
नाच दिखाना

आँखे कहीं
दिख जायें

बिना देखे
कूद जाना

तैरना
आता हो

तब भी
डूब जाना


किसी और
को पिलाना

बहक खुद
ही जाना

जमाना
तो है ऎसे 

ही दीवानो
का दीवाना


लकड़ी की
सोचना

मकड़ियों
को देखना

सीधा कोई
मिल जाये

टेढ़ा हो जाना

मिट्टी तेल
की ढिबरी

से चाँद
तारे बनाना

जब तक
पडे़ नहीं

बैचेनी
दिखाना

पड़ी में
दो लात

ऊपर
से खाना

गधे की
सोचना

शुतुरमुर्ग
हो जाना


किसी के
भी फटे में

जाकर के
टांग अढ़ाना

किसकी
समझ में

आता है
ऎसों
का गाना

टूटे फूटे इन
बेगानों को

किसने है
मुँह लगाना।

बुधवार, 27 जून 2012

विदाई

आज मैडम जी को
विदा कर के आया
उनके अवकाश ग्रहंण
के उपलक्ष्य में था
विभाग ने एक
समारोह करवाया
विदाई समारोह में
ऎसा महसूस होने
लग जाता है
मजबूत से मजबूत
आदमी भी थोड़ा
भावुक अपने को
जरूर दिखाता है
कौऎ मुर्गी कबूतर
भी होते हैं कहीं
आस पास में मौजूद
माहौल उन सबको भी
बगुला भगत बनाता है
एक के बाद एक
मँच पर बोलने
को बुलाया जाता है
कभी कुछ नहीं
कहने वाला भी
लम्बा एक भाषण
फोड़ ले जाता है
कोई शेर लाता है
शायर हो जाता है
कोई गाना सुनाता है
किशोर कुमार की
टाँग तोड़ने में जरा
भी नहीं घबराता है
कविता ले के आने वाला
अपने को सुमित्रा नन्दन पँत
हूँ कहने में नहीं शरमाता है
सेवा काल में सबसे ज्यादा
गाली खाने वाला जो होता है
सबसे बड़ी माला
वो ही तो पहनाता है
सारे गिले शिकवे भूल कर
नम आँखों से मुस्कुराता है
आँसू बनाने के लिये
कोई भी ग्लीसरीन
तक नहीं लगाता है
शब्दों का चयन देखने
लग जाये अगर कोई
अपने को अर्थ ढूढने में
असमर्थ पाता है
भावार्थ ढूँढने के लिये
घर वापस लौट कर
शब्दकोष ढूँढने
लग जाता है
इससे सिद्ध ये जरूर
लेकिन हो जाता है
कि अवकाश ग्रहण
करना माहौल को
ऊर्जावान जरूर ही
बना ले जाता है
फिर ये समझ में
नहीँ आ पाता है
कि विभागों में
शाँति व्यवस्था
कायम करने के लिये
अवकाश लेने देने को
हथियार क्यों नहीं
सरकार द्वारा एक
बना लिया जाता है ।

मंगलवार, 26 जून 2012

सच्ची बात

दिमाग
है जितना
अपने पास में
पूरा लगाता हूँ

चालाकी
अपनी ओर
से पूरी कर
ले जाता हूँ

किस्मत
का मारा
मगर कहीं तो
फँसा फिर भी
लिया जाता हूँ

साहब
करते हैं
कोशिश मुझे
घोड़ा अपना
बनाने की

गधा
तक बन
कर बीच में ही
रुक जाता हूँ

देखलो
उनको भी
चूना लगा
इस तरह मैं
ले जाता हूँ

लदवाना
जहाँ
चाहते हैं
बोरा 
एक
मेरे ऊपर


झोला
ही उनका
बस उठा के
ले जाता हूँ

चमचागिरी
करना भी
चाहूँ कभी

ठीक
मौके पर
आकर के
शरमा
ही जाता हूँ

चालाकी
का नमूना
फिर भी
देखिये जनाब

शहर
के हर
कोने में
उनके चमचे
के नाम
से फिर भी
जाना जाता हूँ

अपनी
गली में
पहुँचा नहीं जैसे
शेर
एक बब्बर
सा हो जाता हूँ

प्लास्टिक
के नाखून
पहन कर के
सारे मोहल्ले
की बिल्लियों
को डराता हूँ

सही
जगह पर
माना कि कुछ
कह नहीं पाता हूँ

यहाँ
पहुँच कर
सच्ची बात मगर
दोस्तों को अपने
जरूर बताता हूँ

बताइये
क्या थोड़ा
सा भी
कहीं किसी से
शरमाता हूँ।