उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

एक दिन शिक्षक होने का अहसास कुछ सवाल और कुछ जवाब हो जाते हैं

तीन सौ पैंसठ
दिनों में
वैसे देखें तो
गिनती से ज्यादा
दिन भी हो जाते हैं
हर नये दिन
सूरज उगने के साथ
दिन को एक नाम
देने के बहाने
कई मिल जाते हैं
रोज ही आते जाते हैं
जिन रास्तों पर
उन्हीं रास्तों के लोग
किसी दिन कुछ
अलग तरीके से
पेश आते हैं
दो एक बच्चे
मोहल्ले के
सुबह सुबह
शुभकामनाऐं
किसी रोज जब
दे के जाते हैं
याद आता है
एक दिन के
लिये ही सही
और मास्साब की
कमीज के कॉलर
खड़े हो जाते है
शुरु होता है
आकलन खुद का
खुद ही के
अंदर से कहीं
पर्दे गिरना
उसी समय
नाटक के शुरु
होने से पहले
ही शुरु हो जाते हैं
याद आती है
प्रथम गुरु 'माँ'
पहली सोच में
शीश झुकाना और
नमन करने का
खयाल ही बस
सोच में ला पाते हैं
नौ महीने पेट में
रहने के बाद भी उसके
अभिमन्यु की छाया
भी तो हो नहीं पाते हैं
बाद उसके
याद करते हैं
गुरुओं की जगाई
चेतना को
जमाना हो गया
उठे हुऐ कब से
चलते फिरते
देखते हैं लोग
लेकिन जानते हैं
अच्छी तरह
खुली आँखो
की नीँद में
क्या देखा क्या नहीं
बताना दूर की बात है
रात के देखे
सपने की तरह
भूल जाते हैं
शाम होते
डूबते सूरज के साथ
अगले किसी दिन
के आने की बाट
जोहने की
आदत के साथ
हम ‘शिक्षक दिवस’
पर कुछ सुनने
के लिये ‘दूरदर्शन’
के रिमोट का
बटन इस बार
पहली बार
जोर से दबाते हैं ।

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

कम बोला से बड़ बोला तक बम बोला हमेशा बम बम बोलता है

क्या होता है
अगर एक
कुछ भी
कभी भी
नहीं बोलता है

क्या होता है
अगर एक
हमेशा ही
कुछ ना कुछ
बोलता है

सालों गुजर
जातें हैं
खामोशी में
एक के कई

बस सन्नाटा
ही सन्नाटा
होता है
हर तरफ

कोई इधर
डोलता है
और
कोई उधर
डोलता है

बोलने वाला
बोलना शुरु
होता है

ये भी
बोलता है
और
वो भी
बोलता है

कुछ भी नहीं
कह पाने से
कुछ भी
कभी भी
कहीं भी
कह ले जाने
के बीच में

बहुत कुछ
होता है
जो अँधों की
आँखें खोलता है

बहरे
वैसे ही
हमेशा खुश
रहते है

अपने आप में
कोई बोलता है
या
नहीं बोलता है

लूला खुद ही
बोलना चाहता
है हमेशा
कुछ ना कुछ

ऊपर वाला
बेचारों का मुँह
ही नहीं खोलता है

दुनियाँ के दस्तूर
यही हैं ‘उलूक’

तुझे क्या करना
इस सब से जब

ये भी तुझे
‘उलूक’
और
वो भी तुझे
‘उलूक’
बोलता है ।

चित्र साभार : http://www.shutterstock.com/

बुधवार, 3 सितंबर 2014

कतार बनाना सीख जाता तो तेरा भी बेड़ा पार हो जाता


कतार में लगी हो कोई भी चीज
तो सभी को बहुत अच्छी लगती है

और हर जगह के
कुछ लोग बहुत माहिर होते हैं कतार बनवाने में

ऐसे सभी कतार बनाने वाले 
जानते हैं बहुत अच्छी तरह एक दूसरे को 

इन सब कतार बनाने वालों की रिश्तेदारियाँ
कभी जात हो जाती है
कभी इलाका हो जाता है
कभी धर्म हो जाता है
मजे की बात है कभी कभी सकर्म हो जाता है

कतार बनाने वाले पहचानते हैं
कौन सबसे अच्छी कतार बनाता है

कतार बनाने की इच्छा पूरी करने के लिये
एक कतार बनाने वाला
दूसरे कतार बनाने वाले के पास ही जाता है

कतारें देख कर कतार बनाने वाले
कभी सीखते हैं कतार बनाना 
और
अपनी अपनी कतार की कमिंयों को दूर कर ले जाना

लेकिन ये सारे कतारें बनाने वाले
कभी किसी कतार में नहीं होते हैं
सही बात भी है
हलवाई भी कहाँ खाता है अपनी बनाई हुई मिठाई
और
इसमें कहाँ कहा जा सकता है कि है कोई भी बुराई

पता नहीं तुम्हारे जमाने में क्या होता होगा
पर मेरे जमाने में हर दूसरा आदमी
जो अपनी जिंदगी में कभी भी
किसी कतार में शामिल नहीं हो पाता है
कतार बना ही ले जाता है

और जो कतार में चला जाता है 
पूरी जिंदगी कतार से बाहर नहीं आ पाता है

उसके लिये लैफ्ट लैफ्ट रह जाता है
और राईट राईट रह जाता है

‘उलूक’ को अपने चारों ओर दिखाई देते हैं
बस और बस कतार बनाने वाले
और फिर भी बेचारा
ना कतार बनाना सीख पाता है
ना ही किसी कतार में शामिल ही हो पाता है ।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

देखता कुछ और है बताता कुछ और चला जाता है

दिल
की बातें

कहाँ उतर
पाती हैं

इतनी
आसानी से
जबान से

कागज के
पास तक
पहुँच कर
भी फिसल
जाती हैं

दिल में
कुछ और होता है
लिखना
कुछ और होता है
जबान तक
कुछ और आता है
लिखा
कुछ और ही जाता है

बहुत कुछ होता है
आस पास की
हवा को हमेशा
बताने के लिये

पर हवा है कि
उससे रुका ही
कहाँ जाता है

उसे भी
कहाँ है
फुरसत
अपने गम
और खुशी
जमाने को
दिखाने के लिये

उसकी
बातों को भी
कहाँ कौन
सुन पाता है

कुछ आवाज
जैसी जरूर
सुनाई देती है

जिसे हल्के होने 

पर एक सरसराहट
कह दिया जाता है

कुछ तेजी से
चलना चाहती है
कभी तो

तूफान आने का
हल्ला मचा
दिया जाता है

‘उलूक’ भी
जानता है
समझता है

उसके खाने के
दाँतो को भी
कोई नहीं
देख पाता है

सबकी
आदत और
संगत का असर
उस पर भी होता है

बहुत बार वो भी
एक हाथी होने से
अपने को नहीं
बचा पाता है

मान लेना बहुत
मुश्किल होता है

अपना ही कर्म
अपनी ही आँखों में
बहुत आसानी से
बहुत बार धूल
झोंक ले जाता है ।

चित्र साभार : http://www.shutterstock.com/

सोमवार, 1 सितंबर 2014

उनकी खुजली उनकी अपनी खुजली खुद ही खुजलाने की

कोई ऐसी बात भी
नहीं है बताने की
बातों बातों में ही
बात उठ गई कहीं
लिखने लिखाने की
खबर रखते हैं कुछ
लोग सारी दुनियाँ
सारे जमाने की
बात बात पर होती है
आदत किसी की
बिना बात के भी
यूँ ही मुस्कुराने की
लिखते नहीं हैं कभी
बस पूछ लेते हैं
बात कहीं पर भी
लिखने लिखाने की
बीच बाजार में
कर देते हैं गुजारिश
कुछ लिखा कुछ पढ़ा
जोर से सुनाने की
‘उलूक’ मिटाता है
खुजली खुद ही
अपनी हमेशा
कुछ लिख
लिखा के जरा
ऐसी बातें होती
ही कहाँ हैं किसी
को इस तरह
से बताने की।
 
चित्र: साभार http://www.clipartpanda.com/