उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

यशोदा मैया है मेरी हिंंदी


मैया यशोदा
इंटेलिजेंट है
उसे मालूम
है ये बात
कि कन्हैया
गॉड का ही
एक ऐजेंट है
उस को
सब पता है
कैसे कन्हैया
को हैंडल
करना है
कहती कुछ
नहीं है बस
एक इशारा भर
कर जाती है
नॉटी बॉय को
रास्ते पर
ले आती है
कन्हैया एक
नहीं हजार
होते हैं
मैया यशोदा
के लिये
कोई प्रॉब्लम
नहीं होते हैं
जन्म नहीं
भी उसकी
कोख से
लेते हैं
तब भी
इतना उस
पर डिपेंडेंट
होते हैं
जैसे एक
बॉस और
एक सरवेंट
होते हैं
हिंदी दिवस
पर ये बात
समझ में
बहुत अच्छी
तरह आ
जाती है
किस तरह
हिंदी हमारी
मैया यशोदा
हो जाती है
दुनियाँ की
सारी भाषाओं
के शब्दों को
आत्मसात
कर ले
जाती है
कोई भी
भाषा इतनी
मैया यशोदा
कहां हो
पाती है
जितना मेरी
हिंदी अपने
को बना
ले जाती है
किसी को
नहीं बता
सकता ये
बात मैं भी
मुझसे भी तो
मैया यशोदा
इसी तरह से
कविता एक
लिखवाती हैं
और
हिंदी दिवस
मनाती हैं ।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

प्रकृति विकेंद्रीकरण सीख



हे प्रकृति

छोटी धाराओं को 
तू कब तक
यूं ही 
मिलाते ही चली जायेगी

लम्बी थकाने वाली
दूरी 
चला चला कर
समुद्र में 
डाल कर के आयेगी

कुछ सबक
आदमी से भी 
कभी
सीखने के लिये 
अगर आ जायेगी

तेरी
बहुत सी परेशानियां 
चुटकी में दूर हो जायेंगी

आदमी
कभी बड़ी चीज 
को
बड़ा बनाने के लिये 
नहीं कहीं जाता
अपने लिये
खुद ही किसी 
आफत को नहीं बुलाता

तेरी जगह
अगर 
इसी काम का ठेका वो पा जाता
तो 
धाराओं को थोड़ी देर को रुकने के लिये 
बोल कर आता

इसी बीच
समुद्र को भी 
जाकर कुछ समझा आता
उसके
बड़े होते जाने के 
नुकसान
उसको 
सारे के सारे गिनाता

ये भी साथ में बताता
बड़ी चीज को संभालना 
बहुत ही मुश्किल
आगे 
जा कर कभी है हो जाता

समुद्र को
छोटे छोटे कुओं में 
इस तरह से बंटवाता

हर कुंऐ में 
एक मेंढक को
बुला कर के बैठाता

जब समुद्र 
समुद्र ही नहीं रह जाता

तब लौट कर 
धाराओं के सामने आकर
थोड़े से
आंसू कुछ बहाता

फिर किसी दिन 
साथ ले चलने का एक वादा 
बस कर के आता
टी ए डी ए का एक और मौका 
बनाता

और
आपदा आने पर भी 

तेरी तरह
आदमी की 
गाली नहीं खाता
वहां पर भी
कुछ 
पैसे बना ले जाता

हे प्रकृति

तेरी 
समझ में
ये 
क्यों नहीं आ पाता

धाराओं को मिलाने 
से
तुझे क्या 
है मिल जाता ।

चित्र साभार: www.uniworldnews.org

बुधवार, 11 सितंबर 2013

उसका जरूर पढ़ना पर लिखना खुद अपना

ये नया
आईडिया
तेरे दिमाग में
किसने आज
घुसा दिया

वैसे भी तू
कुछ बुरा
तो नहीं
दिखता है
कुछ अजीब
सा क्यों आज
तुझको बना दिया

किसी ने
कहा तुझसे
मोर पंख
अगर कहीं
पर एक
चिपकायेगा
तो कौऎ
से मोर तू
जरूर
हो जायेगा

कोई कुछ भी
लिख रहा हो
उससे क्या
हो जायेगा

तू बहुत अच्छी
बकबास
कर लेता है
उसकी तरह
लिखने को
अगर जायेगा

कैसे सोच
लिया तूने
कवि सम्मेलन
के निमंत्रण
पाना शुरु
हो जायेगा

बच
अगर अभी भी
बच सकता है

लिख वही
जो तू खुद
लिख सकता है

छंद अलंकार
व्याकरण को
बीच में लायेगा
जो है वो भी
नहीं रहेगा
जो बनेगा
उसको कोई
सरकस वाला
जरूर उठा
के ले जायेगा

ये लेखन
की दुनिया
बहुत बड़ी
भूलभुलईया है

इसमें ज्यादा
दिमाग अगर
लगायेगा

कहाँ घुस के
कहाँ
निकल आया
कोई पता भी
नहीं कर पायेगा

अभी जाना
जाता है
पहचाना
 जाता है
कुछ आदमी
जैसा है
आदमियों
के बीच में
ये भी
माना जाता है

जैसा है
वैसा ही रहेगा
कुछ पायेगा
नहीं भी तो भी
ज्यादा कुछ
नहीं गवांऎगा

बंदर गुलाटियाँ
मारता हुआ ही
अच्छा लगता है

खुद सोच
कैसा दिखेगा
अगर कहीं वो
दो टांगो पर
चलता हुआ
देखा जायेगा

तू क्या
समझता है
जो जैसा
लिखता है
वो वैसा ही
दिखता है
बहुत से हैं
मेरी तरह
के बेईमान
यहाँ पर
जिनका ब्लाग
ईमानदार
ब्लाग के
नाम से
चलता है

 देखा देखी
और
भीड़ तंत्र के
जादू से निकल
कोशिश कर
और
अपनी टांगों
में ही चल
ऎसा ना हो
कहीं सब कुछ
तेरे हाथ
से जाये
कहीं निकल
अपनी टाँग
भी करे
चलने से
इनकार
और
बैसाखी जाये
हाथों से
दूर फिसल

बहुत कुछ है
जो तेरे पास है
और
तेरा अपना है
सामने वाले
के पास
दिख रहा
ताजमहल
खुद उसी
के लिये
एक सपना है

अपनी सुन्दर
झोपड़ी को
सबको दिखा
खूब जम
के इतरा
सब के लिखे
को पढ़ जरूर
किसी ने
नहीं रोका है
अपनी
बक बक को
बक बक
ही रहने दे
कविता को
बस एक
पाजामा
पहनाने से
ही तो
तुझे टोका है ।

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

चार सौ बीसवीं प्रविष्टि उलूक कर रहा है

वो कुछ ना बता
जो मुझको पता है
एक दो शुरु जाने
कब से किया है
होना ही था जो
आज हो गया है
आधा नहीं पूरा
चार सौ बीस
हो गया है
बात चार सौ बीस
होने की ही नहीं है
बात कुछ पाने या
कुछ खोने की नहीं है
कौन कितना चार सौ
बीस हो गया है
ये उसके माथे पर
ही छप गया है
दिखाना किसी को
कहीं कुछ नहीं है
बताना किसी को
कहीं कुछ नहीं है
जितना जिसका
जो हो गया है
पर्दे में लाकर
उसे रख दिया है
पता भी किसी को
कहाँ चल रहा है
एक दिन का जा
कर के जब एक
ही जुड़ रहा है
चार सौ बीस जुड़ा
कर चार सौ
बीस कर रहा है
मुझे जो पता है
वो अपना पता है
तूने किया है जो
तुझको पता है
उसका पता हाँ
उसको पता है
किसका पता पर
किसको पता है
यही बस मुझको
नहीं कुछ पता है
कोई आज कुछ है
कोई कल हो रहा है
अपने समय में
हर कोई हो रहा है
कोई दस हो रहा है
कोई सौ हो रहा है
कोई धीरे धीरे
कोई तेज हो रहा है
होना सभी को
ही हो रहा है
किसी की करनी
कोई भर रहा है
किसके लिये कौन
क्या कर रहा है
क्यों कर करा है
होने को हर रोज
कुछ हो रहा है
इतना लिखा है
लिखते रहा है
खुश हो रहा है
बहुत हो रहा है
एक दो से होकर
कोई गुजर रहा है
कोई चार सौ बीस
पर इधर हो रहा है ।

सोमवार, 9 सितंबर 2013

लड़खड़ाने के लिये पीना जरूरी नहीं है !

तेरा लिखा हुआ
आजकल मुझे
बहका हुआ सा
नजर आता है
तू पता नहीं
क्या करता है
तेरा लिखा हुआ
जरूर कुछ तो
कहीं से पीकर
के आता है
नशे में होना
फिर नशे की
बात पर कुछ
हिलते डुलते
हुऎ लिखना
नहीं पीने वाले
के भी समझ में
आ ही जाता है
लिखा हुआ हो
किसी का और
पढ़ते पढ़ते
पढ़ने वाले को
ही पड़ जाये
हिलना और डुलना
ऎसा तो कहीं भी
नहीं देखा जाता है
बिना पिये भी कोई
शराबी सा कभी
लिख ले जाता है
इसका मतलब
ये नहीं कि उसको
पीना भी आता है
लिखने वाला
लिख रहा है
क्या ये कम नहीं
चारों तरफ उसके
सब कुछ जब
शराबी शराबी
सा हो जाता है
ना बोतल नजर
आती है कहीं
ना कोई गिलास
नजर आता है
शराब भी नहीं
होती है कहीं पर
कुछ माहौल ही
शराबी हो जाता है
होश में रहने वाले
माने जाते हैं
जहाँ के सब लोग
वहाँ के हर आदमी
का हर काम
लड़खड़ाता हुआ
नजर आता है
ऎसे में लिखा
जा रहा है कुछ
लड़खड़ाता हुआ
ही मान लो सही
संभालने के लिये
तू ही थोड़ा सा
आगे क्यों नहीं
खुद आ जाता है ।