उलूक टाइम्स

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

ग्यारहवें महीने में भेड़ों के भीड़तंत्र की ग्यारह सौ ग्यारहवीं ‘नाककथा’

बाध
की कथा
राग बेराग
की कथा
साग
की कथा

बहुत कुछ
सुना सुनाया
लगता है

नाक
की कथा
नाककथा
कोई
नये जमाने
का नाटक
किसी
नौटंकी का
नचाया
लगता है

नाक
बहुत काम
की चीज
होती है

सभी
जानते है
पहचानते हैं

नाक
के बिना
बनाया हुआ
पुतला भी
एक नकटा
कहलाया
करता है

नाक
लक्ष्मण ने
काट दी
सूर्पनखा
की उस
जमाने में
क्या
गजब हुआ
राम रावण
के बीच

सभी ने सुना
आज भी नहीं
बचता है रावण

घासफूस का
बना सजा कर
आग में
जलता हुआ
काला सफेद
धुआँ बस
फैलाया करता है

नाक
से सूँघना
नाक
नीची और
नाक
ऊँची हो जाना
नाक से
पहचाना जाना
नाक
बहना
सरदी जुखाम
का हो जाना
नाक
की खातिर
दुनियाँ से
टकरा जाना
नाक
के लिये
करना मरना
ही पड़ता है
नाक
और भी
महत्वपूर्ण
हो जाती है
जब कोई
नाक
वाला किसी
नाक
वाले की
नाक
को नापने
के लिये
बाजे गाजे
के साथ
दूर से
निकल पड़ता है

डुगडुगी
बजती है
समाचार
छपता है
माहौल पूरा
नाकमय
हो
निकलता है

‘उलूक’
ढूँढता है
लकड़ी का
पैमाना
और
नापता है
नाक
जब आईने
के सामने
से खुद
 की ही
उसे पता
चलता है
उसकी
नाक
का बौनापन
उसी को
चिढ़ाता हुआ
सारे जमाने
की भीड़ की
नाक
के सामने से
कैसे अपनी
नाक
बचाता हुआ
बेशर्मी
से छुप कर
भाग निकलता है ।

‘NAAC’ साभार: www.clipartsheep.com

सोमवार, 9 नवंबर 2015

जब पकाना ही हो तो पूरा पकाना चाहिये बातों की बातों में बात को मिलाना आना चाहिये

अब
चोर होना
अलग बात है

ईमानदार होना
अलग बात है

चोर का
ईमानदार होना
अलग बात है

चोरी करने
के लिये
कुछ सामने
से होना
अलग बात है

बिना कुछ
उठाये
छिपाये भी
चोरी हो जाना
अलग बात है

कहने का
मतलब
ऐसे तो कुछ
भी नहीं है
पर
वैसे कहो
तो कुछ है
और
नहीं भी है

बात कहने में
क्या जाता है
बातें बताना
अलग बात है
बातें बनाना
अलग बात है

जैसे बात
दिशा बताने
की हो तो भी
बिल्कुल
जरूरी नहीं है
दिशा का ज्ञान हो

बच्चे का
चेहरा हो
शरीर
जवान हो
अधेड़ की
सोच हो
बुढ़ापे की
झुर्रियों
के पहले
से ही छिपे
हुऐ निशान हो

इसकी जीत में
उसकी हार हो
किसी के लिये
हार और जीत
दोनो बेकार हों

समय के
निशानों पर
छिपाये
निशान हों

जन्मदिन हो
जश्न हो
शहर हो
प्रदेश हो
ईमानदार
का ईमान हो
झूठ बस
बे‌ईमान हो

ईमानदारी
पर भाषण हो
झूठ का
सच हो
सच का
झूठ हो
शासन का
राशन हो
योगा का
आसन हो
बात का
बात से
बात पर
प्रहार हो
मुस्कुराता

अंदर
ही अंदर
अंदर का
व्यभिचार हो

पर्दा खुला
रहने रहने
तक तो
कम से कम
नाटक हो
और
जोरदार हो ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

शनिवार, 7 नवंबर 2015

किसी के पढ़ने या समझने के लिये नहीं होता है लक्ष्मण के प्रश्न का जवाब होता है बस राम ही कहीं नहीं होता है

क्या जवाब दूँ
मैं तुझे लक्ष्मण
मैं राम होना भी
नहीं चाहता हूँ
आज मेरे अंदर
का रावण बहुत
विकराल भी
हो  गया है
और मुझे राम से
डर लगने लगा है
राम आज मुझे
पल पल हर पल
नोच रहा है
किस से कहूँ
नहीं कह सकता
राम राम है
जय श्री राम है
मेरा ही राम है
लक्ष्मण तुम को
शक्ति लगी थी
और तुम्हारे पास
प्रश्न तब नहीं थे
अब हैं बहुत हैं
लक्ष्मण तुम और
तुम्हारे जैसे और
कई अनगिनत
अभिमन्यू हैं
जो तीर नहीं हैं
पर चढ़ाया गया है
जिन्हे कई बार
गाँडीव पर अर्जुन ने
तुम्हें समझा बुझा कर
तुम बने भी हो तीर
चले भी हो तीर
की तरह कई बार
इतना बहुत है कि
आज के जमाने में
कोई ना मरता है
ना घायल होता है
तुम्हारे जैसे तीरों से
कायरों के टायरों पर
सड़क के निशान
नहीं पड़ते हैं लक्ष्मण
रोज बहुत लोगों के
अंदर कई राम मरते हैं
कोई नहीं बताता है
किसी से कुछ नहीं
कह पाता है
बहुत बैचेनी होती है 

और तुम भी पूछ बैठे
ऐसे में ऐसा ही कुछ
और पता चला
आजकल राम
तुम्हारे साथ भी
वही करता है जो
सभी के साथ
उसने हमेशा से किया है
सभी को राम से प्रेम है
सभी को जय श्री राम
कहना अच्छा लगता है
कोई खेद नहीं होता है
राम राम होता है लक्ष्मण
प्रश्न करना हमेशा
दर्दमय होता है
उत्तर देना उस से भी
ज्यादा दर्द देता है
जब प्रश्न अलग होता है
राम अलग होता है
और पूछने वाला
लक्ष्मण होता है ।

 चित्र साभार: forefugees.com

नहीं दिखा कुछ दिन कहाँ गया पता चला खुजलाने गया है

कब किस चीज
से कहाँ खुजली
मचना शुरु हो जाये
कौन जानता है
कौन किसे
जा कर बताये
कौन किसे
क्या समझाये
देखने से खुजली
छूने से खुजली
सुनने से खुजली

इन सब पचड़ों
को छोड़ो भी

कुछ दिनों से
कुछ अजीब सी
खुजली हो रही है

कुछ तार बेतार के
खुजली के खुजली से
भी तो जोड़ो जी


हो रही है तो हो रही है
खुजला रहे हैं बैठ कर
कहाँ हो रही है
क्यों हो रही है
सोचने समझने में
लग गये कलम ही
छूट गई हाथ से
क्यों छूटी कुछ सोचो
मनन करो हर बात
पर शेखचिल्ली का
चिल्ला तो मत फोड़ो जी

अंदाज आया पता चला
कुछ नहीं लौटा पाने
की खुजली है
अब भिखारी लौटाये
भी तो क्या
कुछ चिल्लर
और किसे
कौन लेगा और
लौटाया भी जाये
तो किसे लौटाया जाये

ध्यान सारा एक ही
जगह पर लगना
शुरु हो गया और
इसी में गजब हो गया
गजब क्या हुआ
बाबा रामदेव की
मैगी का भोग हो गया
मत समझ बैठियेगा
पर हुआ कुछ ऐसा ही
जैसे योग हो गया

पहले क्यों नहीं
आया होगा ये
लौटाने पलटाने
वाला खेल
अब देखिये जिसे भी
उसी ने बना ली है
अपनी पटरी और
ले जोर शोर से छाती
पीट पीट कर चलाना
शुरु कर चुका है
उसके ऊपर अपनी रेल

जो भी है अब तो
खुजलाने में बहुत
मजा आने लगा है
जिसे देखो वो कुछ
ना कुछ लौटाने
में लगा है

‘उलूक’ तू वैसे भी
हमेशा उल्टे बाँस
बरेली जाने के जुगाड़
में लगा ही रहता है
लगा रह मजे से
खुजलाने में
साथ में बजाता
भी चल एक कनिस्तर
गाता हुआ कुछ गीत
ऐसा महसूस करें तेरी
उस खुजली को सभी
जिसे खुजलाते खुजलाते
तुझे भी खुजली खुजली
खेलने में अब बहुत
ज्यादा मजा आने लगा है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

सोमवार, 2 नवंबर 2015

खाली सफेद पन्ना अखबार का कुछ ज्यादा ही पढ़ा जा रहा था

कुछ ज्यादा
ही हलचल
दिखाई
दे रही थी
अखबार के
अपने पन्ने पर

संदेश भी
मिल रहे थे
एक नहीं
ढेर सारे
और
बहुत सारे
क्या
हुआ होगा
समझ में
नहीं आ
पा रहा था

पृष्ठ पर
आने जाने
वालों पर
नजर रखने
वाला
सूचकाँक
भी ऊपर
बहुत ऊपर
को चढ़ता
हुआ नजर
आ रहा था

और
ये सब
शुरु हुआ था
जिस दिन से
खबरें छपना
थोड़ा कम होते
कुछ दिन के
लिये बंद
हुआ था

ऐसा नहीं था
कि खबरें नहीं
बन रही थी

लूट मार हमेशा
की तरह धड़ल्ले
से चल रही थी
शरीफ लुटेरे
शराफत से रोज
की तरफ काम
पर आ जा रहे थे

लूटना नहीं
सीख पाये
बेवकूफ
रोज मर्रा
की तरह
तिरछी
नजर से
घृणा के
साथ देखे
जा रहे थे

गुण्डों की
शिक्षा दीक्षा
जोर शोर से
औने पौने
कोने काने
में चलाई
जा रही थी

पढ़ाई लिखाई
की चारपाई
टूटने के
कगार पर
चर्र मर्र
करती हुई
चरमरा रही थी

‘उलूक’
काँणी आँख से
रोज की तरह
बदबूदार
हवा को
पचा रहा था
देख रहा था
देखना ही था
आने जाने के
रास्तों पर
काले फूल
गिरा रहा था

कहूँ ना कहूँ
बहुत कह
चुका हूँ
सभी
कुछ कहा
एक ही
तरह का
कब तक
कहा जाये
सोच सोच
कर कलम
कभी
सफेद पानी में
कभी
काली स्याही में
डुबा रहा था

एक दिन
दो दिन
तीन दिन
छोड़ कर
कुछ नहीं
लिखकर
अच्छा कुछ
देखने
अच्छा कुछ
लिखने
का सपना
बना रहा था

कुछ नहीं
होना था
सब कुछ
वही रहना था
फिर लिखना
शुरु
किया भी
दिखा भी
अपनी सूरत
का जैसा ही
जमाने से
लिखा गया
आज भी
वैसा ही कुछ
कूड़ा कूड़ा
सा ही
लिखा जा
रहा था

जो है सो है
बस यही पहेली
बनी रही थी
देखने पढ़ने
वाला खाली
सफेद पन्ने को
इतने दिन
बीच में
किसलिये
देखने के लिये
आ रहा था ।

चित्र साभार: www.clker.com