उलूक टाइम्स

शनिवार, 22 जून 2013

कुछ नहीं कुछ बहुत कुछ


कुछ लोग 
बहुत थोडे़ शब्दों में 
बहुत कुछ 
कह ले जाते हैं 

उनके शब्द 
उनकी तरह सुन्दर होते हैं 

उनके बारे में 
कुछ
कहाँ 
बता जाते हैं ?

शब्द
मेरे 
पास भी नहीं होते हैं 
ना ही
मेरी 
सोच में ही आ पाते हैं 

किसे बताउँ 
क्या बताउँ 
कैसे कैसे लोग 
क्या क्या कर ले जाते हैं 

कुछ लोग
बस 
खाली बैठे बैठे 
शर्माते हैं 

सीख क्यों नहीं 
लेते
कुछ शब्द 
ऎसे
जो सब 
लोग कह ले जाते हैं 
सब लोग समझ जाते हैं 

सबके आस पास 
सब कुछ हो रहा होता है 
हर कोई किसीचीज पर
कुछ 
ना कुछ कह रहा होता है 

कुछ लोग
वो 
सब कुछ
क्यों 
नहीं देख ले जाते हैं 

जिस पर 
लिखने से 
लोग शोहरत पा ले जाते हैं 

समान समान में 
विलय हो जाता है 
सिद्धान्त पढ़ते पढ़ाते भी कुछ लोग
नहीं 
समझ पाते हैं 

कुछ लोग ही तो 
होते हैं
जो कुछ 
लोगों का कहे को ही
कहा है 
कहे जाते हैं 

लोग लोग होते हैं 
इधर होते हैं या उधर हो जाते है 
कुछ लोग ही जानते हैं
जाने वाले 
किधर किधर जाते हैं 

बहुत से शब्द 
बहुत से लोगों के पास हो जाने से 
कुछ भी नहीं कहीं होता है 

कुछ लोगों के 
कुछ शब्द ही 
कुछ कहा गया है की श्रेणी में आ पाते हैं 

मेरे तेरे और 
उसके जैसे लोग तो
आते हैं और 
चले जाते हैं 

कुछ लोगों के 
लिये ही होती हैं 
वही कुछ चीजें 
उन का लुफ्त कुछ लोग ही उठा पाते हैं 

कहीं से शुरु कर 
कहीं पर खतम कर के देख ले 

आज कल हो 
या परसों 
कुछ लोग ही दुनियाँ को चलाते हैं 

बहुत से लोग 
मर भी जायें 
कुछ लोगों के लिये
से
कुछ 
नहीं होता है 

शहीद
कुछ 
लोगों में से ही गिने जाते हैं 

कुछ बातें 
कुछ लोगों की 
कुछ लोग ही समझ पाते हैं । 

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

शुक्रवार, 21 जून 2013

मदद कर मदद के लिये मत चिल्ला



अरे !
तू तो
मत चिल्ला
हमेशा ही तो
है यहाँ रहता
तू थोडे़ ना
है कहीं फंसा
अपनी गिनती
आपदाग्रस्तों में
मत करवा
मान भी जा
सड़कें बह गयी
सब पानी में
तो क्या हुआ
कहीं को मत जा
सैलानियों की
मदद कर
आधे बड़ आ
राष्टृ की धारा में
हमेशा ही है
जब तू बहा
छोटी बात
इस समय
तो मत उठा
पहाडी़ पहाडो़
का दर्द समझ
बस पहाडी़
राज्य एक बना
देश के नाम
पर करता रहा है
हमेशा जब तू
जान कुर्बान
आज भी मौका
जब मिला है
शहीद हो जा
वैसे भी करना है
एक दिन यहाँ
से पलायन तुझे
घर बह गया तेरा
अच्छा हुआ
खंडहर की
फोटो बनने
से तो रह गया
कल वो सड़क
फिर बनायेगा
कुछ अपना लेगा
कुछ ऊपर
दे आयेगा
तू फिर से
मंदिर को सजा
धार्मिक पर्यटन की
सोच को बढा़
हिमालय के रंग
अभी भी बदलेंगे
सूरज के साथ
हमेशा की तरह
कुछ नये पोस्टर
और छपवा
देश पर आयी
है आफत जब
कभी पहले भी
तूने कभी
कदम पीछे
कहाँ है खीँचा
एक बार फिर
कदमताल करने
का मन बना
वक्तव्य छप
रहे हैं चुनिंदा
यहाँ छपे
हैं जो आज
कल के
अखबार में
तू भी
कोशिश कर
एक दो
कमेंट दे जा
फेसबुकिया
ट्विटिया
कुछ भी कर ले
बस हल्ला
मत मचा ।

बुधवार, 19 जून 2013

बड़ी आपदा लम्बी कहानी होना नहीं कुछ है फिर भी सुनानी


ऊपर वाला मुझे मेरे कर्मो का
बस एक आईना दिखा रहा है

किसी को पश्चिमी विक्षोभ
किसी को मानसून का बिगड़ा रुप
इस सब टूट फूट में नजर आ रहा है

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को मीडिया
उजड़ गया जैसा दिखा रहा है

देवभूमि का देवता अपनी करतूतों को
अब क्यों नहीं झेल पा रहा है

इतना पानी अपने जीवन में मैने नहीं देखा
सुंदर लाल बहुगुणा का एक वक्तव्य अखबार में आ रहा है

इतिहास में ऎसा नहीं हुआ हो सकता है
भूगोल किसने बिगाड़ा
इस बात पर कोई भी प्रकाश नहीं डाल पा रहा है

ये कौन देख रहा है
भक्त जाया करते थे जहाँ किसी जमाने में
पूजा के थाल लेकर

टूरिस्ट होटल बुक करा रहा है
नान वेज आसानी से मिलता है आस पास
पता है उसे
बोतल भी साथ में ले जा रहा है

शातिराना अंदाज में इधर उधर जो किया जा रहा है
उसे कोई कहाँ देख पा रहा है

नियम कागज में लिखा जा रहा है
काम घर में किया ही जा रहा है
पैसा बैंक में नहीं रखता है कोई
एक के घर के बोरे से दूसरे के घर के थैले में जा रहा है

स्कूल में बच्चा पर्यावरण पर चित्र बना रहा है

क्या क्या लिखूँ समझ में नहीं आ पा रहा है

सोलह मुट्ठी जमीन को घेरे जा रहा है
एक मुट्ठी की खरीद कागज बता रहा है

देवदार का पेड़ है
सौ साल से खड़ा बहुत ही बड़ा
कागज में नजर नहीं कहीं आ रहा है

मकान चारों तरफ उसके बना जा रहा है
ढकते ही दिखना बंद हुआ जैसे ही
उसकी जड़ में कीलें घुसा कर सुखाया जा रहा है

कुछ ही दिनों में खिड़की दरवाजों के रुप में
मकान में लगा हुआ भी नजर आ रहा है

वन विभाग का अफसर रोज
अपनी सरकारी गाड़ी लेकर उसी रास्ते से जा रहा है
काला चश्मा पहनता है कुछ भी नहीं देख पा रहा है

मकान एक करोड़ का बनाया जा रहा है
पानी प्लास्टिक के नलों से सड़कों तक पहुँचाया जा रहा है
सरकार की आँख कान में शास्त्रीय संगीत बजाया जा रहा है

मुख्यमंत्री आपदा से आहत हुआ नजर तो आ रहा है
हैलीकाप्टर से चक्कर पर चक्कर लगा रहा है
केन्द्र से मिलने वाली एक हजार करोड़ की
आपदा सहायता के हिसाब लगाने में
सब कुछ भूल सा जा रहा है ।

चित्र साभार: http://throughpicture.blogspot.com/

शुक्रवार, 14 जून 2013

दिशा है अगर तो है दिशाहीन

दिशा लेकर
चलता है
बस वो

एक ही
अकेला होता है

दिशाहीनो का
तो एक
मसीहा होता है

मेरे घर में
होता है और
ऎसा होता है

कहने को
हर कोई
बहुत कुछ
कहता है


जो करना ही
नहीं होता है
वही तो
वो कहता है

मेरी बात पर
तू कभी
कुछ नहीं
कहता है

तेरे घर में क्या
ये नहीं होता है

मेरे घर के
मुखिया को
सब पता होता है

जब भी
कुछ होता है
तो वो कहीं भी
नहीं होता है

देश में पल पल
जो हो रहा होता है

वही सब मेरे घर में
घट रहा होता है

कोई गांधी और
कोई गोडसे
की दुहाई दे
रहा होता है

कोई पटेल
के नाम का
लोहा ले
रहा होता है

जो जो कह
रहा होता है
वो कहीं नहीं
हो रहा होता है

मेरे घर में रोज
ऎसा ही हो
रहा होता है

तेरे घर में
बता भी दिया
कर कभी

क्या कुछ स्पेशल
हो रहा होता है

मैं रोज अपने घर
की बात करता हूँ

फिर भी तू
कुछ कहाँ कह
रहा होता है

मेरे देश में
कैसे मान लूं
कुछ अलग
हो रहा होता है

जब मेरे ही
घर में रोज
ऎसा ही हो
रहा होता है ।

गुरुवार, 13 जून 2013

सब कुछ कहाँ कहा फिर भी साढे़ तीन का सैकड़ा हो गया

(तीन सौ पचासवीं
पोस्ट 
जो हमेशा की तरह
एक सत्य घटना
पर आधारित है )


स्वीकृत
धन का

एक हिस्सा

कुछ
अलग तरह
से
जिसको खर्च

किया जाता है

कंटिंजेन्सी

कहलाता है

गूगल ट्रांस्लेट

हिन्दी में जिसे
आकस्मिकता
होना बतलाता है

 बहुत ज्यादा

पढ़ लिख लिया
पढ़ाना लिखाना
भी सीख लिया

हाय
किया तो

तूने क्या किया

जब तू
ये पूछने

के लिये जाता है

आक्स्मिक
व्यय
को
कैसे और

किसमें
खर्च
किया
जाता है


आकस्मिक
व्यय
करने
के लिये


कुछ ऎडवांस

लिया जाता है

जिसका

मन में

आ गया तो

कभी बाद में

समायोजन
दे
दिया जाता है

अब
कौन
तुझसे

पूछने
के लिये

आता है

कि तू

उस पैसे से
चाय जलेबी क्यों
खा ले जाता है

कर लिया कर

जो भी तेरे
मन में आता है

रसीद लेने

के लिये तो
स्टेशनरी
की दुकान 
में ही तो
जाता है


मत
सोचा कर
कि

किसी से
पूछने में

तेरा
क्या जाता है


अपने अपने
खर्च
करने
के ढंग को

कोई खुल के
कहाँ बताता है

तेरे से
अगर
इतना 
छोटा सा
समायोजन

ही नहीं हो पाता है

तो काहे
तू इस प्रकार

की जिम्मेदारी

अपने 
कंधों
पर उठाता है


छि :

अफसोस
हो 
रहा है
मुझे तेरी

काबीलियत पर

एक
कंटिजेन्सी
को
तक तू
जब ठिकाने

नहीं लगा पाता है ।