उलूक टाइम्स: साहित्य
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शनिवार, 2 मई 2020

सोच कर लिखा नहीं जाता है और बिना सोचे लिखा गया लिखा नहीं होता है साहित्य के बीच में बकवास लिख कर घुसने का भी कोई कायदा होता है




सालों 
गुजर गये 
सोचते हुऐ 

लिखने की 
कुछ

कुछ ऐसा 

जिसका 
कुछ 
मतलब निकले 

लिखना 
आने से 

मतलब 
निकलने वाला 
ही
लिखा जायेगा 

बेमतलब 
की
बात है 

बेमतलब
का 
कई लिख लेते हैं 

भरी पड़ी हैं 
किताबें कापियाँ 
लकीरों से
आड़ी तिरछी 

पर 
मुझ से 
नहीं लिखा गया 
कुछ भी
लिखे जैसा 

आज भी
कोशिश जारी है 

बस 
कुछ दिनों से 
लिखना 
थोड़ा
झिझकते हुऐ 
जैसे
ठिठक गया

समय 
के
ठिठक जाने 
के
कुछ 
एहसासों के साथ 

पढ़ते पढ़ते 
बेमतलब का 
लिखा हुआ 
हर तरफ 

मतलब
का 
मतलब
क्या होता है 
वही
समझना रह गया

अपनी अपनी
समझ 
अपना अपना
पढ़ना

इसकी बकवास 
उसके लिये
साहित्य

उसका
साहित्य 
इसके लिये
बकवास

रद्दी 
खरीदने वाले के लिये
बकवास
भी रद्दी
साहित्य
भी रद्दी 

ना गाने वाले के लिये
गर्दभ राग ही बस राग 

लिखना
क्या है 
लिखने
से क्या होता है 
पता होना
मगर
शुरु हो गया 

लिखना है 
लिखना समझना है 
जब तक शुरु होता 

दौड़ना 

दिखना
शुरु हो गया 

दौड़ना 

लिखे हुऐ
को 
हाथ में लेकर 

एक दो तीन 
होते होते 

भीड़ 
दिखनी
शुरु हो गयी 
लिखा लिखाया
पीछे रह गया 

हर कोई 
दौड़ रहा है 
दिखने लगा 

लिखा लिखाया है 
हर कोई कह रहा होता है 
बस वही
दिखाई
नहीं दे रहा होता है 

लिखने
का
मतलब 
बस
साहित्य होता है 

चिल्ला
रहा होता है 

थोड़ी 
देर के बाद 

एक झंडा 
साहित्य
लिखा 

कोई
सड़क से 
दूर बहुत दूर 
कहीं किसी बियाबान में 
बंजर खेत की ओर लहराता दौड़ता 

एक
लिखने वालों की भीड़ से ही
निकल गया होता है 

कुछ भी लिखा 
साहित्य नहीं होता है 

साहित्य
बताने का फार्मूला 
साहित्यकार
की मोहर 
हाथ की कलाई में 
लगे हुऐ के
पास ही होता है 

साहित्य 
नहीं लिख 
सकने वाले को 
लिखना
ही
नहीं होता है 

ठेका 
किसका 
किसके पास है 
पूछ
लेना होता है 

‘उलूक’ 
रात के अंधे को 
दिन की बात में 
दखल नहीं देना होता है 

कविता कहना 
गुस्ताखी होगी 

मगर 

लम्बी 
कविता का
फार्मेट 

और 
बकवास 
करने का फार्मेट 

लगभग
एक जैसा ही होता है ।
चित्र साभार: http://clipart-library.com/

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2018

फुरसत की फितरत में ही नहीं होती है फुरसत फितरत और फुरसत से साहित्य भी नहीं बनता है

दिल होता है

किसी का भी हो
होना भी चाहिये

फुरसत से
कभी फुरसत
लिख लेने का

मगर
फुरसत है
कि मिलती
ही नहीं है कभी
फुरसत से

फुरसत की
फितरत में
नहीं होती है
फुरसत

फितरत
मतलब
सयानापन

फितरत
मतलब
मक्कारी

फितरत
मतलब
चतुराई भी
होता है

फुरसत
सयानी
कहाँ
हो पाती है

फुरसत
चतुर होती तो

फुरसत
ही फुरसत होती
कहा जा सकता है

मक्कारों
के कारण
फुरसत
नहीं होती है
माना
जा सकता है

कुछ नहीं

कुछ लोग

कुछ
नहीं होते हैं

कुछ नहीं
कर पाते हैं

अखबारों में
नहीं आ पाते हैं

बेकार
टाईप के
ऐसे लोग

लोगों को
फुरसत से

कुछ लोगों
के द्वारा
समझाये
जाते हैं

पूरा देश
चल रहा है
फुरसतियों से

वहाँ भी हैं
और
यहाँ भी हैं

सब
फुरसत से हैं

बस ‘उलूक’
बैठा रहता है
इन्तजार में

शायद कभी
फुरसत
हो जाये

और
फुरसत से
कुछ
फुरसत पर
कहा जाये

पर

पर फुरसत
ना अमिताभ
बच्चन है
ना करोड़पति
बनाने की मशीन

फुरसत
सपना है

एक
भिखारी का
बिना कटोरा

भरे
होने का

सपने
फुरसत के
बहते हुऐ ।

चित्र साभार: http://weclipart.com

गुरुवार, 22 जून 2017

हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी सबसे अलग होती है ये बहुत ही साफ बात है

हिन्दी में
लिखना
अलग बात है

हिन्दी
लिखना
अलग बात है

हिन्दी
पढ़ लेना
अलग बात है

हिन्दी
समझ लेना
अलग बात है

हिन्दी
भाषा का
अलग प्रश्न
पत्र होता है

साहित्यिक
हिन्दी
अलग बात है

हिन्दी
क्षेत्र की
क्षेत्रीय भाषायें

हिन्दी
पढ़ने
समझने
वाले ही

समझ
सकते हैं
समझा
सकते हैं

ये सबसे
महत्वपूर्ण

समझने
वाली बात है

हिन्दी बोलने
लिखने वाले
हिन्दी में लिख
सकते हैं

किस लिये
हिन्दी में
लिख रहे हैं

हिन्दी
की डिग्री
रखे हुऐ
लोग ही
पूछ सकते हैं

हिन्दी
के भी कभी
अच्छे दिन
आ सकते हैं

कब आयेंगे
ये तो बस
हिन्दी की
डिग्री लिये
हुऐ लोग ही
बता सकते हैं

भूगोल
से पास
किये लोग

कैसे
हिन्दी की
कविता बना
सकते है

कानून
बनना
बहुत जरूरी है

कौन सी
हिन्दी

कौन
कौन लोग
खा सकते हैं
पचा सकते हैं

नेताओं की
हिन्दी अलग
हिन्दी होती है

कानूनी
हिन्दी
समझने की
अलग ही
किताब होती है

‘उलूक’
तू किस लिये
सर फोड़ रहा है
हिन्दी के पीछे

तेरी हिन्दी
समझने वाले
हैं तो सही

कुछ तेरे
अपने ही हैं

कुछ
तेरे ही हैं
आस पास हैं

और
बाकी
बचे कुछ
क्या हुआ

अगर बस
आठ पास हैं

हिन्दी को
बचा सकते हैं
जो लोग

वो
बहुत
खास हैं
खास खास हैं।


चित्र साभार: Pixabay

रविवार, 26 जुलाई 2015

समझदार को बहुत ज्यादा ही समझदारी आती है

सब्जी
और घास
साथ साथ
उगती हैं
दूर से
देखने पर
दोनों एक
सी नजर
भी आती हैं

पर सब्जी
पकाने के
लिये घास
नहीं काटी
जाती है

बकरियों के
रेहड़ में
कुत्ते भी
साथ में हों
तब भी
वही बात
हो जाती है

मांंसाहारियों
के द्वारा
खाने के लिये
बकरियाँ ही
काटी जाती हैं

हिंदी में लिखी
किसी की
अपने घर
की रोज की
चुगलखोरी
साहित्य में नहीं
गिनी जाती हैं

कोई कुछ
लिख रहा
हो अगर
पहले उसकी
लिखी गई
बातों को
समझने की
कोशिश की
जाती है

अपने ही
घर के किसी
आदमी के
द्वारा कही
जाती हैं
और
समझ में
रोज रोज
ही नहीं अगर
आती हैं तो
किसी दिन
कभी पहले
उससे ऐसी
उल जलूल
क्यों लिखी हैं
इस तरह
की बातें
पूछे जाने
की कोशिश
की जाती है

काले अक्षरों
की भैंसे
बनाना अच्छी
बात नहीं
मानी जाती हैं

अक्षरों की
भैंसों की
रेहड़ को
हाँकने वाले
की तुलना
साहित्यकारों
से नहीं
की जाती है

‘उलूक’
बैचेन मत
हुआ कर
अगर कभी
तेरे कनस्तर
पीटने की
आवाज दूर
से किसी को
शादी बारात के
ढोल नगाड़े
का भ्रम पैदा
कर जाती हैं

साहित्यकार
समझने वाले
को समझदारी
आती है और
बहुत आती है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com