उलूक टाइम्स

शनिवार, 31 मई 2014

साथ होना अलग और कुछ होना अलग होता है

उसके
और मेरे बीच
कुछ नहीं था

ना उसने
कभी कहा था
ना मैंने कभी
कोशिश की थी
कुछ कहने की

अब 
आपस में
बात करने का
मतलब

कुछ
कहना होता है
ऐसा जरूरी भी
नहीं होता है

बहुत साल
आस पास
रह लेने से भी
कुछ नहीं होता है

साथ साथ
बड़ा होना
खेलना कूदना
घर आना जाना
कहीं घूमने
साथ चले जाना

एक रास्ते से
बहुत सालों तक
एक सी जगहों
को टटोलना

बहुत से लोग
करते हैं

रास्ते अलग
हो जाते हैं

लोग अलग
अलग दिशाओं
को चले जाते हैं

यादों
का क्या है
उनका काम भी
आना और जाना
ही होता है

वो भी आती
जाती रहती हैंं

कभी
किसी की
आ जाती है

कभी
किसी की
आ जाती है

कुछ देर के
लिये ही सही

बहुत से
लोगों के बीच
बहुत कुछ
होने से भी
क्या होता है

उससे भी
क्या होता है

अगर कोई
कभी

उसके
मेरे बीच
कभी भी
कुछ नहीं था

कह ही देता है।

शुक्रवार, 30 मई 2014

चेहरे का चेहरा



एक खुश चेहरे को देख कर
एक चेहरे का बुझ जाना

एक बुझे चेहरे का
एक बुझे चेहरे पर खुशी ले आना

एक चेहरे का बदल लेना चेहरा
चेहरे के साथ
बता देता है चेहरा मौन नहीं होता है

चेहरा भी कर लेता है बात

चेहरे दर चेहरे 
चेहरों से गुजरते हुऐ चेहरे
माहिर हो जाते हैं समय के साथ
कोशिश कोई चेहरा नहीं करता है
जरूरत भी नहीं होती है

चेहरा कोई नहीं पढ़ता है
कोई किताब जो क्या होती है

चेहरे काले भी होते हैं चेहरे सफेद भी होते हैं
बहुत बहुत लम्बे समय तक साथ साथ भी रहते हैं

चेहरे कब चेहरे बदल लेते हैं
चेहरे चेहरे से बस यही तो कभी नहीं कहते हैं
चेहरे चेहरों के कभी नहीं होते हैं ।

चित्र साभार: https://pngtree.com/

गुरुवार, 29 मई 2014

कितने तरह के लोग कितनी तरह की यादें कब लौट आयें कोई कैसे बता दे

कई बार
सामने से 
होती थी
रोज ही 
मुलाकात होती थी

मिलती थी रास्ते में 
कुत्ते का पिल्ला लिये हुऐ अपने हाथों में
 देख कर किसी को भी मुस्कुरा देती थी

कहते थे लोग
बच्चे पैदा किया करती थी
कुछ ही दिन रखती थी पास में
फिर किसी दिन 
शहर के पास की नदी में ले जा कर
उल्टा डुबा देती थी

लौट आती थी 
मुस्कुराती थी 
फिर उसी तरह

फिर वही होता था

कुत्ते का 
पिल्ला भी
बहुत दिन तक साथ में नहीं रहता था

एक दिन नदी 
में ही डूब कर मर गई

देखा नहीं था
पर
किसी को 
ऐसा जैसा ही कहते सुना था

सालों गुजर गये 
फिर सब भूल गये

कल अचानक 
रास्ते में
एक लड़की
बिल्कुल उसकी जैसे फोटो प्रतिलिपि
सामने सामने जब पड़ी
यादों की घड़ी जैसे उल्टी चल पड़ी

कुछ यादें
भूली 
नहीं जाती हैं
कहीं किसी कोने में पड़ी रह ही जाती हैं

जिनके साथ साथ

समाज में प्रतिष्ठित 
कुछ लोगों की यादें भी
लौट आती हैं ।

चित्र साभार: 
https://www.123rf.com/

बुधवार, 28 मई 2014

छोटी छोटी चीजें बहुत कुछ सिखाती हैं

आकाँक्षाओं के
महत्व को
समझती हैं

मकड़ियाँ
बहुत
महत्वाकाँक्षी
होती हैं

मकड़ियाँ
मिलकर
कभी भी
जाले नहीं
बनाया
करती हैं

मकड़ियाँ
बहुत प्रकार
और आकार
की होती हैं

अपने अपने
आकार और
प्रकार के
हिसाब से
आपस में
समझौते
करते हुऐ

साथ साथ
अगर चल
भी लेती हैं
हर मकड़ी
अपने जाल को
दूसरी मकड़ी
के साथ साझा
कभी नहीं करती है

एक मक्खी के
फंसने पर
उसे वही
मकड़ी खाती है
जिसके जाल में
फंसी हुई
पायी जाती है

महत्वा
काँक्षाओं
के जहर से
मारी गई
मक्खियाँ
जहरीली
नहीं होती हैं

मकड़ियाँ
मकड़ियों
का शिकार
करते हुऐ
बहुत ही कम
देखी जाती हैं

मकड़ी मकड़ी
के द्वारा
बस उसी समय
कभी कभी मार
दी जाती है
जब एक मकड़ी
दूसरी मकड़ी की
महत्वाकाँक्षाओं की
सीमा में घुसकर
रोढ़ा बन जाती हैं

मक्खियों को
मकड़ी और
जाल कभी भी
समझ में
नहीं आते हैं

उनकी
नियती होती है
जाल में फंसना
और मकड़ी का
भोजन बनना

किस
मकड़ी द्वारा
फंसाई और
मारी जायेगी

किसी
ज्योतिष से
भी नहीं
पूछ पाती है

बेवकूफ होती
है मक्खी
इतना सा भी
नहीं कर पाती है ।

मंगलवार, 27 मई 2014

बस थोड़ी सी मुट्ठी भर स्पेस अपने लिये


बचने के लिये
इधर उधर रोज देख लेना
और कुछ कह देना कुछ पर
आसान है

अचानक सामने टपक पड़े
खुद पर उठे सवाल का
जवाब देना आसान नहीं है

जरूरी भी नहीं है प्रश्न कहीं हो 
उसका उत्तर कहीं ना कहीं होना ही हो

एक नहीं ढेर सारे अनुत्तरित प्रश्न
जिनका सामना नहीं किया जाता है

नहीं झेला जाता है
किनारे को कर दिया जाता है
कूड़ा कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है

कूड़ेदान के ढक्कन को फिर
कौन उठा कर उसमें झाँकना दुबारा चाहता है

जितनी जल्दी हो सके
कहीं किसी खाली जगह में फेंक देना ही
बेहतर विकल्प 
समझा जाता है

सड़ांध से बचने का एकमात्र तरीका
कहाँ फेंका जाये

निर्भर करता है
किस खाली जगह का उपयोग
ऐसे में 
कर लिया जाये

बस यही खाली जगह या स्पेस
ही होता है एक बहुत मुश्किल प्रश्न

खुद के लिये जानबूझ कर अनदेखा किया हुआ

पर हमेशा नहीं होता है
उधड़ ही जाती है जिंदगी रास्ते में कभी यूँ ही
और खड़ा हो जाता है यही प्रश्न बन कर

एक बहुत बड़ी मुश्किल बहुत बड़ी मुसीबत
कहीं कुछ खाली जगह अपने आप के लिये

सोच लेना शुरु किया नहीं कि
दिखना शुरु हो जाती हैं कंटीली झाड़ियाँ

कूढ़े के ढेरों पर लटके हुऐ बेतरतीब
कंकरीट के जंगल जैसे
मकानों की फोटो प्रतिलिपियों से भरी हुई जगहें
हर तरफ चारों ओर
मकानों से झाँकती हुई कई जोड़ी आँखे

नंगा करने पर तुली हुई
जैसे खोज रही हों सब कुछ
कुछ संतुष्टी कुछ तृप्ति पाने के लिये

पता नहीं पर शायद होती होगी
किसी के पास कुछ
उसकी अपनी खाली जगह
उसके ही लिये

बस बिना सवालों के
काँटो की तार बाड़ से घिरी बंधन रहित

जहाँ से बिना किसी बहस के
उठा सके कोई
अपने लिये अपने ही समय को
मुट्टी में
जी भर के देखने के लिये
अपना प्रतिबिम्ब

पर मन को भी नंगा कर
उसके 
आरपार देख कर मजा लेने वाले
लोगों से भरी इस दुनियाँ में
नहीं है 
सँभव होना
ऐसी कोई जगह जहाँ अतिक्रमण ना हो

यहाँ तक
जहाँ अपनी ही खाली जगह को
खुद ही घेर कर हमारी सोच
घुसी रहती है

दूसरों की खाली जगहों के पर्दे
उतार फेंकने के पूर जुगाड़ में
जोर शोर से ।

चित्र सभार: https://nl.pinterest.com/