उलूक टाइम्स

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

बोसोनीश्वर

भगवान के
सुना है
करीब पहुँच
गया है
धरती का
इंसान

उसके एक
सूक्ष्म कण
की खोज
ने बना दिया
यह काम
बहुत आसान

इन कणों के
कारण ही
पदार्थ के
कणों में
वजन आ
जाता है

प्रकृति को
समझने
के लिये
इस तरह
एक नया
रास्ता
सामने नजर
आता है

कण कण में
हैं भगवान
घर में
अपने
बच्चों को
हर इंसान
बताता है

मैं ही ब्रह्म हूँ
का अर्थ
यहीं पर ही
थोड़ा सा
समझ हमारे
भी आ पाता है

हिग्स बोसोन
की खोज में
जब भारत
के वैज्ञानिक
श्री सतेन्द्र नाथ बोस
का नाम भी
जुड़ जाता है

हर भारतीय
के लिये
बहुत गर्व का
एक विषय
यह जरुर
हो जाता है

सोचिये
कोशिश करिये
महसूस इस
कण को
अपने में
कर ले जाइये

अल्लाह ईश्वर
गौड के
एक होने
का सबूत
इस को
मान जाइये

विश्व शाँति
और अमन
के लिये
इस से अच्छा
और कोई
रास्ता क्या
कहीं नजर
आता है

कहीं तो
ईश्वर की
सत्ता
सच में
है मौजूद
एक सूक्ष्म
सा कण
क्या छोटे
से में हमें
ये नहीं
समझा
पाता है।

बुधवार, 4 जुलाई 2012

आदमखोर

ऎसा कहा जाता है
जब शेर के मुँह में
आदमी का खून
लग जाता है
उसके बाद वो
किसी जानवर को
नहीं खाता है
आदमी का शिकार
करने के लिये
शहर की ओर
चला आता है
आदमखोर हो गया है
बताया जाता है
जानवर खाता है
तब भी शेर
कहलाता है
आदमी खाने
के बाद भी
शेर ही रह जाता है
इस बात से
इतना तो पता
चल जाता है
कि आदमी बहुत
शातिर होता है
उसका आदमीपन
उसके खून में
नहीं बहता है
बहता होता तो
शेर से पता
चल ही जाता
आदमी को
खाने के बाद
शेर शर्तिया कुछ
और हो जाता
और आदमी
वाकई में एक
गजब की चीज
ना नाखून लगाता है
ना चीरा लगाता है
खाता पीता भी नजर
कहीं से नहीं आता है
सामने खड़े हुऎ को
बहुत देर में अंदाज
ये आ पाता है
कोई उसका खून
चूस ले जाता है
कोई निशान कोई
सबूत किसी को कहीं
नहीं मिल पाता है
उधर आदमखोर शेर
शिकारियों के द्वारा
जंगल के अंदर
उसके ही घर में
गिरा दिया जाता है।

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

कपडे़ का जूता

आज
एक छोटी
सी कहानी है

जो मैने
बस थोडे़
से में ही
यहां पर
सुनानी है

ये भी
ना समझ
लिया जाये
कि कोई
सुनामी है

जैसे
सबकी
कहानी होती है

किसी की
नयी तो
किसी की
बस
थोड़ी सी
पुरानी होती है

इसमें
एक मेरा
राजा है
और
दूसरी उसकी
अपनी रानी है

राजा मेरा
आज बहुत
अच्छे मूड
में नजर
आ रहा था

अपनी रानी
के लिये
तपती धूप में
एक मोची
के धौरे बैठा
कपड़े के जूते
सिलवा रहा था

मोची
पसीना
टपका रहा था

साथ में
कपड़े पर
सूईं से
टाँके भी 
लगाता
जा रहा था

राजा
आसमान के
कौओं को
देख कर
सीटी बजा
रहा था

मोची
कभी जूते
को देख
रहा था

कभी
राजा को
देख कर
चकरा रहा था

लीजिये
राजा जी

ये लीजिये
तैयार हो गया
ले जाइये

पर
चमड़ा छोड़
कपड़े पर
क्यों आ गये
बस ये बता
कर हमें जाइये

इतनी ही
विनती है हमारी
जिज्ञासा हमारी
जाते जाते
मिटा भी जाइये

राजा ने
जूता उठाया
मोची के हाथ
में उसके
दाम को टिकाया

अपना दायें
गाल को
छूने के लिये
मोची
की ओर
गाल को बढ़ाया

मोची भी
अब जोर से
खिलखिलाया

अरे
पहले अगर
बता भी देते तो
आपका क्या जाता

कपड़ा
जरा तमीज से
मैं भी काट ले जाता

एक कपड़े
का जूता
अपनी लुगाई
के लिये
भी शाम
को ले जाता

आपकी
तरह मेरा
गाल भी
बजने बजाने
के काम
से पीछा
छुड़ा ले जाता
राजा तेरा
क्या जाता।

सोमवार, 2 जुलाई 2012

पहचान कौन

कभी समझ
में आता था
किस समय
आनी चाहिये

लेकिन अब
लगने लगा है
उस समय
समझ में नहीं
आ पाया था

किसी ने ठीक से
क्योंकि नहीं
कुछ बताया था

एक समय था
जब सामने से
लड़की को आता
देख कर ही
आ जाती थी

लड़की को
भी आती थी
उसका यूँ
ही सकुचाना
ये बता
कर जाती थी

घर से लेकर
स्कूल तक
स्कूल से
कालेज तक
कालेज से
नौकरी तक

नौकरी से
शादी तक
शादी से
बच्चों तक
टीचर से
होकर मास्टर
प्रोफेसर
और साहब
बीबी के
ऊपर से
निकलकर
बच्चों तक

कहीं ना
कहीं दिख
जाती थी
तेरे आने
ना आने पर
बहुत जगह
हमने डाँठ
खायी थी

बहुत जगह
डाँठ हमने
भी खिलाई थी

अरे तेरे को
क्यों नहीं
बिल्कुल भी
आती है

समय समय
पर ये बात
बहुत जगह
पर समझाई थी

अब जमाना
तो कुछ और
सीन दिखा
रहा है

हर कोई
कुछ भी
कैसे भी
कहीं भी
कर ले
जा रहा है

प्रधानमंत्री
हो या
उसका संत्री
पक्ष हो
या विपक्ष

अन्ना के
साथ हो
या गन्ने के
खेत में हो

अपने घर
में भी किसी
को आते हुए
अब नजर
नहीं आती है

बाहर तो
और भी
अजीब अजीब
से दृश्य
दिखलाती है

बच्चे हों या
उम्रदराज
दफ्तर का
चपरासी हो
या सबसे
बड़ा साहब

अब तेरे
को कोई
नहीं लाना
चाहता है

तेरे को
पहचानते
तक नहीं है
ये भी बताना
नहीं कोई
चाहता है

तेरा जमाना
अब लौट
के कभी
नहीं आ
पायेगा

शरम बहन

तेरे को
हर कोई बस
शब्दकोष का
एक शब्द
भर बनायेगा

कुछ सालों में
तेरी कब्र भी
बना ले जायेगा

फूल चढ़ाने
भी उसमे
शायद ही
कोई कभी
नजर आयेगा।

रविवार, 1 जुलाई 2012

योगी लोग

घर हमारा
आपको
बहुत ही
स्वच्छ
मिलेगा

कूड़ा
तरतीब
से संभाल
कर के

नीचे
वाले पड़ोसी
की गली में

पौलीथिन में
पैक किया
हुआ मिलेगा

पानी हमारे
घर का
स्वतंत्र रूप
से खिलेगा

वो गंगा
नहीं है कि
सरकार
के इशारों
पर उसका
आना जाना
यहां भी चलेगा

जहाँ उसका
मन चाहेगा
बहता ही
चला जायेगा

किसी की
हिम्मत नहीं है
कि उसपर
कोई बाँध बना
के बिजली
बना ले जायेगा

नालियों में
कभी नहीं बहेगा
जहां भी मन
आये अपनी
उपस्थिति
दर्ज करायेगा

हम ऎसे वैसे
लोग नहीं हैं
अल्मोड़ा शहर
के वासी हैं
गांंधी नेहरू
विवेकानन्द
जैसे महापुरुषों
ने भी कभी
इस जगह की
धूल फाँकी है

इतिहास में
बुद्धिजीवियों
के वारिसों
के नाम से
अभी भी
इस जगह को
जाना जाता है

पानी भी
पी ले
कोई मेरे
शहर का
तो बुद्धिजीवी
की सूची में
अपना नाम
दर्ज कराता है

योगा करना
जिम जाना
आर्ट आफ
लिविंग के
कैम्प लगाना
रामदेव और
अन्ना के
नाम पर
कुर्बान होते
चले जाना

क्या क्या
नहीं आता
है यहां के
लोगों को
सीखना
और
सिखाना

सुमित्रानन्दन पंत
के हिमालय
देख देख
कर भावुक
हो जाते हैं

यहाँ की
आबो हवा
से ही लोग
पैदा होते
ही योगी
हो जाते है

छोटी छोटी
चीजें फिर
किसी को
प्रभावित नहीं
करती यहाँ

कैक्टस के
जैसे होकर
पानी लोग
फिर कहाँ
चाहते हैं

अब आप को
नालियों और
कूड़े की पड़ी
है जनाब

तभी कहा
जाता है
ज्यादा पढ़ने
लिखने वाले
लोग बहुत
खुराफाती
हो जाते हैं

अमन चैन
की बात
कभी भी
नहीं करते

फालतू बातों
को लोगो को
सुना सुना
सबका दिमाग
खराब यूँ ही
हमेंशा करने
यहाँ भी
चले आते हैं।