उलूक टाइम्स

रविवार, 6 सितंबर 2015

मेंढक और योगिक टर्राना जरूरी है बहुत समझ में आना

एक
ठहरा हुआ
पानी होता है
समुद्र का होता है

एक
टेडपोल
सतह पर
अपने आप को
व्हैल समझने लगे
ऐसा भी होता है

समय
बलिहारी होता है

उसके जैसे
बाकी टैडपोल
उसके लिये
कीड़े हो जाते हैं

क्योंकि
वो नापना
शुरु कर देता है
लम्बाई पूँछ की

भूल
जाता है
बनना सारे
टेडपोलों को
एक दिन मैंढक
ही होता है
टर्राने के लिये
टर्र टर्र
पर
टेडपोल मुँह
नहीं लगाता है
किसी भी
टेडपोल को

बहुत
इतराता है
तैरना
भी चाहता है
तो कहीं अलग
किसी कोने में

भूल
जाता है
किसी दिन जब
सारे टैडपोल
मैंढक हो जायेंगे

कौन बड़ा
हो जायेगा
कौन ज्यादा
बड़ी आवाज
से टर्रायेगा

उस समय
किसका
टर्राना
समुद्र के
नमकीन पानी में
बस डूब जायेगा

कौन सुनेगा
बहुत ध्यान से
टर्राना
और
किसका सुनेगा

कैसा
महसूस
होगा उसे

जब पुराने
उसी के किसी
टेड़ी पूँछ वाले
साथी की पूँछ से

दबा हुआ उसे
नजर आयेगा
टर्राने का इनाम

इसी लिये
कहा जाता है
समय के साथ
जरूरी है औकात
बोध कर लेना

समय
कर दे
अगर शुरु
टर्राना 
उस समय
टेढ़ी पूँछ
को मुँह
ना लगाना
गजब
कर जायेगा

गीता पढ़ो
रामायण पढ़ो
राम नाम जपो
राधे कृष्ण करो
कुछ भी काम
में नहीं आयेगा

समय
खोल देता है
आँखे ही नहीं
आत्मा को भी ‘उलूक’

समझ
सकता है
अभी भी
समझ ले
अपने
कम से कम
चार साथियों को

नहीं तो
अर्थी उठाने
वाला भी तेरी कोई
दूर दूर तक नजर
नहीं आयेगा ।

चित्र साभार: www.frog-life-cycle.com

शनिवार, 5 सितंबर 2015

‘उलूक’ व्यस्त है आज बहुत एक सपने के अंदर एक सपना बना रहा है

                                                    

काला चश्मा लगा कर सपने में अपने
आज बहुत ज्यादा इतरा रहा है 
शिक्षक दिवस की छुट्टी है खुली मौज मना रहा है 

कुछ कुछ खुद समझ रहा है 
कुछ कुछ खुद को समझा रहा है 
समझने के लिये अपना गणित 
खुद अपना हिसाब किताब लगा रहा है 

सपने देख रहा है देखिये जरा क्या क्या देख पा रहा है 

सरकारी आदेशों की भाषाओं को तोड़ मरोड़ कर 
सरकार को ही आईना दिखा रहा है 

कुछ शिष्यों की इस दल में भर्ती 
कुछ को उस दल में भरती करा रहा है 
बाकी बचे खुचों को वामपंथी बन जाने का पाठ पढ़ा रहा है 

अपनी कुर्सी गद्दीदार बनवाने की 
सीड़ी नई बना रहा है 
ऊपर चढ़ने के लिये ऊपर देने के लिये 
गैर लेखा परीक्षा राशि ठिकाने लगा रहा है 

रोज इधर से उधर रोज उधर से इधर 
आने जाने के लिये चिट्ठियाँ लिखवा रहा है 
डाक टिकट बचा दिखा पूरी टैक्सी का टी ऐ डी ऐ बनवा रहा है 
सरकारी दुकान के अंदर अपनी प्राईवेट दुकान धड़ल्ले से चला रहा है 
किराया अपने मित्रों के साथ मिल बांट कर खुल्ले आम खा रहा है 

पढ़ने पढा‌ने का मौसम तो आ ही नहीं पा रहा है 
मौसम विभाग की खबर है कुछ ऐसा फैलाया जा रहा है 

कक्षा में जाकर खड़े होना शान के खिलाफ हो जा रहा है 
परीक्षा साल भर करवाने का काम ऊपर का काम हो जा रहा है 

इसी बहाने से 
तू इधर आ मैं उधर आऊँ गिरोह बना रहा है 
कापी जाँचने का कमप्यूटर जैसा होना चाह रहा है 

हजारों हजारों चुटकी में मिनटों में निपटा रहा है 
सूचना देने में कतई भी नहीं घबरा रहा है 

इस पर उसकी उस पर इसकी दे जा रहा है 
आर टी आई अपनी मखौल खुद उड़ा रहा है 

शोध करने करवाने का ईनाम मंगवा रहा है 
यू जी सी के ठेंगे से ठेंगा मिला रहा है 

सातवें वेतन आयोग के आने के दिन गिनता जा रहा है 
पैंसठ की सत्तर हो जाये अवकाश की उम्र 
गणेश जी को पाव लड्डू खिला रहा है 

किसे फुरसत है शिक्षक दिवस मनाने की 
पुराना राधाकृष्णन सोचने वाला घर पर मना रहा है 

‘उलूक’ व्यस्त है सपने में अपने 
उससे आज बाहर ही नहीं आ पा रहा है 

कृष्ण जी की कौन सोचे ऐसे में 
जन्माष्टमी मनाने के लिये 
शहर भर केकबूतरों से कह जा रहा है 

सपने में एक सपना देख देख खुद ही निहाल हुऐ जा रहा है 

'उलूक' उवाच है किसे मतलब है कहने में क्या जा रहा है । 

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

शिक्षक दिवस इस बार राधा के साथ कृष्ण और राधाकृष्णन साथ मनाते होंगे

कम नहीं हैं बहुत हैं
होने वाले कुछ
कृष्ण हो जायेंगे
कुछ बांसुरी भी छेड़ेंगे
कुछ अपनी कुछ
राधाओं के संग
कुछ रास रचायेंगे
कुछ अर्जुन भी होंगे
कुछ दुर्योधनों के
साथ चले जायेंगे
कुछ कहीं गीता
व्यास की बाँचेंगे
कुछ गुरु ध्यान
करना शुरु हो जायेंगे
शिक्षा की कुछ बातें
कुछ की कुछ बातों
में से ही निकल
कर बाहर
कुछ आयेंगी
कुछ शिक्षा
और कुछ
शिक्षकों के
संदर्भ की
नई कहानियाँ
बन जायेंगी
कुछ गीत होंगे
कुछ कविताऐं भी
सुनाई जायेंगी
कुछ शिक्षक होंगे
कुछ फूल होंगे
कुछ शाल होंगे
कुछ मालायें होंगी
कुछ चेहरे होंगे
कुछ मोहरे होंगें
कुछ खबरों में होंगे
कुछ तस्वीरों में होंगे
बनेगा अवश्य ही
कुछ अद्भुत संयोग
कुछ इस बार के
शिक्षक दिवस पर
कुछ ना कुछ तो
बन ही रहा है योग
शिक्षा के पीले वृक्ष
को जड़ उखाड़ कर
कुछ परखा जायेगा
मिट्टी पानी
हवा हटा कर
कंकरीट डाल फिर
मजबूत किया जायेगा
हर बार की तरह नहीं
इस बार कुछ अलग
कुछ नये इरादे होंगे
राधाकृष्णन
की यादें होंगी और
वहीं साथ में राधा के
कृष्ण के साथ किये
कुछ पुराने वादे होंगे
‘उलूक’ पता नहीं
कौन सा दिन मनायेगा
कुछ तो करेगा ही
हेड टेल करने के लिये
एक सिक्का पुराना
ढूँढ कर कहीं से
जरूर ले कर आयेगा।

चित्र साभार:
www.pinterest.com
livechennai.com

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

सकारात्मक और नकारात्मक हवा को देखने के नजरिये से पता चल जाता है


कभी लगता है आता है 
कभी लगता है नहीं आता है 

जब बहुत ज्यादा भ्रम होना शुरु हो जाता है 
सोचा ही जाता है 
पूछ ही लेना चाहिये पूछने में किसी का क्या जाता है 

ऐसा सोच कर
जब जमूरा उस्ताद के धौरे पहुँच जाता है 
तो उस्ताद भी मुस्कुराते हुऐ बताता है 

बहुत आसान सा प्रश्न है जमूरे 

देख अपने ही सामने से
एक खाली जगह को देखते देखते 

सारी जिंदगी एक आदमी
सोच सोच कर 
कुछ बन रहा है कुछ बन रहा है 
देखते सोचते
गुजर भी जाता है 

उसके मरने के बाद
उसका जैसा ही दूसरा
इसी बनने की बात को
आगे बढ़ाता है 

बन रहा है की जगह
पक्का बन रहा है
फैलाना शुरु हो जाता है 

सकारात्मक कहा जाता है 

ऐसे ही
सकारात्मक लोगों में से ही 
सबसे सकारात्मक को 
बन रहा है कहने को
आगे बढ़ाने का
ठेका भी दिया जाता है 

नकारात्मक
खाली खाली 
रोज खाली जगह को देखने
खाली चला आता है 

देखता है सोचता है 
खाली है खाली है कहते कहते
खाली बेकार में आता है
और
खाली चला जाता है 

ऐसे खाली लोगों को 
खाली ही रहने दिया जाता है 

‘उलूक’ 
उसी खाली जमीन को देखते देखते ऊँघता हुआ
पेड़ की किसी डाल पर 
पंजे से अपने कान खुजलाता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

बुधवार, 2 सितंबर 2015

कल का कबाड़ इंटरनेट बंद होने से कल शाम को रीसाईकिल होने से टप गया

अंदाज
नहीं आया
उठा है या
सो गया
कल
सारे दिन
इंटरनेट
जैसे
लिहाफ एक
मोटा सा
ओढ़ कर
उसी के
अंदर ही
कहीं
खो गया

इन तरंगों
में बैठ कर
उधर से
इधर को
वैसे भी
कुछ कम
ही आता है
और जाता है

बहुत
कोशिश
करने पर भी
इधर का कुछ
उधर धक्के दे दे
कर भेजने पर
भी नहीं गया

ये भी
कोई कहने
की बात है

अब
नहीं चला
तो नहीं चला

कई चीजें
खाली चलने
वाली ही नहीं
बल्की फर्राटा
दौड़ दौड़ने
वाली
कब से कहीं
जा कर खड़ी हो गई

उधर
तो कभी
किसी
खुली आँखों
वाले की नजर
भी नहीं गई

चल रही है
दौड़ रही है
की खबरें
बहुत सारी
अखबारों में
तब से और
ज्यादा बड़ी
आनी
शुरु हो गई

चलते
रहने से
कहीं पहुँच
जाने का
जमाना ही
अब नहीं
रह गया
पहुँच गया
पहुँच गया
फैलाना
ही फैलाने
के लिये
खड़े होकर
एक ही
जगह पर
बहुत हो गया

‘उलूक’
रोना
ठीक नहीं
इंटरनेट के
बंद हो जाने पर

कितना
खुश हुआ
होगा जमाना
कल

सोच
सोच कर
चटने
चटाने से
एक ही
दिन सही
बचा तो सही
बहुत कुछ
बहुत बहुत
बच गया ।

चित्र साभार: cliparts.co