उलूक टाइम्स

शनिवार, 12 सितंबर 2015

गुनाह करने का आजकल बहुत बड़ा ईनाम होता है

तेरी समझ में
आ रहा होता है
गुनाह और
गुनहगार
कहाँ नहीं होता है
तुझे भी पता होता है
होता रहे इससे
कुछ नहीं होता है
तू बेचता क्या है
ना तू वकील है
ना ही जज है
ना तूने मुकद्दमा
ही ठोका होता है
फिर तुझे किस
बात की खुजली
हर जगह होती है
खुजली होती है
तो खुजली का
मलहम कहीं से
क्यों नहीं लेता है
अब कोई कापी
किसी को दो घंटे
के लिये बाहर कहीं
से कुछ लिख लाने
के लिये दे देता है
तेरे कहने से
क्या होता है
सब को
पता होता है
तब भी क्या
होना होता है
जब कहीं रपट
नहीं होती है
ना ही कोई किसी
से कुछ कहता है
फिर कोई किसी को
किसी की जगह पर
परीक्षा में लिखने
लिखाने का ठेका
अगर दे भी देता है
तहकीकात होना
दिखाना ही काफी
और बहुत होता है
नाटक करने के लिये
सारा जंतर जुगाड़
किया गया होता है
हर जगह होता है
तेरे यहाँ भी किया
जा रहा होता है
तेरी किस्मत में
रोना लिखा होता है
तू क्यों नहीं दहाड़े
मार मार कर रोता है
देखा कभी किसी
बड़े चोर को
एक छोटा चोर
फाँसी देने का
हुकुम कहीं देता है
निपटाने के लिये
होती हैं ये सारी
नौटंकियाँ हर जगह
दिख जाता है
गुनहगार
माला पहने हुऐ
कहीं ना कहीं
दिख जाता है
जाँच करने वाला
चोर ही उसे
फूल का एक
गुच्छा बना
कर देता है
जो अखबार में
कभी भी कहीं
नहीं होता है
ऐसी खबर को
देने का हक
हर किसी को
नहीं होता है
‘उलूक’ तोते को
दी जाती है हमेशा
हरी मिर्च खाने को
माना कि उल्लू को
कोई नहीं देता है
तू भी कभी कभी
कुछ ना कुछ इस
तरह का खुद ही
खरीद कर क्यों
नहीं ले लेता है
मिर्ची खा कर
सू सू कर लेना
ही सबसे अच्छा
और सच में बहुत
अच्छा होता है।
चित्र साभार: www.dreamstime.com

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

दसवाँ हिंदी का सम्मेलन कुछ नया होगा सदियों तक याद किया जायेगा

हर जगह
कुछ ना कुछ
अढ़ाने की
आदत है

यहाँ
कैसे उसे
छोड़ पायेगा

दूर से ही सही
कुछ तो
उल्टा सीधा
खोज कर
लाकर
पढ़ायेगा

विश्व का है
हिंदी का है
सम्मेलन बड़ा है

छोटी मोटी
बात से
नहीं घुमायेगा

छोटा
होता होगा
तेरे घर के
आसपास
उसी तरह
का कुछ
बड़ा बड़ा
किया जायेगा

जमाना
अंतःविषय
दृष्टिकोण
का होना
बहुत जरूरी
हो गया
है आजकल

एक विषय
पर ही
बात करने से
दूसरे विषय का
अपना आदमी
कहाँ समायोजित
किया जायेगा

सारे
विषयों पर
चर्चा के बाद
समय बच गया
तो हिंदी पर भी
कुछ हवा में
छोड़ा जायेगा

कुछ फोड़ने
लायक हुआ तो
फोड़ा भी जायेगा

सम्मान
की पड़ी है
कुछ लोगों को

उनको ना सही
उनसे मिलते जुलते
किसी ना किसी को
तो दिया ही जायेगा

सम्मानित
किया जायेगा
तो दो मीटर
के कपड़े का
शॉल भी
दिया ही जायेगा

दिख जायेगा
किसी ना किसी
के कंधे पर
फोटो

टी वी अखबार
वालों को
तो बुलाया
जरूर ही जायेगा

हिंदी वाला नहीं
बुलाया गया
कोई चिंता की बात
नही करनी होगी

कुछ ना कुछ
उनके घर को
डाक से
भेज दिया जायेगा

नेता होंगे
राजनेता होंगे
मंच सुप्रसिद्ध
व्यक्तियों से
पाट दिया जायेगा

शराबियों
को रोकने
का इंतजाम
किया ही गया है

पहले से ही
किसी सरकारी
बड़े ने
कह ही दिया है

पीने पिलाने
छी छी
की कोशिश
करना छोड़

बात करने पर भी
हिंदी सम्मेलन से बाहर
फेंक दिया जायेगा

और क्या चाहिये
बता हिंदी तुझको

तेरे लिये है तेरे द्वारा
ही किया जा रहा है
तेरा उद्धार हमेशा से

मेरा कुछ नहीं है
तेरा तुझको अर्पण
ही किया जायेगा
जरूर किया जायेगा

'उलूक'
बहुत कुछ कहने
की आदत है जिसको

यहाँ आ कर पक्का
इसी तरह का कुछ
कहने से अपने को
नहीं रोक पायेगा

देख लेना
जो भी होगा
सामने होगा
समय बतायेगा ।

चित्र साभार: kharinews.in

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

छोड़ भी दे देख कर लिखना सब कुछ और कुछ लिख कर देख बिना देखे भी कुछ तो जरूर लिखा जायेगा


रात को सोया कर 
कुछ सपने वपने हसीन देखा कर 
सुबह सूर्य को जल चढ़ाने के बाद ही 
कुछ लिखने और लिखाने की कभी कभी सोचा कर 

देखेगा
सारा बबाल ही चला जायेगा 
दिन भर के कूड़े कबाड़ की कहानियाँ 
बीन कर जमा करने की आदत से भी बाज आ जायेगा 

छोड़ देगा सोचना 
बकरी कब गाय की जगह लेगी
कब मुर्गे को राम की जगह पर रख दिया जायेगा 

कब दिया जायेगा राम को फिर वनवास
कब उसे लौट कर आने के लिये मजबूर कर दिया जायेगा

ऐसा देखना भी क्या
ऐसे देखे पर कुछ लिखना भी क्या 

राजा के
अपने गिनती के बर्तनों के साथ
अराजक हो जाने पर अराजकता का राज होकर भी 
ना दिखे किसी भी अंधे बहरे को 

इससे अच्छा मौसम लगता नहीं ‘उलूक’ 
तेरी जिंदगी में फिर कहीं आगे किसी साल में दुबारा आयेगा 

छोड़ भी दे देख कर लिखना सब कुछ 
और कुछ लिख कर देख बिना देखे भी 
कुछ तो जरूर लिखा जायेगा । 

चित्र साभार: altamashrafiq.blogspot.com

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

समाचार बड़े का कहीं बड़ा कहीं थोड़ा छोटा सा होता है

बकरे और मुर्गे
चैंन की साँस
खींच कर
ले रहे हैं
सारे नहीं देश
में बस एक दो
जगह पर कहीं
वहीं मारिया जी की
पदोन्नति हो गई है
शीना बोरा को
आरूषि नहीं बनने दूँगा
उनसे कहा गया
उनके लिये लगता है 
फलीभूत हो गया है
मृतक की आत्मा ने
खुश हो कर
सरकार से उनको
अपने केस को छोड़
आगे बढ़ाने के लिये
कुछ कुछ बहुत
अच्छा कह दिया है
हेम मिश्रा बेल पर
बाहर आ गया है
सरकार का कोई
आदमी आकर इस
बात को यहाँ
नहीं बता गया है
खुद ही बाहर आया है
खुद ही आकर उसने
खुद ही फैला दिया है
बड़े फ्रेम की बडी खबरें
और उसके
फ्रेम की
दरारों से 
निकलती
छोटी खुरचने
रोज ही होती हैं
ऐसे में ही होता है और
बहुत अच्छा होता है
अपने छोटे फ्रेम के
बड़े लोगों की छोटी
छोटी जेबकतरई
उठाइगीरी के बीच
से उठा कर कुछ
छोटा छोटा चुरा
कर कुछ यहाँ
ले आना होता है
फिर उसे जी भर
कर अपने ही कैनवास
में बेफिक्र सजाना होता है
बड़े हम्माम से अच्छा
छोटे तंग गोसलखाने का
अपना मजा अपना
ही आनन्द होता है

उलूक करता रहता है
हमेशा कुछ ना कुछ
नौटंकी कुछ कलाकारी
कुछ बाजीगरी
उसकी रात की दुनियाँ
में इन्ही सब फुलझड़ियों
का उजाला होता है  ।

चित्र साभार:
earthend-newbeginning.com

सोमवार, 7 सितंबर 2015

खबर है खबर रहे प्रश्न ना बने ऐसा कि कोई हल करने के लिये भी कहे

क्या है ये

एक डेढ़ पन्ने
के अखबार
के लिये

रोज एक
तुड़ी मुड़ी
सिलवटें
पड़ी हुई खबर

उसे भी
खींच तान कर
लम्बा कर

जैसे
नंगे के
खुद अपनी
खुली टाँगों के
ना ढक पाने की
जद्दोजहद में

खींचते खींचते
उधड़ती हुई
बनियाँन के
लटके हुऐ चीथड़े

आगे पीछे
ऊपर नीचे
और इन
सब के बीच में

खबरची भी
जैसे
लटका हुआ कहीं

क्या किया
जा सकता है

रोज का रोज
रोज की
एक चिट्ठी
बिना पते की

एक सफेद
सादे पन्ने
के साथ
उत्तर की
अभिलाषा में

बिना टिकट
लैटर बाक्स में
डाल कर
आने का
अपना मजा है

पोस्टमैन
कौन सा
गिनती करता है

किसी दिन
एक कम
किसी दिन
दो ज्यादा

खबर
ताजा हो
या बासी

खबर
दिमाग लगाने
के लिये नहीं

पढ़ने सुनने
सुनाने भर
के लिये होती है

कागज में
छपी हो तो
उसका भी
लिफाफा
बना दिया
जाता है कभी

चिट्ठी में
घूमती तो
रहती है
कई कई
दिनों तक

वैसे भी
बिना पते
के लिफाफे को

किसने
खोलना है
किसने पढ़ना है

पढ़ भी
लिया तो

कौन सा
किसी खबर
का जवाब देना
जरूरी होता है

कहाँ
किसी किताब
में लिखा
हुआ होता है

लगा रह ‘उलूक’

तुझे भी
कौन सा
अखबार
बेचना है

खबर देख
और
ला कर रख दे

रोज एक
कम से कम

एक नहीं
तो कभी
आधी ही सही
कहो कैसी कही ?

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

रविवार, 6 सितंबर 2015

मेंढक और योगिक टर्राना जरूरी है बहुत समझ में आना

एक
ठहरा हुआ
पानी होता है
समुद्र का होता है

एक
टेडपोल
सतह पर
अपने आप को
व्हैल समझने लगे
ऐसा भी होता है

समय
बलिहारी होता है

उसके जैसे
बाकी टैडपोल
उसके लिये
कीड़े हो जाते हैं

क्योंकि
वो नापना
शुरु कर देता है
लम्बाई पूँछ की

भूल
जाता है
बनना सारे
टेडपोलों को
एक दिन मैंढक
ही होता है
टर्राने के लिये
टर्र टर्र
पर
टेडपोल मुँह
नहीं लगाता है
किसी भी
टेडपोल को

बहुत
इतराता है
तैरना
भी चाहता है
तो कहीं अलग
किसी कोने में

भूल
जाता है
किसी दिन जब
सारे टैडपोल
मैंढक हो जायेंगे

कौन बड़ा
हो जायेगा
कौन ज्यादा
बड़ी आवाज
से टर्रायेगा

उस समय
किसका
टर्राना
समुद्र के
नमकीन पानी में
बस डूब जायेगा

कौन सुनेगा
बहुत ध्यान से
टर्राना
और
किसका सुनेगा

कैसा
महसूस
होगा उसे

जब पुराने
उसी के किसी
टेड़ी पूँछ वाले
साथी की पूँछ से

दबा हुआ उसे
नजर आयेगा
टर्राने का इनाम

इसी लिये
कहा जाता है
समय के साथ
जरूरी है औकात
बोध कर लेना

समय
कर दे
अगर शुरु
टर्राना 
उस समय
टेढ़ी पूँछ
को मुँह
ना लगाना
गजब
कर जायेगा

गीता पढ़ो
रामायण पढ़ो
राम नाम जपो
राधे कृष्ण करो
कुछ भी काम
में नहीं आयेगा

समय
खोल देता है
आँखे ही नहीं
आत्मा को भी ‘उलूक’

समझ
सकता है
अभी भी
समझ ले
अपने
कम से कम
चार साथियों को

नहीं तो
अर्थी उठाने
वाला भी तेरी कोई
दूर दूर तक नजर
नहीं आयेगा ।

चित्र साभार: www.frog-life-cycle.com

शनिवार, 5 सितंबर 2015

‘उलूक’ व्यस्त है आज बहुत एक सपने के अंदर एक सपना बना रहा है

                                                    

काला चश्मा लगा कर सपने में अपने
आज बहुत ज्यादा इतरा रहा है 
शिक्षक दिवस की छुट्टी है खुली मौज मना रहा है 

कुछ कुछ खुद समझ रहा है 
कुछ कुछ खुद को समझा रहा है 
समझने के लिये अपना गणित 
खुद अपना हिसाब किताब लगा रहा है 

सपने देख रहा है देखिये जरा क्या क्या देख पा रहा है 

सरकारी आदेशों की भाषाओं को तोड़ मरोड़ कर 
सरकार को ही आईना दिखा रहा है 

कुछ शिष्यों की इस दल में भर्ती 
कुछ को उस दल में भरती करा रहा है 
बाकी बचे खुचों को वामपंथी बन जाने का पाठ पढ़ा रहा है 

अपनी कुर्सी गद्दीदार बनवाने की 
सीड़ी नई बना रहा है 
ऊपर चढ़ने के लिये ऊपर देने के लिये 
गैर लेखा परीक्षा राशि ठिकाने लगा रहा है 

रोज इधर से उधर रोज उधर से इधर 
आने जाने के लिये चिट्ठियाँ लिखवा रहा है 
डाक टिकट बचा दिखा पूरी टैक्सी का टी ऐ डी ऐ बनवा रहा है 
सरकारी दुकान के अंदर अपनी प्राईवेट दुकान धड़ल्ले से चला रहा है 
किराया अपने मित्रों के साथ मिल बांट कर खुल्ले आम खा रहा है 

पढ़ने पढा‌ने का मौसम तो आ ही नहीं पा रहा है 
मौसम विभाग की खबर है कुछ ऐसा फैलाया जा रहा है 

कक्षा में जाकर खड़े होना शान के खिलाफ हो जा रहा है 
परीक्षा साल भर करवाने का काम ऊपर का काम हो जा रहा है 

इसी बहाने से 
तू इधर आ मैं उधर आऊँ गिरोह बना रहा है 
कापी जाँचने का कमप्यूटर जैसा होना चाह रहा है 

हजारों हजारों चुटकी में मिनटों में निपटा रहा है 
सूचना देने में कतई भी नहीं घबरा रहा है 

इस पर उसकी उस पर इसकी दे जा रहा है 
आर टी आई अपनी मखौल खुद उड़ा रहा है 

शोध करने करवाने का ईनाम मंगवा रहा है 
यू जी सी के ठेंगे से ठेंगा मिला रहा है 

सातवें वेतन आयोग के आने के दिन गिनता जा रहा है 
पैंसठ की सत्तर हो जाये अवकाश की उम्र 
गणेश जी को पाव लड्डू खिला रहा है 

किसे फुरसत है शिक्षक दिवस मनाने की 
पुराना राधाकृष्णन सोचने वाला घर पर मना रहा है 

‘उलूक’ व्यस्त है सपने में अपने 
उससे आज बाहर ही नहीं आ पा रहा है 

कृष्ण जी की कौन सोचे ऐसे में 
जन्माष्टमी मनाने के लिये 
शहर भर केकबूतरों से कह जा रहा है 

सपने में एक सपना देख देख खुद ही निहाल हुऐ जा रहा है 

'उलूक' उवाच है किसे मतलब है कहने में क्या जा रहा है । 

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

शिक्षक दिवस इस बार राधा के साथ कृष्ण और राधाकृष्णन साथ मनाते होंगे

कम नहीं हैं बहुत हैं
होने वाले कुछ
कृष्ण हो जायेंगे
कुछ बांसुरी भी छेड़ेंगे
कुछ अपनी कुछ
राधाओं के संग
कुछ रास रचायेंगे
कुछ अर्जुन भी होंगे
कुछ दुर्योधनों के
साथ चले जायेंगे
कुछ कहीं गीता
व्यास की बाँचेंगे
कुछ गुरु ध्यान
करना शुरु हो जायेंगे
शिक्षा की कुछ बातें
कुछ की कुछ बातों
में से ही निकल
कर बाहर
कुछ आयेंगी
कुछ शिक्षा
और कुछ
शिक्षकों के
संदर्भ की
नई कहानियाँ
बन जायेंगी
कुछ गीत होंगे
कुछ कविताऐं भी
सुनाई जायेंगी
कुछ शिक्षक होंगे
कुछ फूल होंगे
कुछ शाल होंगे
कुछ मालायें होंगी
कुछ चेहरे होंगे
कुछ मोहरे होंगें
कुछ खबरों में होंगे
कुछ तस्वीरों में होंगे
बनेगा अवश्य ही
कुछ अद्भुत संयोग
कुछ इस बार के
शिक्षक दिवस पर
कुछ ना कुछ तो
बन ही रहा है योग
शिक्षा के पीले वृक्ष
को जड़ उखाड़ कर
कुछ परखा जायेगा
मिट्टी पानी
हवा हटा कर
कंकरीट डाल फिर
मजबूत किया जायेगा
हर बार की तरह नहीं
इस बार कुछ अलग
कुछ नये इरादे होंगे
राधाकृष्णन
की यादें होंगी और
वहीं साथ में राधा के
कृष्ण के साथ किये
कुछ पुराने वादे होंगे
‘उलूक’ पता नहीं
कौन सा दिन मनायेगा
कुछ तो करेगा ही
हेड टेल करने के लिये
एक सिक्का पुराना
ढूँढ कर कहीं से
जरूर ले कर आयेगा।

चित्र साभार:
www.pinterest.com
livechennai.com

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

सकारात्मक और नकारात्मक हवा को देखने के नजरिये से पता चल जाता है


कभी लगता है आता है 
कभी लगता है नहीं आता है 

जब बहुत ज्यादा भ्रम होना शुरु हो जाता है 
सोचा ही जाता है 
पूछ ही लेना चाहिये पूछने में किसी का क्या जाता है 

ऐसा सोच कर
जब जमूरा उस्ताद के धौरे पहुँच जाता है 
तो उस्ताद भी मुस्कुराते हुऐ बताता है 

बहुत आसान सा प्रश्न है जमूरे 

देख अपने ही सामने से
एक खाली जगह को देखते देखते 

सारी जिंदगी एक आदमी
सोच सोच कर 
कुछ बन रहा है कुछ बन रहा है 
देखते सोचते
गुजर भी जाता है 

उसके मरने के बाद
उसका जैसा ही दूसरा
इसी बनने की बात को
आगे बढ़ाता है 

बन रहा है की जगह
पक्का बन रहा है
फैलाना शुरु हो जाता है 

सकारात्मक कहा जाता है 

ऐसे ही
सकारात्मक लोगों में से ही 
सबसे सकारात्मक को 
बन रहा है कहने को
आगे बढ़ाने का
ठेका भी दिया जाता है 

नकारात्मक
खाली खाली 
रोज खाली जगह को देखने
खाली चला आता है 

देखता है सोचता है 
खाली है खाली है कहते कहते
खाली बेकार में आता है
और
खाली चला जाता है 

ऐसे खाली लोगों को 
खाली ही रहने दिया जाता है 

‘उलूक’ 
उसी खाली जमीन को देखते देखते ऊँघता हुआ
पेड़ की किसी डाल पर 
पंजे से अपने कान खुजलाता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

बुधवार, 2 सितंबर 2015

कल का कबाड़ इंटरनेट बंद होने से कल शाम को रीसाईकिल होने से टप गया

अंदाज
नहीं आया
उठा है या
सो गया
कल
सारे दिन
इंटरनेट
जैसे
लिहाफ एक
मोटा सा
ओढ़ कर
उसी के
अंदर ही
कहीं
खो गया

इन तरंगों
में बैठ कर
उधर से
इधर को
वैसे भी
कुछ कम
ही आता है
और जाता है

बहुत
कोशिश
करने पर भी
इधर का कुछ
उधर धक्के दे दे
कर भेजने पर
भी नहीं गया

ये भी
कोई कहने
की बात है

अब
नहीं चला
तो नहीं चला

कई चीजें
खाली चलने
वाली ही नहीं
बल्की फर्राटा
दौड़ दौड़ने
वाली
कब से कहीं
जा कर खड़ी हो गई

उधर
तो कभी
किसी
खुली आँखों
वाले की नजर
भी नहीं गई

चल रही है
दौड़ रही है
की खबरें
बहुत सारी
अखबारों में
तब से और
ज्यादा बड़ी
आनी
शुरु हो गई

चलते
रहने से
कहीं पहुँच
जाने का
जमाना ही
अब नहीं
रह गया
पहुँच गया
पहुँच गया
फैलाना
ही फैलाने
के लिये
खड़े होकर
एक ही
जगह पर
बहुत हो गया

‘उलूक’
रोना
ठीक नहीं
इंटरनेट के
बंद हो जाने पर

कितना
खुश हुआ
होगा जमाना
कल

सोच
सोच कर
चटने
चटाने से
एक ही
दिन सही
बचा तो सही
बहुत कुछ
बहुत बहुत
बच गया ।

चित्र साभार: cliparts.co

सोमवार, 31 अगस्त 2015

शाख में बैठे ‘उलूक’ की श्रद्धांजलि माननीय एम एस कालबुर्गी जी वैसे भी कौन सा आपको स्वर्ग जाना है

पढ़ने लिखने वाले
विदव्तजनो के लिखे
कहे को पढ़ने के बाद
कुछ कहा करो विद्वानो
बेवकूफों की बेवकूफी
के आसपास टहल कर
अपनी खुद की छीछालेदारी
तो मत किया करो
 टिप्पणी दे कर
मत बता जाया करो
बिना पढ़े कुछ भी
लिख दिये गये पर
कह गये हो निशान
छोड़ कर मत
बता जाया करो
आया भी करो
और जाया भी करो
ये कल 'रवीश कुमार'
पर लिखे गये उसके
खुद के लिखे गये पर
उलूक के लिखे गये पर
लिखने वालों के
लिये लिख दिया
अब आगे सुनिये
अगस्त के महीने के
अंतिम दिन का पन्ना
कान बंद कर के सुनना
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
की घोटे गये गले में
एक और गला गिनना
शोर मचाना ताली बजाना
गाना बना कर गाना
किसी एक बेवकूफ के लिये
एक बेवकूफ झंडा बन जाना
खुद कुछ भी नहीं होना
किसी के खाने के ऊपर के
खाने को जमा करने करवाने
का रास्ता हो जाना
लगे रहिये लेकिन
कर्नाटक के एक और
दाभोलकर
एम एस काल्बुर्गी
का सरे आम मारा जाना
दिखा गया आईना
एक बार फिर
से ढोल पीटने
वालों को इस देश के
ढोलचियों के लिये
उसमें हम सब हैं
तुम मैं और वो और
शाख पर बैठा उलूक
हमेशा की तरह
जिम्मेदार देश की
बरबादी के लिये
देखता हुआ सारे
ढपोरशंखी पहरेदारों
को अपनी रात
की बंद आँखों से ।

चित्र साभार: www.abplive.in

रविवार, 30 अगस्त 2015

कुछ समझ आता है ? : रवीश कुमार सही में दलाल है - रवीश कुमार खुद ही बताने आता है

अक्ल
ठिकाने
लग जाती है

जब
कभी बात
ऐसी ही कुछ
अजीब सी

सामने से
आ जाती है

अच्छा खासा
तमीजदार
ईमानदार
इज्जतदार

नजर
आने वाले
एक आदमी की
जबान कहने
लग जाती है

खुद
उसी के लिये
कि वो एक दलाल है

ना उसके पास
माल नजर आता है

ना ही किसी
बड़ी किताब में
उसे कहीं मालामाल
कहा जाता है

अब
कैसे बताये
कौन समझाये

बिना
दलाली
की डिग्री
पास किये

कोई कैसे
ऐसे वैसे

दलाल भी
हो जाता है

कहने से
क्या होता है
सबूत नहींं
हो भी अगर

फर्जी एक
कहीं से

जुगाड़ कर के

लाना भी
बहुत जरूरी
हो जाता है

दलालों की
जमात को
दलाल कह देने से
यही सब हो जाता है

इसीलिये
इस जमाने में

शब्दकोश को
खाली खोल के
शब्दों को नहीं
चुना जाता है

बाहर
निकाल कर
शब्द

अल्पसंख्यक है
या
बहुसंख्यक है
देखने के लिये
तोला भी जाता है

ज्यादा
चोरों के बीच
जैसे अब एक
ईमानदार होने
का मतलब ही
चोर हो जाता है

नहीं भी
होता है तो
किसी तरह घेर कर
बना दिया जाता है

सोचता
क्यों नहीं
कहने से पहले

दलाल होना
बिना दलाली किये
और
कह देना
दलाल खुद को ही

बहुत बड़ा
एक जुर्म
माना जाता है

बिना माल के
मालामाल हुऐ बिना
मान लेने वाले को

आज दलाल कतई
नहीं माना जाता है

बहुत अच्छा
करता है
‘उलूक’

दलाली
किये बिना
दलाल होने की
सोचता ही नहीं है

होने होने
होते होते
से पहले ही
शरमा जाता है ।

चित्र साभार:
http://www.shabdankan.com/2015/08/ravish-kumar-sahi-me-dalal-hai.html

शनिवार, 29 अगस्त 2015

ले भी लीजिये हजूर छुट्टी के दिन ऐसा ही बेचा जायेगा

ले लीजिये
साहब
थोड़ा सा
बड़ा जरूर
हो गया है
पर सच में
बहुत अच्छा है
अच्छा है
सामने है
दिख ही
रहा है
स्वभाव दिख
ही जायेगा
कुछ दिनों बाद
सब कुछ
साफ साफ
इधर उधर
आगे पीछे
ऊपर नीचे
सब जगह
जगह जगह
नजर आयेगा
वैसे इसके
इलाके में
किसी से भी
पूछ लीजिये
ज्यादातर
कुछ भी
नहीं कहेंगे
चुप ही रहेंगे
कुछ बस
मुस्कुरायेंगे
एक दो
बेकार के
फालतू
हर जगह
होते ही है
आदत होती है
आदतन
कुछ ना कुछ
बड़बड़ायेंगे
कुछ पालतू
भी मिलेंगे
एक जैसे
नहीं हो
सकते हैं
कभी भी
फिर भी
जैसा ये है
वैसे ही नजर
भी आयेंगे
मिलेंगे नहीं भी
तब भी
आभास जैसा
ही दे जायेंगे
अच्छी जाति
दिखने से
कहाँ कहीं
पता चलती है
काम करने
के तरीके से
पता चल
ही जाती है
डी एन ए
की बात तभी
तो की जाती है
अब अपने
मुँह मियाँ
मिट्ठू भी
होना ठीक
नहीं होता है
‘उलूक’
माना दिन
में बस
सुनता है
कुछ भी
कहीं भी
नहीं देखता है
रख कर तो
देखिये हजूर
सबूत जरूर
मिल जायेंगे
काम करता
हुआ कभी
भी नजर
नहीं आयेगा
काम के समय
इधर उधर
चला जायेगा
दिखेगा
चुस्त बैठा
हमेशा
नजर आयेगा
कसम से
अभी कुछ भी
पता नहीं चलेगा
जाने के बाद
देखियेगा
हर जगह
खोदा खोदा
सा सब
नजर आयेगा
ले लीजिये साहब
दिखने दिखाने
में कुछ
नहीं रखा है
बहुत
काम का है
बहुत
काम आयेगा
आगे काम ही
काम दिखेगा
बचा कुछ भी
नहीं रह जायेगा
रख ही लीजिये
हजूर देखा जायेगा ।

 चित्र साभार: kennysclipart.com

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

रोज सुनता है मेरे यहाँ की कभी अपने यहाँ की क्यों नहीं कहता है

क्या तुम्हारे यहाँ भी
वही सब हुआ होता है
जो जो जैसा जैसा
मेरे यहाँ रोज का
रोज हुआ होता है
लगता तो नहीं है
एक जैसा ही
हुआ होता होगा
मेरे यहाँ का हुआ हुआ
हो रहा और होने वाला जितना भी जो भी
पता हुआ होता है
शाम होने होने तक
शराब की तरह
कलम से निकल कर
पन्ने के गले के नीचे
उतर चुका होता है
नशा पन्ने को
हुआ होता है या
नहीं हुआ होता है
तुड़ा मुड़ा कागज
कमरे के किसी कोने
में बेजान बेसुद सा
जरूर पड़ा होता है
तुम्हारे यहाँ का हुआ
शायद मेरे यहाँ के हुऐ से
कुछ अलग हुआ होता है
उसके यहाँ का हुआ
वो अपने यहाँ पर
कह रहा होता है
इसके यहाँ का हुआ
ये अपने यहाँ पर
कह रहा होता है
उसका उसका जैसा
इसका इसका जैसा
मेरे यहाँ का मेरे
जैसा ही होता है
तेरे यहाँ कैसा
कैसा होता है तू तो
कहीं भी कभी भी
कुछ भी नहीं कहता है
कबीर ने कहा हो
या ना कहा हो पर
सबसे अच्छा तो
वही होता है ‘उलूक’
जो सबकी सुनता है
अपनी करता है और
कहीं भी अपने यहाँ के
हुऐ और होने वाले के
बारे में कुछ भी
नहीं कहता है ।

चित्र साभार: www.clipartof.com

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

ठंड रखना सीखना अच्छा होता है वो जो भी कहता है भले के लिये ही कह रहा होता है

अब सभी कुछ
हमेशा खराब और
गंदा नहीं होता है
सोच कर देखना
चाहिये फूल कमल
को देख कर इतना
तो कम से कम
गंदे कीचड़ में भी
मुस्कुराता हुआ
हमेशा ही जो
खिला होता है
सपने बना कर
बताने वाले को
अच्छी तरह से
ये पता होता है
सपना कौन से
पाँव में कैसे
किस तरीके से
और कब कहाँ
पर खड़ा होता है
करोड़ों की बात
सुनकर होता है
किसी के नीचे से
कहीं कुछ खिसक
सा रहा होता है
सौ हजार लाख का
कोई सपना अब
बाजार में कहीं भी
किसी भी दुकान
में नहीं होता है
खाली जमीन
दिखती है बंजर
पड़ी हुई सामने से
बंजर खाली दिमाग
के बस में बंजर
सोच लेना ही बड़ा
सोच लेना होता है
हो क्लास स्कूल
बाजार गली मैंदान
शहर हस्पताल
या कुछ और भी
स्मार्ट आज कहाँ
और किस पर
फिट हो रहा है
पूछना ही किसी
से नहीं होता है
सपने के ऊपर
से सपना
सपने के
आगे से सपना
सपने के पीछे
से सपना
कितना सपना सपना
हो रहा होता है
सपना सोचने सोचने
तक सामने से रख
कर एक और सपना
सपनों के कलाकार
ने इतना क्या
कम सीखा होता है
और ऐसे में
कहीं बीच से
करोड़ों के निकल
लेने का  इधर से
कहीं उधर को
सपनो सपनो में
किसी को आभास भी
नहीं कुछ होता है
‘उलूक’ आँखें फोड़
कर अपनी
गजब के ऐसे
सपनों को
सपनों में ही कहीं
खोद रहा होता है ।

चित्र साभार: www.clipartbagus.com

बुधवार, 26 अगस्त 2015

दे भी दे बचा आधा भी बचा कर कहाँ ले जायेगा

आधा बचा
कर क्यों
रखा है
पूरा बांट
क्यों नहीं
देता है
अभी भी
ज्यादा
कुछ नहीं
बिगड़ा है
एक उधर
एक इधर ही
बस उखड़ा
उखड़ा है
नहीं बाँटेगा
तो तीसरा
चौथा भी
खड़ा हो
जायेगा
सब खड़े
हो गये तो
बाँट भी
नहीं पायेगा
पहले वाले
आधों के हाथ
भी क्या कुछ
आ पाया है
बाकी आधों
के लिये भी
कहाँ क्या
कुछ बचा
बचाया है
दे दे इसे
भी कुछ
कुछ उसे भी
निपटा दे
इस बार
बचे हुऐ
आधे को भी
सब बँट
बँटा जायेगा
बबाल ही
खत्म हो
जायेगा
सबके पास
होगा थोड़ा थोड़ा
हर कोई उसका
एक बिल्ला
बना कर
सीने से अपने
लगायेगा
झगड़े की
जड़ ही
नहीं रहेगी
एक और
दासता से
देश एक बार
और आजाद
हो जायेगा
‘उलूक’ भी
एक सौ आठ
रुद्राक्ष के
दानों की
माला लिये
किसी सूखे
पेड़ की सबसे
ऊँची डाल
पर बैठ जायेगा
नाम तेरा
जपेगा जोर से
जपते जपते
शायद तर
भी जायेगा ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

बाजार गिरा है अपने घर पर रहो उसे संभाल दो

बहुत कुछ गिरता है
पहले भी गिरता था

गिरता चला आया है
आज भी गिर रहा है 

कोई नई चीज तो
नहीं गिरी है
हल्ला किस बात का


अब जिम्मेदारी होती है
इसका मतलब
ये नहीं होता है
सब चीज की जिम्मेदारी
एक के सर पर डाल दो
अंडे की तरह छिलके
सहित कभी भी उबाल दो

घर की जिम्मेदारी
कुछ अलग होती है

स्कूल कालेज हस्पताल
सड़क हवा पानी बिजली
दीवाने और दीवानी
फिलम की कहानी

गिनाने पर आ जाये कोई
तो गिनती करने की
जिम्मेदारी भी होती है

पिछले साठ सालों में
उसने और उसके लोगों ने 
कितनी बार गिराई
जान बूझ कर गिराई
तब तो कोई नहीं चिल्लाया

छोटी छोटी बनाता था
रोज गिराता था
आवाज भी नहीं आती थी
बात भी रह जाती थी

अब इसको क्या पता था
गिर जायेगी
बड़ी बड़ी खूब लम्बी चौड़ी
अगर बना दी जायेगी

अब गिर गई तो गिर गई
बाजार ही तो है
कल फिर खड़ी हो जायेगी

अभी गिरी है
चीन या अमेरिका के
सिर पर डाल दो
खड़ी हो जायेगी

तो फिर आ कर
खड़े हो जाना
बाजार के बीचों बीच

अभी पतली गली से
खबर को पतला कर
सुईं में डालने वाले
धागे की तरह
इधर से उधर निकाल दो 


उलूक को ना बाजार
समझ में आता है
ना उसका गिरना गिराना

रोज की आदत है उसकी
बस चीखना चिल्लाना

हो सके तो उसकी कुण्डली
कहीं से निकलवा कर
उसके जैसे सारे उल्लुओं को

इसी बात पर साधने का
सरकारी कोई आदेश
कहीं से निकाल दो ।

चित्र साभार:
www.clipartpanda.com


सोमवार, 24 अगस्त 2015

दलों के झोलों में लगें मोटी मोटी चेन बस आदमी आदमी से पूछे किसलिये है बैचेन

कंधे पर लटके हुऐ
खुद के कर्मों के
एक बेपेंदी के
फटे हुऐ झोले में
रोज अपने खाली
हाथ को डालना
मुट्ठी भर हवा
को पकड़ कर
हाथ को बाहर
निकालना
कुछ इधर फेंकना
कुछ उधर फेंकना
बाकी शेष कुछ हवा
को हवा में ऊपर
को उछालना
ये सोच कर
शायद
किसी को कुछ
नजर आ जाये
और लपक ले जाये
उस कुछ नहीं में से
कोई कुछ कुछ
अपने लिये भी
उस समय जब
भरे झोले वाले लोग
चाहना शुरु करें
कोई ना देखे
उनके झोले
कोई ना पूछे
किसके झोले
सूचना भरे झोलों
का आदान प्रदान
हो सके तो बस
बंद झोलों और
बंद झोलों के बीच
ही बिना किसी के
कहीं कोई जिक्र
किये हुऐ और
बाकी एक अरब से
ऊपर के पास के
झोलों के पेंदें रहें
फटे और खुले
ताकि बहती रहे
हवा नीचे से ऊपर
और ऊपर से नीचे
आसान हो
निकालना
हवा को हाथ से
मुट्ठी बांध कर
और चिल्लाना
भूखे पेट ही
इंकिलाब
जिंदाबाद
आर टी आई
मुर्दाबाद।

चित्र साभार: www.manofactionfigures.com


रविवार, 23 अगस्त 2015

कहते कहते ही कैसे होते हैं कभी थोड़ी देर से भी होते हैं



तुम तो पीछे ही पड़ गये दिनों के 
दिन तो दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

अच्छी और बुरी तो सोच होती है 
उसी में कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं कोई लोच होती है 

सब की समझ में सब कुछ 
अच्छी तरह आ जाये 
ऐसा भी नहीं होता है 

आधी दुनियाँ में उधर रात 
उसके इधर होने से नहीं होती है 

इधर की दुनियाँ में दिन होने से 
रात की बात नहीं होती है 

किसी से 
नाँच ना जाने आँगन टेढ़ा 
कहना भी
बहुत अच्छी बात नहीं होती है 

पहले ही
पूछ लेने की आदत ही 
सबसे अच्छी एक आदत होती है 

जो हमेशा
भले लोगों की 
हर भली बात के साथ होती है 

लंगड़ा कर
यूँ ही शौक से 
नहीं चलना चाहता है कोई भी कभी भी 

सोच में
नहीं होती है 
दायें या बाँयें पाँव में से 
किसी एक में कहीं थोड़ी बहुत 
मोच पड़ी होती है 

अच्छा अगर
नहीं
दिख रहा होता है 
सामने से कहीं 

कहीं ना कहीं 
रास्ते में होती है
उस अच्छे की गाड़ी 
और
थोड़ा सा
लेट हो रही होती है 

दिन तो
दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

किस्मत
भी होती है 
भेंट नहीं हो पा रही होती है 

वैसे भी 
सबके
एक साथ नहीं होते हैं 
जिसके हो चुके होते है 
'उलूक' 

उसके
अगली बार 
तक
तो
होने भी नहीं होते हैं । 

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

शनिवार, 22 अगस्त 2015

सच कभी अपने झूठ नहीं कहता है

ऐसा
नहीं होता है

ऐसा भी होता है

सारे
सचों को
सच सच
कह देने का भी
कभी कभी
मन होता है

रोज ही
झूठ बोलने से
जायका भी
खराब होता है

सब रखते हैं
अपने अपने
सबके सामने से

उसमें क्या सच
क्या झूठ होता है

किसी
को कुछ
पता होता है
किसी को कुछ
पता नहीं होता है

ऐसा भी
नहीं होता है
खुद का सच
खुद को ही
पता नहीं होता है

कौन सा सच
सच होता है
कौन सा सच
झूठ होता है
कौन सा झूठ
सच होता है
कौन सा झूठ
झूठ होता है

सोच कर
देख ‘उलूक’
किसी दिन

दुनियाँ
दिखाती है
बहुत कुछ
दिखाती है

उसमें
कितना कुछ
बहुत कुछ होता है

कितना कुछ
कुछ भी नहीं होता है

जो कुछ भी
कहीं भी
नहीं देखता है

जो कुछ भी
कभी भी
नहीं सोचता है

आज
सब से आगे
बस वही और
वही होता है

सच
और झूठ के
चक्कर में पड़ना

इस जमाने में
वैसे भी ठीक
नहीं होता है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

चढ़े हुऐ के होते हुऐ उतर चुके के निशानों को इस जहाँ में कहाँ गिनते हैं

उस जमाने में
लादे गये फूल
मालाओं से
इस जमाने में
सूखे हुऐ पत्तों
में दबे मिलते हैं
भेष बदलने वाले
अब ही नहीं
बदलते हैं भेष
अपने अपने
जो बदलते हैं
बहुत पहले से
ही बदलते हैं
सब चलाते है
चमड़े के अपने
अपने सिक्के
हरेक के सिक्के
हर जमाने में
हर जगह
पर चलते हैं
बाकी कुछ
आम खास
कुछ खास
आम हो कर
हर जमाने में
किसी ना किसी
पतली गली से
चल निकलते हैं
इस देश में
देश प्रेम गीत
बहुत बनते हैं
बनते ही नहीं
खूब चलते है
तेरी नजरे
इनायत ‘उलूक’
तब उन पर हुई
किस को पड़ी है
अब देखते है
उसकी किस्मत को
जिस गधे के सिर
पर सींग आजकल
में ही एक नहीं
कई कई निकलते हैं
एक साथ निकलते हैं ।

चित्र साभार: imageenvision.com

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

उसके कुछ भद्दे कहे गये पर बौखलाने से कहीं भी कुछ भी नहीं होता है

तुम्हारे
बौखलाने से
अगर उसे
या
उसके जैसे
सभी अन्य
लोगों को
कोई असर
होने वाला होता
तो वो पहले ही
कोशिश करता

एक
भद्दा गाना
नहीं गाता
ऐसा एक ना
एक गाना
रोज ही
उसके ही किसी
स्टूडियो में
जानबूझ कर
तैयार किया
जाता है

और उसकी
जैसी सोच के
सभी लोगों
की सहमति
के साथ
उसके ही
बाजार में
पेश कर
दिया जाता है

तुम सुनो
ना सुनो
नाक भौं
सिकौड़ो
उसे कोसो
गालियाँ दो
अखबार
में लिखो
आकाशवाणी
दूरदर्शन
में खुली
बहसें रखो
ब्लाग में
पोस्ट करो
उसके बाद
चर्चा में
उसे लाकर
सजाकर धरो

इसके गुस्से
पर किसी
उसकी टिप्प्णी
उसके
खिसियाने पर
किसी इसकी
झिड़कियों
को पढ़ो
कुछ लिखो

होना कुछ
नहीं है
सारी
मसालेदार मिर्ची
भरी तीखी
फूहड़ बातें
करते समय
उसके दिमाग
में अपने जैसे
उसके सभी
वो लोग होते हैं
जिन्होने उसे
और उसके
जैसे लोगों को
ताज पहना कर
बादशाह
बनाया होता है

और
उनकी
अपेक्षाओं में
खरा उतरने
के लिये बहुत
जरूरी होता है

कुछ ऐसी भद्दी
बात कर देना
जिससे
कहीं ना कहीं
कोई नंगा होता है

और इसी सीढ़ी
पर चढ़ कर
उसे अगली बार
कुर्सी पर
चढ़ना होता है

इसलिये
फिर से सुन लो
थोड़े तुम्हारे
हमारे जैसों
के बौखलाने
से उसके
और उसके
समर्थकों का
हौसला बुलंद
ही होता है

हम्माम
भी उसका
पानी भी
उसका
नहाना
उसमें उसे
और उसके
जैसे लोगों
को ही होता है

उसके कुछ
भद्दे कहे गये
पर बौखलाने
से कहीं भी
कुछ भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

बुधवार, 19 अगस्त 2015

सरकारी स्कूल में जरूरी है अब पढ़ाना कोर्ट का आदेश है शुरु होना ही है शुरु हो भी जायें

ओ मास्साब
क्षमा करें
ओ मास्टरनी
भी कहा जाये
सारे पढ़ाने वाले
अपने उपर
इस बात को
ना ले जायें
यू जी सी के
प्रोफेसरान
बिल्कुल भी
ना घबरायें
अपनी मूँछों
में मक्खन
तेल लगायें
अगर मूँछे
नहीं हैं बहुत
छोटी सी
बात है
बस एक
मजाक है
परेशान भी
नजर नहीं आयें
सरकारी है
गैर सरकारी है
कान्वेंट का है
कहाँ का
पढ़ाने वाला है
बस इतना
ही यहाँ बतायें
तन्खा रोटी दाल
में घीं डालने
के लिये मिल
ही जाती है
उसके उपर
का तड़का
कहाँ से क्या क्या
करके लाते हैं
जरा जनता को
भी कभी समझाँयें
इंकम टैक्स वाले
भी जरा नींद से जागें
बस बीस करोड़
खाने वालों को छोड़ कर
कभी बीस बीस कर बीसों
जोड़ लेने वालों की
तकियों के नीचे
भी झाँक कर आयें
उत्तर प्रदेश के कोर्ट
के आदेश से जरा
भी ना घबरायें
पूरे देश में ना फैले
ये बीमारी जतन
करने में लग जायें
लगे रहें इसी तरह से
पढ़ाई की क्वालिटी
के ज्ञान विज्ञान
पर चर्चा कर दुनियाँ
को बेवकूफ बनायें
कोई नहीं भेजने
वाला है अपने पूत
कपूतो को कहीं भी
दाल भात बटने वाले
सकूल में बिना इस
देश के भगवान
से पूछे पाछे
इस तरह की अफवाह
कृपया ना फैलायें
‘उलूक’ की तरह रोज
नोचें एक खम्बा कहीं
अपने ही किसी
खम्बों में से ही
देश को इसी तरह
खम्बों के जुगाड़ से
उठाने का जुगाड़
लगाने का जुगाड़
बनायें और बनाते
ही चले जायें
दाऊद बस ये आया
आ गया ये
पकड़ा गया
बस सोचें और
खुल कर मुस्कुरायें।

चित्र साभार: magnificentmaharashtra.wordpress.com

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

एक रंग से सम्मोहित होते रहने वाले इंद्रधनुष से हमेशा मुँह चुरायेंगे

अपने
सुर पर
लगाम लगा

अपनी
ढपली
बजाने से
अब
बाज
भी आ

बजा
तो रहा हूँ
मैं भी ढपली
और
गा भी
रहा हूँ कुछ
बेराग ही सही

सुनता
क्यों नहीं

अब सब
अपनी अपनी
बजाना शुरु
हो जायेंगे तो

समझता
क्यों नहीं
काँव काँव
करते कौए
हो जायेंगे

और
साफ सफेद
दूध से धुले हुऐ
कबूतर फिर
मजाक उड़ायेंगे

क्या करेगा
उस समय

अभी नहीं सोचेगा
समय भूल जायेगा
तुझे
और मुझे

फिर
हर खेत में
कबूतरों की
फूल मालाऐं
पहने हुऐ
रंग बिरंगे
पुतले
नजर आयेंगे

पीढ़ियों दर
पीढ़ियों के लिये

पुतलों पर
कमीशन
खा खा कर

कई पीढ़ियों
के लिये
अमर हो जायेंगे

कभी
सोचना
भी चाहिये

लाल कपड़ा
दिखा दिखा कर

लोग क्या
बैलों को
हमेशा
इसी तरह
भड़काऐंगे

इसी तरह
बिना सोचे
जमा होते
रहेंगी सोचें

बिना
सोचे समझे
किसी एक
रंग के पीछे

बिना रंग के
सफेद रंग
हर गंदगी को
ढक ढका कर

हर बार
की तरह

कोपलों को
फूल बनने
से पहले ही

कहीं पेड़ की
किसी डाल पर

एक बार
फिर से

बार बार
और
हर बार
की तरह ही

भटका कर
ले जायेंगे ।

चित्र साभार: www.allposters.com

सोमवार, 17 अगस्त 2015

चलचित्र है चल रहा है मान ले अभी भी सुखी हो जायेगा

जो परेशान है
वो उसकी
खुद की खुद के
लिये बोये गये
बीज से उसी
के खुद के खेत
में उगा पेड़ है
इसमें कोई कैसे
मदद करे जब
कोई भी सामने
वाला दिखता
एक है भी तब भी
एक नहीं है डेढ़ है
घर से शुरु करें
आस पास देखें
या शहर जिले
राज्य और देश
कहीं छोटी कहीं
थोड़ी बड़ी और
कहीं बहुत ही
विकराल समझ की
घुसेड़म घुसेड़ है
बहुत आसान है
समस्याओं के
समाधान किसी
और के नहीं
सब कुछ तेरे
और केवल तेरे
ही खुद के ही हाथ
से तेरे खेत की ही
बनी एक मेढ़ है
मान क्यों नहीं लेता है
चल रही है पर्दे पर
एक फिल्म बहुत बड़े
बजट की है और बस
हीरो ही हीरो है बाकी
उसके अलावा सब कुछ
यहाँ तक तू भी एक
बहुत ही बड़ा जीरो है
सारी समस्यायें चुटकी
में हल हो जायेंगी
दिखाये देखे सपने की
दुनियाँ फिल्म देखने
के दरम्यान के तीन
घंटे की बस एक
फिल्म हो जायेगी
हर सीन वाह वाह
और जय जय का
होता चला जायेगा
कैसे नहीं दिखेगा
आयेगा नहीं भी
तब भी फिल्म का
अंत सकारात्मक
कर ही दिया जायेगा
बिना टिकट खरीदे
फिल्म देखने का
आदी हो जायेगा
अच्छे दिन से
शुरु होगा दिन हमेशा
बिना बीच में रात
के आये ही अच्छे
किसी दिन पर जाकर
पूरा भी हो जायेगा
‘उलूक’ ने देखनी
शुरु कर दी है फिल्म
पूरी होनी ही है
पूरी हो भी  जायेगी
बिना देखे देखने की
आदत हो गई हो जिसे
कुछ देख के दिख जायेगा
तो बताने के लिये
वापिस भी जरूर आयेगा ।

चित्र साभार: www.hyperlino.com

रविवार, 16 अगस्त 2015

कलाकारी क्यों एक कलाकार से मौका ताड़ कर ही की जाती है

मस्जिद में
होती है अजान
सुनी भी जाती है
दिन में एक नहीं
कई बार उसको
पुकारने की
आवाज आती है
कुछ अजीब सा
लगता है जब
समाचार वाचिका
किसी की जय
जयकार की आवाजें
ऐसी जगह से
आने की खबर
जब सुनाती है
ये ऊपर वाले के
समय के साथ
बदलने की तरफ
का एक इशारा
भर है या
नीचे वाले ही
किसी की सोच
कुछ पलट जाती है
बहुत सी बातें
किताबों में कहीं भी
लिखी नहीं जाती हैं
उठती है इस तरह
के मौकों पर
ना समझ में
आती हैं ना ही
खुद को समझाई
ही जाती हैं
किसलिये करते हैं
कुछ कलाकार
केवल कलाकारी
के लिय ही कुछ
सच में अगर दिल
साफ होता है तो
पूजा मस्जिद में
क्यों नहीं की जाती है
और मंदिर में नमाज
क्यों कभी नहीं
कहीं भी पढ़ी जाती है ।

चित्र साभार: www.gograph.com

शनिवार, 15 अगस्त 2015

आजादी जिंदा और गुलामी मरी हुई बात कुछ समझ में आई ?

सूरज डूब गया
बहुत अच्छी तरह
आज का दिन भी
पिछले उन्हत्तर
सालों की तरह
बीतना था बीत गया
स्वतंत्रों की स्वतंत्रता
हर जगह नजर आई
बेचारी गुलामी
गुलामों की
दूर दूर तक कहीं
भी नजर नहीं आई
गुलाम और
गुलामी की बात
आजाद और
आजादी के साथ
करने की हिम्मत
आज के दिन तो
कम से कम
नहीं ही आनी थी
समझ में नहीं आया
क्यूँ और
किसलिये चली आई
लगता है बंदर के
बारे में नहीं सोचने
की प्रतिज्ञा आज
के दिन के लिये
किसी ना किसी ने
किसी कारण से
है करवाई
क्या फायदा हुआ
कैसे भूल गया
बचपन में स्कूल में
हर साल झंडे के साथ
प्रभात फेरी थी करवाई
गुलामी नहीं रही
शहीदों के साथ साथ
ही शहीद हो गई
किताबों में एक नहीं
कई सारी तेरे पढ़ने
परीक्षा देने के लिये
ही गई थी लिखवाई
‘उलूक’ रात में भी
ढंग से नहीं देखने
की बात तेरे बारे
में थी सुनी सुनाई
पहली बार हुआ
अचँभा जरा सा
जब चमगादड़ की
तरह उल्टा लटकने
की करामात तेरी
सामने से चली आई
जिंदा आजादी की
बात छोड़ कर आज
भी तुझे मरी हुई
गुलामी की
याद चली आई ।

चित्र साभार: thinkramki.blogspot.com

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

आजाद देश के आजादी के आदी हो चुके आजाद लोगों को एक बार पुन: आजादी की ढेर सारी शुभकामनाएं

एक
आजाद देश के
आजादी के
आदी
हो चुके
आजाद
लोगों को

एक बार
पुन:
आजादी की
ढेर सारी
शुभकामनाएं

सुबह उठें
तिरंगा
जरूर लहरायें
तालियाँ
उसके
बाद ही बजायें

जन गण मन
साथ में गायें
मिठाइयाँ बटवाऐं
कुछ भाषण
खुद फोड़े
कुछ इनसे
और
कुछ उनसे
फुड़वायें

देश प्रेम से
भरे भरे
पाँव से
सिर तक
ही नहीं
उसके
ऊपर ऊपर
कहीं तक
भर भर जायें

इतना भरें
शुद्ध पारदर्शी
स्वच्छ गँगाजल
की तरह
छलछ्ल कर
छलछलाते हुऐ दूर
बहुत दूर से भी
साफ साफ
नजर आयें

दूरदर्शन
आकाशवाणी
से उदघोषणा
करवायें

समाचार
लिख लिखा
कर ढेर सारी
प्रतियों में
फोटो कापी
करवायें

माला डाले
सुशील संभ्रांत
किसी ना किसी
व्यक्ति का फोटो
रंगीन खिंचवायें

एक दो नहीं
घर शहर देश
प्रदेश के
सभी अखबार
में छपवाने
के लिये
घर के खबरी
को दौड़ायें

दिन निकले
इसी तरह
खुशी खुशी
शामे दावत
की तैयारी में
जुट जायें

आजादी के
होकर गुलाम
फिर वही सब
रोज का करने को
वही सब काम

एक गीता
बगल में दबा कर
शुरु वहीं से
जहाँ रुके थे
फिर से शुरु हो जायें

एक
आजाद देश के
आजादी के
आदी हो चुके
आजाद लोगों को
एक बार पुन:
आजादी की
ढेर सारी
शुभकामनाएं।

चित्र साभार: happyfreepictures.com

बुधवार, 12 अगस्त 2015

‘उलूक’ की आदत है लिखे जा रहा है क्या फर्क पड़ता है कौन पढ़ने आ रहा है

बहुत सुकून सा
महसूस हो रहा है
वो सब देख कर जो
सामने से हो रहा है
जो हो रहा है वही
सब कुछ दिखाया
भी जा रहा है
उसी हो रहे के बारे में
बताया भी जा रहा है
गरम चर्चाऐं हैं बहस हैं
हो रहे में से ही कुछ को
बुलाया भी जा रहा है
हो क्या रहा है
ये अपना बता रहा है
उसने भी बताना है
वो भी बता रहा है
समझाने बुझाने में
कोई नहीं आ रहा है
अच्छा है हो रहा है
हो रहा है और हुऐ
भी जा रहा है
हो रहे को कोई रोक
भी नहीं पा रहा है
इस सब में सबको
ही मजा आ रहा है
बताने वाले के पास
काम हो जा रहा है
दिखाने वाला भी
सब दिखा रहा है
देखने वाले देख रहे हैं
जो जो जब से
हुआ जा रहा है
इस होने में वैसे कोई
नई बात भी नहीं
हुई जा रही है
पहले भी हुआ करती थी
पता तक नहीं चलता था
कोई परदा लगा रहा है
परदे में सालों साल
चलता रहने वाला अब
परदे फाड़ कर परदों से
बाहर आ रहा है
अच्छा संकेत है
देश अच्छी दिशा
में जा रहा है
‘उलूक’ की आदत है
लिखे जा रहा है
क्या फर्क पड़ता है
कौन पढ़ने आ रहा है ।

चित्र साभार: www.ndtv.com

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

छोटे चोर चकारों के स्टिंग करने से ना तेरा कुछ भला होगा ना उनका ही भला हो पायेगा

इस गलतफहमी में
क्यों रहता है कि कोई
स्टिंग आपरेशन तेरे लिये
भी कभी किया जायेगा
और फिर उसकी एक
सी डी बना कर कोई
मीडिया को जाकर
भी दे कर आयेगा
बड़े लोगों के बड़े
कामों के लिये
ये सब काम
किये जाते हैं
ऐसे कामों को
करने कराने में बड़े
बड़े खर्चे हो जाते हैं
इस दल के लिये
उस दल का कोई
चूहेदानी बनवा
कर लगवाता है
किसी बीच के
आदमी को ठोक
पीट बजा कर
काम दिया जाता है
अब इतने सारे बबाल
तेरे जैसे फालतू
निर्दलीय के लिये
बता कौन करायेगा
डेढ़ रुप्पली के घपले
करने की आदत
हो जिसको उसे
देख कर स्टिंग करने
वाले के साथ का कैमरा
और कैमरे वाला
भी शर्मायेगा
कितना कर लेगा
एक मकान उधर
एक दो स्कूटर कार इधर
खरीद बेच कर दिखायेगा
चीनी और नमक की
बीमारी से पहले
से ही ग्रस्त है
लौकी और खिचड़ी
खाना भी बंद हो जायेगा
बराबरी मत किया कर
डेढ़ की जगह ढाई का
घपला कर लिया कर
बड़े करेगा तो किसी
बड़े के हाथों कहीं ना
कहीं फंसा दिया जायेगा
लगा रह छोटे छोटे
ही को छीलने में
किसी को पता भी
नहीं चल पायेगा
छीलनों से ही
किसी ना किसी दिन
तेरा बोरा गले गले
तक भर ही जायेगा
छोटे चोर चकारों के
स्टिंग करने से
ना तेरा ही कुछ भला होगा
ना उनका ही भला हो पायेगा ।

चित्र साभार: www.beyazpsikoloji.com

सोमवार, 10 अगस्त 2015

बिल्ली और घंटी वाली पुरानी कहानी में संशोधन करने के लिये संसद में प्रस्ताव पास करवायें

बिल्ली चूहे

और
बिल्ली के
गले में घंटी
बांधने की कहानी

बहुत
पुरानी
जरूर है

पर
कहानी ही है

ना कभी
किसी बिल्ली
के घंटी बंधी

ना चूहों
की हिम्मत
कभी इतनी बनी

आदमी के
दिमाग की
खुराफातों
की बातें

किसी के
समझ में आई
और उसने

बिल्ली चूहे
के ऊपर
घंटी एक
मार कर

एक
कहानी बनाई

कहानी तो
कहानी होती है

सच सच होता है

क्या किया जाये

अगर
एक चूहों के
जमघट के

कुछ
टेढ़े मेढ़े
कमजोर चूहे

कहीं से
कुछ लम्बी मूँछें

और
कहीं से
कुछ लम्बी पूँछें
मार कर लायें

अपने ही
घर से चोरी गई

कुछ
मलाई से

कुछ अपने

और
कुछ अपने
कुछ चमचों
पर चिपका कर
बिल्ली हो जायें

चारों और
बिल्लियों का
डर फैलायें

तितर
बितर
हुऐ चूहे

अपने
ही बीच के
कुछ चूहों
के डर से
हलकान हो कर

घंटी के
सपने देखना
शुरु हो जायें

इस सब
को समझें

बिल्ली
कभी नही थी

घंटी जरूर थी

चूहों
के बीच
किसी
एक दो
चूहों के
गले में घंटी
बधने बधाने की
नई कहानी बनायें

बिल्ली
और
घंटी वाली
पुरानी कहानी में

संशोधन
करने के लिये

संसद
में प्रस्ताव
पास करवायें ।

चित्र साभार: members.madasafish.com

रविवार, 9 अगस्त 2015

समझ में आता है कभी शुतुरमुर्ग क्यों रेत में गरदन घुसाता है

कुछ खूबसूरत सा
नहीं लिख पाता है
कोशिश भी करता है
नहीं लिखा जाता है
किसने कह दिया
मायूस होने के लिये
कभी निकल के देख
अपनी बदसूरत सोच
के दायरे से बाहर
बदसूरतों के बदसूरत से
रास्तों में हमेशा ही
क्यों दौड़ जाता है
बहुत सा बहुत कुछ
और भी है खूबसूरत है
खूबसूरती से उतारता है
खूबसूरत लफ्जों को
लिखा हुआ हर तरफ
सभी कुछ खूबसूरत
और बस खूबसूरत
सा नजर आता है
सब कुछ मिलता है
उस लिखे लिखाये में
चाँद होता है तारे होते हैं
आसमान होता है
हवा होती है
चिड़िया होती है
आवाजें बहुत सी होती हैं
सब कविता होती हैं
या केवल गीत होती हैं
इसीलिये हर खूबसूरत
उसी दायरे के
कहीं ना कहीं आसपास
में ही पाया जाता है
कभी किसी दिन
झूठ ही सही
अपनी उल्टी सोच के
कटोरे से बाहर निकल
कर क्यों नहीं आता है
अच्छा लगेगा तुझे भी
और उसे भी ‘उलूक’
होने दे जो हो रहा है
करने दे जो भी
जहाँ भी कर रहा है
कीचड़ में कैसे
खिलता होगा कमल
असहनीय सड़ाँध में
भी खिलखिलाता है
सोच कर देख तो सही
कोशिश करके
बदसूरती के बीच
कभी खूबसूरती से
कुछ खूबसूरत
भी लिखा जाता है ।

चित्र साभार: www.moonbattery.com

शनिवार, 8 अगस्त 2015

हर कोई मरता है एक दिन मातम हो ये जरूरी नहीं होता है

हर बाजार में
हर चीज बिके
ये जरूरी भी
नहीं होता है
रोज बेचता है कुछ
रोज खरीदता है कुछ
उसके बाद भी कैसे
किसी को अंदाजा
नहीं होता है
किसी की मौत
कहाँ बिकेगी
कौन कब और
कहाँ पैदा होता है
कहीं सुंदर सी
आँखों की गहराई
ही बिकती है
कहीं खाली आवाज
गुंजाता हुआ
खंडहर हो चुके
एक कुऐं में भी
प्राइस टैग बहुत
उँचे दामों का
लगा होता है
कहीं बहुत भीड़
नजर आती है
और सामने से
बहुत कुछ उधड़ा
हुआ सा होता
ये जरूरी नहीं है
जिंदगी का फलसफा
हर किसी के लिये
हमेशा एक सा होता है
किसी को खून देखकर
गश आना शुरु होता है
किस को अगर नशा
होता है तो बस गिरे हुऐ
खून के लाल रंग को
देखने से ही होता है
बहुत मरते हैं रोज
कहीं ना कहीं दुनियाँ
के किसी कोने में
हर किसी के मरने
का मातम जरूरी नहीं है
हर किसी के यहाँ होता है ।

चित्र साभार: www.examiner.com

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

विनम्र श्रद्धांजलि ब्लागर निलॉय नील

जमघट
हर जगह
एक नहीं
कई सारे

एक जैसी
आकाँक्षाऐं
एक जैसी
महत्वाकाँक्षाऐं

एक सी
आवाजें
और शोर
तीखे संगीत
और गीतों के
सायों से कहीं
दूर बहुत दूर
कुकर्म की
उर्जा का जोर

सियार
एक नहीं
बहुत सारे
एक हो कर
कुचलने
को आमादा
तिमिर से
ढक कर
निचोड़ कर
हर नई भोर

कहाँ कहाँ
देखे कोई
क्या कुछ सोचे
क्या करे कोई

हताशा
अपने आस पास
बहुत नजदीक भी

हताशा
दूर बहुत दूर
उसी तरह की वही

क्रूरता
लालच
बेरहमी की
जय जयकार
से खुश हो रहे
लोग दर लोग

फिर से
एक बार
कुचल दी गई
हत्या कर
एक और
आवाज

बोलने
लिखने की
आजादी को
करने के
लिये कमजोर

पर रुक
नहीं पाये
कभी
इस तरह
दीवानों
के कारवाँ

उठ
खड़े होंगे
तेरे जैसे
एक नहीं
हजारों
हजारों
कई ओर

श्रद्धांजलि
नम आँखों
के साथ
निलॉय नील

शहादत
मारेगी
जरूर
तुम्हारी
बहुत जोर

उठेगी
आवाजें
उसी तरह
सत्य की
सत्य के लिये
बहुत सारी
पुरजोर

श्रद्धांजलि
और नमन
की आवाज है
आज हर ओर ।

चित्र साभार: www.patrika.com