उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

एक बहादुर को एक कायर भी कभी सलामी देता है

बेशरमों के
कर्मों को
अपने सिर पर
ले लेता है
एक जाँबाज के
दिल में ही
ऐसा कोई
जज्बा होता है
सोच में ऐसा
करने की सोच
का कीड़ा वैसे
तो बहुत बहुतों
के होता है
पर कर ही
लेने वाला
लाखों करोड़ों में
एक होता है
जगह छूटती
नहीं है कोई खाली
कभी भी ऐसा
नहीं होता है
लपकने के लिये
लाईन में लगा हुआ
तुरत फुरत लपक
ही लेता है
काम कभी
रुकते नहीं किसी के
होने या नहीं होने से
किसी के छोड़ के
जाने का गम भी
किसी को नहीं होता है
कुछ दिन बहाते हैं
कुछ घड़ियाल आँसू
लगा कर कुछ रसायन
आँखो के नीचे से
किसी ईमानदार अफसर
के चले जाने से
हर कोई खुश
ही होता है
कुछ के समझ में
आता है दर्दे दिल
एक बीमार का
जिसके आस पास
उसी तरह का
एक बाजार होता है
लुट रहा हो देश
बहुत धीरे धीरे
हल्ला मचा मचा कर
झंडे लहराने वालों का
मजमा खड़ा होता है
हिम्मत नहीं है
किसी की जो
शाबाशी दे सके तुझे
"एडमिरल जोशी"
तेरा जैसा जाँबाज
सदियों में ही
एक होता है
कोई कुछ कहे
या ना कहे से
क्या होता है
तेरी जैसी सोच
रखने वाले को ही
बहुत अफसोस होता है
कुछ नहीं कहना है
“उलूक” को भी
इससे ज्यादा यहाँ
इस देश में
अब जो होता है
वो किसी और के
देश में नहीं होता है ।

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

बहुत कनफ्यूजन होता है शिव जब कोई तीसरी आँख की बात करता है

कितनी कथाऐं
कितनी कहाँनियाँ
शिव सुनी थी
तेरे बारे में
पढ़ाई भी गई थी
कभी किसी जमाने में
कोई तेरे विवाह की
बात कहता है
कोई कहता है
ताँडव रोक दिया था
करना आज के दिन
सब कुछ भस्म
हो गया होता वरना 
तीन तीन आँखे
भी हैं तेरी
दो आधी खुली
तीसरी रहती है
सुना बंद
अब आज के दिन
तू भी व्यस्त
होगा बहुत
यहाँ वहाँ
इधर उधर
मंदिरों में तेरे
बह रहा होगा दूध
कुछ करते ही हैं
रोज ही याद तुझे
अपनी पूजा में
और कोई बस
आज के दिन
याद कर कर के
रहा होगा पूछ
दिख रहे होगें
कमंडल हाथ में लिये
बहुत से ब्रह्मचारी
व्यभिचारी फलाहारी
तिलकधारी तेरे द्वार
वो सभी जिनसे
रोज होती है
मुलाकात मेरी
जिनसे हारता है
मेरा मनोबल
एक ही दिन में
एक ही नहीं
कई कई बार
और मुझे ये
भी पता है
तेरी भी आदत है
तेरे द्वार पर
आने वाले सभी
कीड़े मकौंड़ों को
भी आभास रहता है
बहुत भोला है
बंम भोला शिव
छोटे छोटे सभी
पापों को माफ
करता है और
जो कुछ
नहीं करता है
उसी के
लिये खुलती है
कभी क्रोध में तेरी
तीसरी आँख हमेशा
ऐसा एक नहीं
सालों साल में
एक नहीं कई बार
हुआ करता है
पापी भोगते हैं
पापों को
इसीलिये रहते हैं
ऊँचाईयों में हमेशा
उनके ही जहन में
हलाहल की तरह
तू ही वास करता है
तेरी तू ही
जानता है शिव
तुझे ही
पता भी होगा
कलियुग का
कलियुगी प्राणी ही
तेरी एक नहीं
तीन तीन आँखों में
झाँक लेने का
कैसे साहस करता है ।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

समझना चाहो तो एक इशारा एक पता होता है

लिख देना किसी के 
पढ़ने के लिये ही
नहीं होता है 
पढ़ने वालों को 
अच्छी तरह से 
ये पता होता है 
बहुत भीड़ होती है 
बहुत सी जगहों पर 
सब होता है वहाँ 
अपना ही बस 
पता नहीं होता है 
बगल में होता है 
जब तक कि 
छूना होता है 
छू लेता है
महसूस भी होता है 
हटता है जाकर 
बस दो गज
की दूरी कहीं
मीलों दूर का 
पता उसी जगह पर 
कहीं लिखा होता है 
गहराई लिये बहुत
कुछ दिखाई देता है 
खुद के अंदर ही 
कहीं डूबने का 
इंतजाम होता है 
पता देता है जरूर 
हमेशा एक नया 
हर बार एक नये 
दुश्मन के ठिकाने 
का मगर  देता है 
मयखाने में शराब हो 
इतना जरूरी नहीं 
साकी का गिलास 
खाली भी होता
तो बहुत होता है 
सब कुछ बिकता है 
हर चीज बाजारी है 
कोई पैसे से 
कोई बस बिकने 
के लिये भी कहीं भी 
किसी भी तरह 
से बिकता है 
खरीददार हर कोई है 
इस बाजार में 
कोई दे कर 
खरीद लेता है 
कोई ले कर 
खरीद देता है  
बहुत देख ली
हो दुनियाँ जिसने
उसके लिये कफन
से अजीज कोई
और नहीं होता है 
बहुत सा गोबर 
होता है दिमाग 
में भी ‘उलूक 
भैंस पालना 
इतना जरूरी 
नहीं होता है।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

उलूक एक बस्ती उजाड़ने में बता तेरा क्या रोल होता है

परिपक्व यानी
पका हुआ फल
सुना है मीठा
बहुत होता है
सुनी सुनाई नहीं
परखी हुई बात है
हमेशा तो नहीं
पर कई बार
अपने लिये निर्णयों
पर ही शक बहुत
होने लगता है
मेरा निर्णय
उसका निर्णय
तेरा निर्णय
सब गडमगड
गलत और सही
कहीं किसी किताब
में लिखा ही
नहीं होता है
एक सूखी हुई
नदी के रास्ते के
पत्थरों को वाकई
बहुत घमंड होता है
अपनी मजबूती पर
आपदा के समय
ही पता लगता है
पेंदी और बेपेंदी
की चट्टाने कौन सी
पड़ी रहती है
और कौन सी
चल देती है
पानी के प्रवाह
के साथ बिना
शिकायत के
जीवन हर किसी
के लिये अलग 
पहलू एक होता है
किताबें सिद्धांत
समझने वालों
के लिये होती हैं
पर कोशिश
सब करते हैं
लागू करने की
किसी से हो
ही जाता है और
कोई ऐसी की
तैसी कर लेता है
“उलूक”
तुझे पता है
कितना गोबर
भरा है तेरे भेजे में
फिर भी नहीं
समझ में आता है
तू किस बात के
पंगे ले लेता है
ओलम्पियाड सारी
जिंदगी में दिखेंगे
तुझे हरे लाल
और पीले काले
क्यों फजीहत
करवाता है अपनी
हर बार फेल होता है
मकड़ी सात बार
में चढ़ गई थी
दीवार कभी एक
कहानी रही है
बहुत पुरानी
लोगों के लिये
पता कहाँ
चल पाता है
क्या रोजमर्रा
का जैसा काम
और क्या
कभी कभी का
एक खेल होता है ।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

आदत खराब है कह दिया मत कह देना बस समझ लेना

गरीबों पर किया
जायेगा फोकस
एक दैनिक
समाचार पत्र के
मुख्य पृष्ठ पर
छपा आज का
मुख्य समाचार
और साथ में
फोकस करने
कराने वाले
जनता के सेवक
की तस्वीर से
जब हुआ सामना
एक एक करके
घूमने लगे
जनता के सेवक
अपने घर के
मौहल्ले के शहर के
राज्य और देश के
लिये हाथ में
एक एक मोटा लेंस
जिसके एक तरफ
प्रचंड सूरज और
दूसरी तरफ गरीब
फोकस होता हुआ
और उसके बाद
बनता हुआ
धीरे धीरे
कुछ धुआँ
कुछ कुछ धुँधलाते
धुँधलाते कुछ
जब साफ हुआ
कुछ भी नहीं दिखा
समझ में आने लगा
काम हुआ और
साथ ही साथ
तमाम भी हुआ
एक पंथ दो काज
का उदाहरण देना
बहुत आसान हुआ
ना गरीबी रही
ना गरीब रहा
वाकई जनता के
सेवकों की दूरदृष्टि
ने कुछ मन मोहा
दाल चावल सब्जी
मिलने के बाद
भी जिसने उसे
बिल्कुल नहीं छुआ
रख दिया सम्भाल
कर भविष्य के लिये
बस कुछ तड़का ही
अपने काम के
लिये रख लिया
गरीब की गरीबी
पर फोकस करने
का एक आसान
सा रास्ता ही चुना
हींग लगी ना
फिटकरी और
रंग भी चोखा
सामने सामने बना
गरीब पर फोकस
या फोकस पर गरीब
सिक्का ना इधर गिरा
ना उधर ही गिरा
जनता ने ही
जनता के लिये
जनता के द्वारा
सिक्का खड़ा करने
का संकल्प लेने
का रास्ता फिर से
एक बार चुना
कोई भी चुन
कर आये
दिखा साफ साफ
गरीब पर ही
लगना है इस
बार भी चूना
ठीक नहीं हैं
आसार और
गरीब के फिर से
फोकस पर होना ।